अर्थशास्त्री वाणी कांत बरुआ के शोध से यह खुलासा हुआ कि भारत में एक व्यक्ति की औसत आयु में भी उसकी जाति और सामाजिक परिस्थितियां एक बड़ी भूमिका निभाती हैं.
स्त्रियों को केंद्र में रखकर इसी प्रकार का एक और शोध इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ दलित स्टडीज द्वारा 2013 में किया गया था, जिसे बाद में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अपने एक स्त्री संबंधी विशेष अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में उद्धृत किया था.[ii]
इस शोध में पाया गया कि पुरुषों और स्त्रियों की औसत उम्र में बहुत फर्क है. स्त्रियों में जाति के स्तर पर जो फर्क हैं, वे और भी चिंताजनक हैं. शोध बताता है कि औसतन दलित स्त्री कथित उच्च जाति की महिलाओं से 14.5 साल पहले मर जाती है. 2013 में दलित स्त्रियों की औसत आयु 39.5 वर्ष थी जबकि ऊंची जाति की महिलाओं की 54.1 वर्ष.
इसी तरह, एक ‘पिछड़े’ या कम विकसित राज्य में रहने वाले और विकसित राज्य में रहने वाले लोगों की औसत उम्र में बड़ा फर्क है. “पिछड़े राज्यों” के लोगों की औसत उम्र सात साल कम है. विकसित राज्य में रहने वाले लोगों की औसत उम्र 51.7 वर्ष है, जबकि पिछड़े राज्यों की 44.4 वर्ष.[iii]
इसका मतलब यह नहीं है कि उच्च जातियों के सभी लोग 60 वर्ष जीते हैं और बहुजन तबकों के 43 से 50 साल के बीच, लेकिन अध्ययन बताता है कि भारत में विभिन्न सामाजिक समुदायों की “औसत उम्र” में बहुत ज्यादा फर्क है.
इस शोध से सामने आए तथ्यों से भारत में मौजूद भयावह सामाजिक असमानता उजागर होती है और हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे विकास की दिशा ठीक है? क्या सामाजिक रूप से कमजोर तबकों के कथित कल्याण के लिए राज्य द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त हैं?
संदर्भ:
[i] Vani Kant Borooah (2018), “Caste, Religion, and Health Outcomes in India, 2004-14”, economic and political weekly, Vol. 53, Issue No. 10, 10 March
[ii] UN Women Report (2018),“Turning promises into action: Gender equality in the 2030 Agenda for Sustainable Development”, Retrieved from: ‘https://www.unwomen.org/en/digital-library/publications/2018/2/gender-equality-in-the-2030-agenda-for-sustainable-development-2018’
[iii] Vani Kant Borooah (2018), “Caste, Religion, and Health Outcomes in India, 2004-14”, economic and political weekly, Vol. 53, Issue No. 10, 10 मार्च.
(साभार- जनपथ)