वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन इनिशिएटिव (डब्लूडब्लूए) के मुताबिक अगर धरती का तापमान दो डिग्री तक बढ़ा तो कभी कभार होने वाली हीटवेव हर पांच साल में हो सकती है.
वैज्ञानिक कहते हैं कि उनके नतीजों में हीटवेव की मार के आंकड़े “संभवत: काफी कम” होंगे. उन्होंने चेतावनी दी है कि “भविष्य में ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस तरह की हीटवेव की संख्या अधिक होंगी और तापमान अधिक ऊंचा रहेगा.” आईआईटी मुंबई की प्रोफेसर अर्पिता मंडल जो कि इस रिसर्च टीम का हिस्सा हैं मानती हैं कि हीटवेव से मरने वालों की संख्या की “अंडर रिपोर्टिंग” होती है यानी वह कम बताई जाती है और इस बारे में सार्वजनिक रूप से “शायद ही कोई आंकड़ा” उपलब्ध हो.
रिपोर्ट के मुताबिक धरती की तापमान वृद्धि अगर 2 डिग्री तक होती है (जो कि अभी 1.2 डिग्री मानी जा रही है) तो फिर हीटवेव की संख्या में दो से 20 गुना तक बढ़ोतरी हो सकती है.
हीटवेव क्लाइमेट आपदा से कम नहीं
वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती का तापमान बढ़ने के साथ हीटवेव की मारक क्षमता और आवृत्ति इतनी बढ़ जाएगी की उन्हें जलवायु आपदा यानी क्लाइमेट डिजास्टर (जलवायु जनित आपदा) की श्रेणी में रखना होगा. इस साल जहां राजस्थान के कुछ शहरों और दिल्ली के कुछ हिस्सों में तापमान 49 डिग्री को पार कर गया, वहीं पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में यह 50 डिग्री तक पहुंच गया. भारत और पाकिस्तान में कुल मिलाकर 160 करोड़ लोग रहते हैं, यानी दुनिया की आबादी का पांचवा हिस्सा. इनमें आधे से ज्यादा लोग बहुत गरीब हैं. हीटवेव से मजदूरों, रेहड़ी-पटरी वालों या रिक्शावाले जैसे गरीब लोगों को सबसे ज़्यादा चोट पहुंचेगी, जो कि प्रतिदिन की कमाई पर जीते हैं और जिनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है. इन लोगों के लिए हीटवेव न केवल उनकी रोज़ी-रोटी पर खतरा है, बल्कि स्वास्थ्य बिगड़ने की स्थिति में इनके पास उपचार का खर्च भी नहीं होगा.
इंपीरियल कॉलेज लंदन की डॉ फ्रेडरिक ऑटो कहती हैं, “जिन देशों के आंकड़े हमारे पास उपलब्ध हैं वहां पता चलता है कि हीटवेव एक्सट्रीम वेदर का सबसे घातक स्वरूप है. इसके साथ ही यह एक्सट्रीम वेदर की वे घटनाएं हैं जो गर्म होते ग्रह पर सबसे तेजी से बढ़ रही हैं. जब तक ग्रीन हाउस गैस एमीशन बढ़ेंगे यह आपदाएं आम होती जाएंगी.”
यह याद दिलाना भी महत्वपूर्ण है कि हीटवेव के दौरान ही हिमालयी जंगल धधक रहे थे. जानकार याद दिलाते हैं कि बढ़ता तापमान आपदाओं को और भयानक करेगा, जिसकी मार उन लोगों पर पड़नी है जिनका कार्बन उत्सर्जन में काफी कम हिस्सा है.
प्रो मंडल कहती हैं, “हीटवेव में जंगलों की आग और यहां तक कि सूखे की घटनाएं बढ़ाने की क्षमता है. हज़ारों लोग जो इन क्षेत्रों में रहते हैं और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में जिनका हाथ बहुत कम है, इसकी मार झेल रहे हैं और जब तक वैश्विक उत्सर्जन कम नहीं होंगे उनकी समस्याएं बनी रहेंगी.”