जानलेवा बनता रेत खनन: देशभर में कम से कम 418 लोगों की गई जान

दिसंबर 2020 से मार्च 2022 के बीच देश के उत्तरी राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और चंडीगढ़ में सबसे ज्यादा 136 मौत हुई हैं. इनमें से 24 मौत खनन के लिए खोदे गए गड्ढों में डूबने से हुई हैं.

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जानलेवा बनता रेत खनन: देशभर में कम से कम 418 लोगों की गई जान
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नदियों को खनन से बचाने के लिए आंदोलनरत हरिद्वार के मातृसदन आश्रम ने 29 अप्रैल को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नाम ज्ञापन भेजा. इसमें कहा गया, “हरिद्वार में खनन का माल ले जाने वाले डंपर की चपेट में आने और खनन के लिए बनाए गए गड्ढ़ों में गिरने से आए दिन लोग मर रहे हैं. हालिया आंकड़े 50 से भी ज्यादा हैं. बीते 10 सालों में कितनी मौत हुईं, यह अनुमान लगाना भी कठिन है.”

यमुना स्वच्छता समिति से जुड़े कनालसी गांव के किरणपाल राणा दिखाते हैं कि यमुना में तय सीमा से कहीं अधिक गहराई में खनन के लिए कुंड खोदे गए हैं.

यमुना स्वच्छता समिति से जुड़े कनालसी गांव के किरणपाल राणा दिखाते हैं कि यमुना में तय सीमा से कहीं अधिक गहराई में खनन के लिए कुंड खोदे गए हैं.

वर्षा सिंह

मातृसदन के ब्रह्मचारी सुधानंद बताते हैं कि स्थानीय मीडिया रिपोर्टिंग के आधार पर हमने ये आकलन किया. गंगा के किनारे कई जगह 30-30 फीट गहरे गड्ढ़े हैं. इनमें नदी का पानी भरा रहता है. अनजाने में लोग इन गड्ढ़ों में गिरते हैं और दुर्घटनाएं होती हैं.

ये आंकड़े इससे कहीं ज्यादा भी हो सकते हैं क्योंकि इसमें सिर्फ अंग्रेजी भाषा के अखबारों में छपी खबरें ही शामिल हैं. क्षेत्रीय या भाषाई अखबारों में छपी खबरें नहीं. इस अध्ययन को करने वाले एसएएनडीआरपी के एसोसिएट कॉर्डिनेटर भीम सिंह रावत कहते हैं, “खनन के चलते होने वाली मौत या सड़क दुर्घटनाओं को नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) सामान्य सड़क दुर्घटना के रूप में दर्ज करता है. जबकि खनन के मामले में तेज रफ्तार में वाहन चलाना, पुलिस चेकपोस्ट से बचने की कोशिश, गलत तरह से सड़क किनारे खड़े किए गए रेत-बजरी से लदे ट्रकों के चलते हादसे हो रहे हैं. नदी में बहुत ज्यादा खनन से बने कुंड में डूबने से होने वाली मौत को भी एनसीआरबी को अलग से देखने की जरूरत है.”

एनसीआरबी की रिपोर्ट में सड़क दुर्घटना, तेज रफ्तार, ओवर-लोडिंग, डूबने या दुर्घटनाओं जैसी श्रेणियां होती हैं. लेकिन खनन के चलते होने वाली दुर्घटनाओं को अलग श्रेणी में नहीं रखा जाता.

उत्तराखंड के स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एससीआरबी) में दुर्घटनाओं से जुड़ा डाटा तैयार कर रही सब-इंस्पेक्टर प्रीति शर्मा बताती हैं, “हम डाटा में उल्लेख करते हैं कि प्रकृति के प्रभाव के चलते डूबने से मौत हुई. खनन के चलते बने कुंड में डूबने, बाढ़ या अन्य वजह से डूबने की श्रेणी निर्धारित नहीं है.”

