आरोप है कि वन एवं वन्य जीव विभाग से आवश्यक मंजूरी और अनुमति के बिना ही इसके लिए निर्माण कार्य शुरू हो गया है.
इस विनाश को रोकने का क्या कोई रास्ता है?
पक्षी अभयारण्य को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र मार्च 2019 में अधिसूचित किया गया था.
अधिसूचना के अनुसार, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र “जय प्रकाश नारायण (सुरहा ताल) पक्षी अभयारण्य की सीमा के चारों ओर एक किलोमीटर का एक दायरा है और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र का क्षेत्रफल 27 वर्ग किलोमीटर है.”
अधिसूचना में कहा गया है कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र को वाणिज्यिक या आवासीय या औद्योगिक गतिविधियों के लिए क्षेत्रों में परिवर्तित नहीं किया जाएगा. इसमें उल्लेख किया था कि अभयारण्य के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में वाणिज्यिक खनन, पत्थर की खदान और क्रशिंग इकाइयों, प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योगों, नई आरा मिलों, जलविद्युत परियोजना और ईंट भट्टों जैसी गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जाएगा.
अधिसूचना में यह भी स्पष्ट किया गया था कि अभयारण्य क्षेत्र की सीमा से एक किलोमीटर के भीतर या पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र की सीमा तक, जो भी निकट हो, किसी भी नए वाणिज्यिक होटल / रिसॉर्ट और किसी भी प्रकार के नए वाणिज्यिक निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी.
वर्तमान मामले में अभयारण्य के अंदर विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य चल रहा है.
नाम नहीं छापने की शर्त पर उत्तर प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, विश्वविद्यालय, पर्यावरण और वन्य जीवन को खतरे में डालने के बावजूद अभयारण्य के भीतर काम कर रहा है.
उन्होंने कहा, “अब, विश्वविद्यालय के नवीनीकरण पर कई सौ करोड़ खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इसके लिए आवश्यक अनुमति नहीं ली गई. यह एक दुखद स्थिति है, हालांकि सभी जानते हैं कि अभयारण्य प्रवासी पक्षियों सहित कई पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है.”
उत्तर प्रदेश के वन विभाग के एक अधिकारी ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर बातचीत की. उन्होंने विश्वविद्यालय के लिए एक वैकल्पिक साइट के बारे में हाल ही में बातचीत होने की बात स्वीकारी. उन्होंने कहा कि इस तरह की बातचीत के बावजूद कुछ भी नहीं हुआ.
“कुछ समय पहले विश्वविद्यालय को एक दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने के बारे में बातचीत हुई थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वन्यजीव निकायों से कोई मंजूरी नहीं ली गई है, न राज्य पर औन ही केंद्रीय स्तर पर. साल के कुछ महीनों के दौरान अभयारण्य का एक हिस्सा पानी के भीतर रहता है और विश्वविद्यालय जाने वालों को नावों का उपयोग करना पड़ता है. क्या, छात्र, विश्वविद्यालय तक पहुंचने के लिए नावों का उपयोग करेंगे,” अधिकारी ने सवाल किया.
मनोज मिश्रा कहते हैं कि इस इको सेन्सिटिव जोन की सीमा स्पष्ट रूप से निर्धारित है फिर भी यहां विश्वविद्यालय का कैंपस प्लान कर दिया गया, यह आश्चर्यजनक है.
उन्होंने कहा, “स्थानीय समाचारों में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि विश्वविद्यालय परिसर को स्थानांतरित करने के लिए एक वैकल्पिक स्थान का चयन किया गया था, लेकिन यह काम पूरा नहीं हुआ.”
(साभार- MONGABAY हिंदी)