दिल्ली के मुंडका इलाके में सीसीटीवी कंपनी के दफ्तर में भीषण आग लगने के बाद रात भर मची अफरा-तफरी के बीच से ग्राउंड रिपोर्ट.
मुंडका में आगजनी की शिकार बिल्डिंग देखने के बाद हम संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल गए. अस्पताल के बाहर कंपनी में काम करने वालों के परिजनों का तांता लगा था.
यहां मौजूद लोगों में थोड़ा गुस्सा था, क्योंकि प्रशासन ने घायलों या मृतकों की कोई जानकारी या सूची जारी नहीं की थी. लोगों के परिजन लापता थे. अस्पताल में भी किसी के पास कोई जानकारी नहीं थी.
कुछ परिजनों ने हमें बताया मोर्चरी हाउस में कुछ डेड बॉडी रखी हुई हैं, लेकिन उनकी पहचान के बारे में कोई जानकारी किसी के पास नहीं है.
रात के करीब 3 बजे अस्पताल के गेट पर नदीम एक आधार कार्ड के साथ खड़े थे. उनकी आंखें गीली हैं. वह मीडिया के कैमरे में नहीं आना चाहते, वह सिर्फ आधार कार्ड की फोटो खींचने के लिए ही कहते हैं.
वह रुंधे हुए गले से कहते हैं, “जब आग लगी थी तभी मेरे पास मुस्कान की वीडियो कॉल आई थी. मुझसे बात करते हुए वह बहुत घबरा रही थी. वीडियो में सिर्फ धुंआ धुंआ दिखाई दे रहा था. बात करते-करते फोन कट हो गया. इसके बाद से मुस्कान की कोई खबर नहीं है. मैं तब से बहुत परेशान हूं. वह पिछले करीब दो साल से वहां काम कर रही थी. वह कॉलिंग का काम करती थी. उसे कंपनी में 13-14 हजार रुपए सैलरी मिलती थी. वह अपने परिवार के साथ सुल्तानपुर में रहती थी.”
नदीम कहते हैं, “फोन कटने के 10 मिनट बाद ही मैं घटनास्थल पर पहुंच गया था. तब से मैं भटक रहा हूं. कभी कंपनी तो कभी अस्पतालों के चक्कर काट रहा हूं. लेकिन मुस्कान का कुछ पता नहीं चल रहा है.”
19 वर्षीय पूजा भी उसी बिल्डिंग में काम करती थीं. रात के तीन बजे उनकी बहन मोनी संजय गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल के गेट पर बैठी मिलीं. वो कहती हैं, “मेरी बहन परिवार में इकलौती कमाने वाली थी. कई अस्पतालों में ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिली. आग लगने के बाद से हम अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं लेकिन कुछ पता नहीं चल पा रहा है.”
हमने संजय गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल में काम करने वाले डॉक्टरों से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बात करने से साफ मना कर दिया.
अस्पताल में बतौर गार्ड तैनात 37 वर्षीय सुरेंद्र कुमार कहते हैं, “मेरी शिफ्ट रात 9:30 बजे शुरू हुई. जब मैं आया था तब तीन- चार मरीज आए थे. वह जले हुए थे. डॉक्टरों ने इलाज के बाद उन्हें घर भेज दिया. बाकी जो ज्यादा घायल थे उन्हें सफदरजंग और एम्स रेफर कर दिया.”
रात के करीब 3:30 बजे हम वापस मुंडका पहुंचे. जलकर खाक हो चुकी उस बिल्डिंग में हमें घुसने का मौका मिला. एक गली से बिल्डिंग में एंट्री करने का एक गेट लगा है. यह गेट बमुश्किल तीन फीट चौड़ा है. रास्ता इतना ही चौड़ा है कि एक बार में एक या दो ही लोग एक साथ अंदर बाहर आ जा सकते हैं. एंट्री करते ही एक लिफ्ट है और उसकी बगल में एक सीढ़ी है जो ऊपर के फ्लोर पर जाती है. पहली मंजिल पर पहुंचते ही भारी तपिश के बीच धुंए से दम घुटना शुरू हो जाता है. दीवारों और छत से गर्म पानी रिस रहा है और उसकी बूंदे टिप-टिप कर नीचे गिर रही हैं. दीवारें, गेट सभी तप रहे थे.
हर फ्लोर पर कांच बिखरा पड़ा था. फर्नीचर, कागजात व अन्य सामान जलकर राख हो चुके थे. इमारत की पहली मंजिल पर कई जगहों से अभी भी धुआ निकल रहा था. एक कोने में आग की धीमी लपटें अभी भी दिखाई दे रही थीं. इमारत का सरसरी तौर पर मुआयना करने पर हमने पाया कि इस बिल्डिंग में फायर फाइटिंग उपकरण नहीं थे. किसी आपातकालीन स्थिति में आग बुझाने की कोई सुविधा नहीं थी.
घटनास्थल पर मौजूद बाहरी जिला दिल्ली डीसीपी समीर शर्मा ने 27 लोगों के मौत की पुष्टि की. जबकि लगभग 12 लोग घायल बताया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर घटना पर शोक जताया और प्रधानमंत्री राहत कोष से मृतकों और घायलों के परिवार के लिए राहत का ऐलान भी किया है.
मृतकों के आश्रितों को दो लाख रुपये और घायलों को 50 हजार रुपए दिए जाने की घोषणा की गई है.