लगातार हो रही हत्याओं और कथित रूप से उदासीन प्रशासन ने समुदाय के कई लोगों को भय में डाल दिया है.
वहां के एक निवासी ओंकार कहते हैं, "हम अपनी जान बचाने के लिए जम्मू जाना चाहते थे. डेप्युटी कमिश्नर हमसे मिलने आए थे और हमने उन्हें कहा था कि अगर वह हमें सुरक्षा नहीं दे सकते तो हम चले जाएंगे. हमें जाने नहीं दिया जा रहा. सुरक्षा का मतलब यह नहीं कि आप हमें बंदी बना लें. हमारा एक सामाजिक जीवन है, हमें रोजमर्रा की जरूरी चीजों को लाने के लिए भी बाहर जाना पड़ता है. कॉलोनी में हमारी जिंदगी वैसे भी बदतर ही है."
मट्टन में प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे रंजन कहते हैं, "अगर तीन हत्याओं और हफ्तों के प्रदर्शन के बाद भी सरकार हमें जम्मू स्थानांतरित करने की कोई मंशा नहीं दिखा रही, तो यह स्वाभाविक है कि हम खुद ही रास्ते ढूंढेंगे."
तीसरी हत्या 2 जून को हुई, जिसमें राजस्थान के हनुमानगढ़ से आने वाले बैंक मैनेजर विजय कुमार को, कुलगाम में एक संदिग्ध आतंकी ने गोली मार दी थी.
रंजन पूछते हैं, "सरकार असल में क्या दिखाना चाहती है? शांति और चैन? अगर हमें वह मिली होती तो हम इस तरह से जाने के लिए मजबूर ही नहीं होते."
पुलिस ने मट्टन कॉलोनी को एक करने की बात से इंकार किया. स्थानीय पुलिस थाने के इंचार्ज वसीम शाह ने कहा, "हमें वहां सुरक्षा देने के लिए तैनात किया गया है. वे परिवार अभी भी वहीं हैं. सब ठीक है."
पर क्या "सुरक्षा के लिए तैनात* पुलिस, निवासियों को जाने से रोक रही है? इस पर शाह ने फोन काट दिया.
अनंतनाग के जिला कमिश्नर पीयूष सिंगला ने यह कहकर न्यूज़लॉन्ड्री के सवालों का जवाब नहीं दिया कि उन्हें एक बहुत "जरूरी कॉल" लेनी है. उन्होंने हमारे द्वारा संदेश के जरिए भेजे गए प्रश्नों का भी जवाब नहीं दिया.
ओंकार कहते हैं, "इस बात पर सहमति है कि सरकार हमें इन टारगेटेड हत्याओं से बचाने में सक्षम नहीं है. सुरक्षा की कोई उम्मीद नहीं दिखाई देती. प्रशासन के साथ हमारी बातचीत पूरी तरह से असफल रही है. कश्मीर में एक भी सुरक्षित इलाका नहीं है."
शेखपोरा की प्रवासी कॉलोनी में प्रदर्शन चौथे हफ्ते में पहुंच गया है. कॉलोनी में रहने वाले सरकारी कर्मचारी हत्या के बाद से काम पर नहीं गए हैं. उनकी कॉलोनी अब एक सेना की जगह जैसी लगती है जिसके चारों तरफ कंक्रीट की ऊंची दीवारें हैं, जिनके ऊपर कंटीले तार लगे हैं और बंदूकधारी सुरक्षा में खड़े हुए हैं.
एक प्रदर्शनकारी कहते हैं, "अधिकारियों ने हमें प्रदर्शन खत्म करके काम पर वापस लौटने के लिए बोला है. जब तक हमें यहां से जम्मू में ले जाकर नहीं बसाया जाता हम काम शुरू नहीं करेंगे. हमारी इकलौती मांग यही है कि अगर वह हमारी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते तो हमें कम से कम स्थानांतरित कर दें."
इस मांग के मद्देनजर, बुधवार को जम्मू कश्मीर प्रशासन ने एक घोषणा में कहा कि पुनर्वास योजना के अंतर्गत जितने भी पंडितों को नौकरी मिली है, उन्हें 6 जून तक "सुरक्षित जगहों" पर भेज दिया जाएगा. एक अनाम शीर्ष के सरकारी अफसर ने न्यूज़ एजेंसी केएनओ को बताया कि करीब 500 कर्मचारियों को, उनकी पसंद की जगहों पर स्थानांतरित किया भी जा चुका है.
लेकिन प्रदर्शनकारी इससे प्रभावित नहीं थे. शेखपोरा कॉलोनी में प्रदर्शन कर रहे देव ने कहा, "वह हमारे गले में फिर वही पुरानी लॉलीपॉप डाल रहे हैं. उन्होंने हमें जिला मुख्यालयों में स्थानांतरित करने का वादा किया है जैसे कि हमें मारने का इरादा रखने वाले वहां हम तक नहीं पहुंच सकेंगे. जबकि इस पूरे समय हमारी मांग रही है कि हमें घाटी के बाहर स्थानांतरित किया जाए. यह सब बकवास है."
प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन के द्वारा कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एक शिकायत निवारण सेल स्थापित करने के निर्णय को भी "दिखावटी, एक छलावा" बताकर खारिज कर दिया. उन्होंने यह भी याद दिलाया कि यह सेल उनके रोजगार से जुड़ी शिकायतों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी. मट्टन में प्रदर्शन कर रहे आशुतोष कहते हैं, "इस बार हमारी परेशानी हमारी जिंदगियों को खतरा है. जान जाने का खतरा केवल एक शिकायत नहीं है. यह हेडलाइन मैनेजमेंट की एक और कोशिश है."
पंडितों के बीच अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता हाल में हुई इन हत्याओं से पहले की है, लेकिन अब वह वाजिब कारणों की वजह से बहुत ज्यादा बढ़ गई है. पिछले चार हफ्तों में, अज्ञात बंदूकधारियों, और पुलिस के अनुसार संदिग्ध आतंकियों ने एक पंडित, एक कश्मीरी सिख और तीन कश्मीरी हिंदुओं की हत्या कर दी है. इसी दौरान, संदिग्ध आतंकियों और सुरक्षाबलों ने कम से कम दो कश्मीरी मुसलमानों को मारा है.
प्रदर्शनकारी कहते हैं कि पिछले साल अक्टूबर में हुई दो हिंदू शिक्षकों और केमिस्ट की हत्या के बाद शुरू की गई जांच का भी, "प्रतिक्रिया के अभाव और नौकरशाही की लिप्तता" की वजह से कोई नतीजा नहीं निकला, जिससे उनमें "निराशा घर कर गई है."
शेखपोरा कॉलोनी पर प्रदर्शन कर रहे पूरन कहते हैं, "हमारे लिए कश्मीर में काम करना और ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है. राहुल की हत्या से पहले हुई दो हत्याओं को हमने नजरअंदाज करने की कोशिश की, इस उम्मीद से कि सरकार कुछ करेगी. पर वो हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. अब हमारी एक सीधी और साफ मांग है: हमें स्थानांतरित किया जाए."
बटवारा से शिव कहते हैं, "हम में से कोई भी अगला निशाना हो सकता है. सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता. वह हमारे नाम पर वोट जुटाने में मशगूल हैं."
पहचान छुपाने के लिए कुछ नाम बदल दिए गए हैं.
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