एनसीआरबी के लिए सड़क दुर्घटनाओं का डाटा तैयार करने वाले सब-इंस्पेक्टर मनमोहन सिंह बताते हैं कि सड़क हादसे में होने वाली मौत के मामलों में ओवर-लोडिंग और तेज रफ्तार जैसी करीब 35 श्रेणियां होती हैं. ऐसी कोई श्रेणी नहीं है जिसमें हम ये दर्ज करें कि खनन से जुड़े वाहन के चलते दुर्घटना हुई. इस बारे में एनसीआरबी के अधिकारियों का ईमेल के जरिए पक्ष जानने की कोशिश की गई. उनका जवाब मिलने पर इस खबर को अपडेट किया जाएगा.

यमुना किनारे रेत खनन का असर स्थानीय लोगों के जीवन पर भी पड़ रहा है.

यमुना किनारे रेत खनन का असर स्थानीय लोगों के जीवन पर भी पड़ रहा है.

वर्षा सिंह

एसएएनडीआरपी के कोऑर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर खनन के लिए स्थानीय समुदाय को साथ लेकर निगरानी समिति बनाने का सुझाव देते हैं. इनका कहना है, “सरकारी अधिकारियों को कैसे पता चलेगा कि खनन किस तरह हो रहा है. इसमें लोगों की भागीदारी जरूरी है. नदी किनारे रहने वाले लोगों को पता होता है कि खनन वैध है या अवैध. दिन या रात, मशीन या लोग, बहती नदी या नदी किनारे, किस स्तर तक खनन हो रहा है. स्थानीय लोग अहम कड़ी हैं. वे निगरानी में शामिल होंगे तभी इसका नियमन ठीक से किया जा सकेगा.”

जवाबदेही तय हो!

वेदितम संस्था से जुड़े पर्यावरण कार्यकर्ता सिद्धार्थ अग्रवाल कहते हैं, “खनन से जुड़े मामलों में पारदर्शिता लाना सबसे ज्यादा जरूरी है. ये सार्वजनिक होना चाहिए कि देशभर में रेत खनन के लिए कहां-कहां अनुमति दी गई है. अवैध या अनियमित खनन पर केंद्र या राज्य स्तर पर क्या कार्रवाई की जा रही है. मुश्किल ये है कि खनन से जुड़े मामलों में सरकार की तरफ से कोई दृढ़ इच्छाशक्ति नहीं दिखाई देती.”

रीवर ट्रेनिंग नीति के मुताबिक हर साल बरसात के बाद नदी में कितना रेत-बजरी-पत्थर और मलबा जमा होता है इसी आधार पर ये तय किया जाता है कि अक्टूबर से मई-जून तक खनन के दौरान नदी से कितना उपखनिज निकाला जा सकता है. वन विभाग हर वर्ष ये खनन रिपोर्ट तैयार करता है. आईआईटी कानपुर में डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ साइंस में प्रोफेसर राजीव सिन्हा मानते हैं कि नदी में तय सीमा से अधिक गहराई में खनन होता ही है. “हमने हल्द्वानी में गौला नदी के अंदर सर्वे किया. खनन की मात्रा के आकलन का बेहतर वैज्ञानिक तरीका तैयार करने पर हम काम कर रहे हैं. लेकिन ये कानून-व्यवस्था से जुड़ा मामला भी है. नदी में खनन से बने कुंड से होने वाली मौत इसका एक नतीजा हैं. साथ ही इससे नदी का पूरा इकोसिस्टम बदल जाता है.” सर्वे का काम अभी जारी है.

सरकार ने रेत खनन की मॉनीटरिंग और लगातार निगरानी से जुड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपने एक आदेश में कहा था कि दिशा-निर्देशों के होते हुए भी जमीनी स्तर पर अवैध खनन हो रहा है और ये सबको अच्छी तरह पता है.

(साभार- MONGABAY हिंदी)

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