रेत समाधि: बुकर प्राइज से सम्मानित गीतांजलि श्री के उपन्यास का अंश.
खुले दरवाज़े पर आहट सुन बेटी खड़ी हुई और आहत हुई. भाई सामने. बहन आमने. दोनों की आंखें फंस उलझ जैसे हम और तुम और कोई नहीं. धरती दृष्टि हवा मन तन ऐसे हिल गए जैसे द्रव में सब छलछल बलबल.
बड़े ने अपना तानाशाह लबादा चेहरे पर परदे की तरह डाटा. वही तरीका था पसीना पोंछने का बेचैनी हटाने का. कपड़ा से कॉस्टयूम रज़ा मास्टर बनाते हैं, यहां रंग-ढंग से.
अम्मा बैल्कनी पर सन्नाटा ओढ़े बैठी थीं. बड़े सीधे वहां गए. चलिए, हुक्माया, बाहर रहेंगी तो तबीयत बिगड़ेगी ही.
मां ने सिर धीरे से उठाया. बड़े को देखा, उनके पीछे आई पत्नी को देखा, उनके पीछे खड़ी बेटी को देखा, उसके पीछे खुले दरवाज़े को देखा, उधर पड़ोसी का झबरेदार कुत्ता भौंक पड़ा, उनसे आंखें मिलाने की ख़ुशी में.
छोड़ दिया मुझे. अम्मा बोलीं.
बहू ने झुककर पांव छुए. कैसी बातें करती हैं अम्मा, आपने हमें छोड़ दिया. अब बस बहुत हुआ, चलिए. अब जाएंगे.
अब जाएंगे, अम्मा ने विक्षिप्त स्वर में स्वीकारा.
हो गयी सैर-टहल. देख लिया मां ने अजब रंग ढंग. अब लौटे आराम में. बहू ने कहा जो हमारे यहां उन्हें मिलता है वो और कहीं कहां, आना तो उन्हें यहां है ही. दूर से फोन भी आया कि अपना ध्यान रखिये, अपने को नेगलेक्ट मत करियेगा, कोई नर्स रख लीजिये और उसे ग्रैनी की सब ज़रूरतें बता दीजिये, कि उसे कब्ज़ हो जाता है तो ईसबगोल हर खाने के संग आधी चमची घोल के देदे और सुबह नेबिकार्ड, और अंजीर मैं यहां से भेज रहा हूं एक कॉलीग के हाथ और आपके लिए फुट मसाजर जो ग्रैनी को भी इस्तेमाल कराइएगा, ठीक?
जिस पर जिन्होंने पढ़ा हो पॉल ज़करिया की कहानी याद कर सकते थे. कि कितनी छोटी छोटी चीज़ों का दूर बैठे बेटे को खयाल था कि अकेली पड़ी उसकी बूढ़ी मां का ध्यान रखा जाए. जिस लेडी ने नर्स की पोस्ट के लिए इश्तिहार का जवाब दिया था, उसे पॉल के पात्र ने पत्र में सब समझाया. सुविधाएं तनख्वाह आदि बताने के बाद. और ये बताने के बाद कि बाकी भाई बहन अपने ठिकानों पे आसीन हैं, प्यारी अम्मा की जि़म्मेदारी मैं उठाता हूं और दो वर्ष में एक बार उनके पास सपरिवार आता हूं. तो नर्स, तुम साथ रहोगी. नौ बजे मां को धीमे स्वर से उठाओगी.
उन्हें हिला के नहीं. हल्के से हथेलियां सहला के, और पेशानी. वो उठ के तुम्हें पहचान लें तब भीना मुस्कराना, न पहचानें तो मुस्करा के अपनी याद दिलाना. फिर बेड का सिरहाना उठा के उन्हें तकिये का सहारा देकर बिठलाना, उनके धड़ को ज़रा आगे करते, पीठ और कन्धों को नरमी से पर पूरी तरह मलते. फिर उसे सोसम्मा — जो कहानी में एक और पात्र है — की मदद से कमोड पे बिठाना.
पर पूरे वक्त मुस्कराना क्योंकि अम्मा को उठने पर खुशहाली और प्यार का एहसास मिलना चाहिए, ये उसकी सेहत, मानसिक शारीरिक दोनों, के लिए मुफीद है. मां जब कमोड पर हों तो नर्स उनके दोनों हाथ थपथपाती रहे या एक हाथ से उनकी पीठ. नौ बीस पे मां को स्पंज करे. उस दौरान याद से मां से बात करती रहे. कुछ मधुर विषयों पर. नर्स के जीवन के सुखी अनुभवों से साझा कराये. या हम बच्चों के बारे में, यानी मां के बच्चों, या हमारे बच्चों के बारे में मीठी बातें करती रहे.
गरज़ ये कि मां के सोने पे, जागने पे, बिस्तर में, पॉटी पे, व्हीलचेयर में, सब जगह, पल पल के लिए निर्देश हैं, भावी नर्स के लिए. ऐसे बारीक़ खयाल भी कि शाम को जब सूरज डूबने लगे तो उनकी व्हीलचेयर बैल्कनी में कर दो और उनका मुंह क्षितिज की ओर और पहिये लॉक कर दो और बार लगा दो कि आगे को ढुलक न जाए. और फिर उन्हें अकेला छोड़ दो. उन्हें एकांत का आनंद लेने दो.
छोटी छोटी चीज़ों के प्रति सचेत, सात समुन्दर पार हो तो क्या, और जहां पॉल ने लिखा कि कहानी के बेटे किरदार ने निर्देश दिया कि रात साढ़े नौ पे मां को लिटाओ और उनकी आंखों में झांक कर कहो गुडनाइट, स्वीट ड्रीम्स, और देखो वो मुस्कराती हैं कि नहीं, और प्यारा बोसा उनके सर पे, एक गाल पे, एक होंठों पे हम छओं उनके पुत्र पुत्रियों की तरफ़ से देना और कहना माइ डियर अम्माची, तो लगा कि वाक़ई नर्स तो मीडियम है, प्यार तो बच्चे कर रहे हैं.
इन सारी शर्तों को रखकर बेटे ने कहानी में अपना पत्र पूरा किया कि ये मंज़ूर हैं तो हम अपनी मां की तीमारदारी के लिए तुम्हे इंटरव्यू करेंगे.
पर इस परिवार में किसी ने ज़करिया को नहीं पढ़ा था. लेकिन बेटे तो बेटे, कहानी में और कहानी के बाहर, सो बड़े की पत्नी बोलीं कि देखो कितना ग्रैनी का खयाल है वहां से भी और मेरा भी कि मेरा जीवन बस उनकी और घर की देखरेख में सर्फ़ न हो जाए और अपना काम बीच में छोडकर भी दो दिन में एक बार फोन ज़रूर कर लेता है, वहां से भी वही सब कर रहा है, कभी मुझे लगता ही नहीं कि मैं अकेले पड़ गयी हूं.
इनका सामान पैक कर दो, सदियों बाद बड़े बहन से बोले तो आदेश देते.
बेटी को बुरा लगना ही था. तबीयत संभलने दीजिये.
जाऊंगी. मां ने बेटी को देखा और धीमा कहा.
क्यों अम्माएं मरने के लिए बेटों का घर याद करती हैं? कृष्णा सोबती ने ‘ऐ लड़की’ में कह दिखाया.
मां खांसने लगी छड़ी फ़र्श पर टेके, उस पर झुकी.
अन्दर चलिए बेटी बोली.
मां ने खांसते खांसते कांपते कांपते छड़ी उठाई. और सर. छड़ी कांपती हुई उठी तो जैसे लम्बी सी माचिस की तीली थी, जो लाल पड़ते सूरज से चिंगारी लेकर पास के पेड़ में पत्तों की ओट में लटकी कंदीलों को जलाने लगी. जगह जगह लाल लौ झूल गयी. मां ने छड़ी डाली पर टिका दी, जैसे वो भी डाली उसी पेड़ कीय इस खुशफ़हमी में काली चिडिय़ा फुदकती आई. सूरज उग रहा था और मां के सामने की छड़ी-डाल पर बैठ के वो और काली हो गयी और उसकी आंखें लाल. अपनी लम्बी चूं चूं चूंचूंचूं चूंचूं करती वो मां के गले का सुर लौटाने में जुट गयी.
सीमापार, अम्मा बोलीं.
सब न जाने क्यों चुप हो गए कि सुन लें अम्मा पक्षी का गाना. सीटियों वाला. विरह क्रन्दन, मिलन उच्छास, वाला.
काली चिडिय़ा सीटी बजाती है. एक छोटी सी औरत के आगे.
जहां भी वो है वो यहीं है, इसी पेड़ के आगे, इस झाड़ के, इस रौशनी में, और अभी.
फिर चिरइया उड़ गयी.
एकदम से अम्मा सीटी बजाने लगी, जैसे आबाद शहर के भड़क्के वाले घर में नहीं, बियाबान सहरा में, जहां सीटी खालीपन में गूंजती जाती है और धीरे धीरे मर जाती है.
पुस्तक –रेत समाधि
लेखक –गीतांजलि श्री
प्रकाशक – राजकमल प्रकाशन