उत्तराखंड के गंगोत्री मार्ग के घने जंगल मुश्किल में हैं. यहां हजारों देवदार और अन्य प्रजातियों के पेड़ काटे जा सकते हैं.
सड़क चौड़ाई को लेकर विवाद
चार धाम यात्रा मार्ग की चौड़ाई कितनी हो इसे लेकर शुरू से विवाद रहा. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्च स्तरीय कमेटी (एचपीसी) में दो राय थी. पहली राय सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर रखने की थी लेकिन दूसरी राय 10 मीटर चौड़ी सड़क (डीएलपीएस) बनाने की थी. सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2020 के अंतरिम आदेश में सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर रखने की बात कही लेकिन पिछले साल 14 दिसंबर को यात्रा मार्ग की चौड़ाई 10 मीटर रखने का आदेश पास कर दिया.
इस साल कोर्ट के फैसले के बाद कमेटी के अध्यक्ष पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने इस साल जनवरी में इस्तीफा दे दिया. और कहा कि सड़क की चौड़ाई बढ़ाने के लिए सड़क मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय को ढाल की तरह इस्तेमाल किया है. उच्च स्तरीय कमेटी के अध्यक्ष अब जस्टिस (रिटायर्ड) ए के सीकरी हैं. इस कमेटी के जिम्मे अभी जो काम हैं उनमें मलबे का उचित निस्तारण, पहाड़ों का सीमित और वैज्ञानिक रूप से सही कोण पर कटान, तीर्थयात्रियों और स्थानीय लोगों के लिए फुटपाथ निर्माण और वन्य जीवों के लिए कॉरिडोर आदि को सुनिश्चित करना है.
चार धाम यात्रा मार्ग केस में सक्रिय रहे हेमन्त ध्यानी– जो एचपीसी के सदस्य भी हैं, कहते हैं कि एचपीसी की रिपोर्ट में भी यह बात दर्ज है कि झाला और भैंरोघाटी के बीच अगर 5.5 मीटर चौड़ी सड़क बनती है तो भी 3000 से अधिक देवदार के पेड़ कटेंगे.
ध्यानी के मुताबिक, “भागीरथी इको सेंसटिव जोन के संवेदनशील क्षेत्र होने के नाते भी सड़क मंत्रालय और सीमा सड़क संगठन दोनों ने पहले गंगोत्री से उत्तरकाशी के बीच सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर से 7 मीटर तक ही रखने का निर्णय लिया था. यदि अब भी सड़क मंत्रालय (डीएलपीसी) की जिद को छोड़ इस हिस्से में अपने पूर्व निर्णय को क्रियान्वित करता है तो काफी हद तक पर्यावरण के नुकसान को कम किया जा सकता है.”
हर साल होता है विनाश
हर साल भूस्खलन और पहाड़ धंसने की नई घटनाओं से हाईवे निर्माण सवालों में रहता है. इस साल भी मॉनसून से पहले ही ऋषिकेश-बदरीनाथ हाइवे से ऐसी तस्वीरें आने लगीं हैं. इससे पहले उत्तरकाशी जिले में ऐसी दुर्घटनायें हुईं हैं जिसमें लोगों की जान गई है. हिमालयी भूर्गभशास्त्र के जानकार और टिहरी स्थित कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री, रानीचौरी में प्रोफेसर एस पी सती कहते हैं, “सड़क बनाने में रिपोज़ एंगल काफी अहम है. यह कोण सड़क और पहाड़ को स्थायित्व देता है लेकिन हमने देखा है कि चारधाम यात्रा मार्ग में पहाड़ों को खड़ा काटा गया है जिससे कई क्षेत्रों में नए लैंड स्लाइड जोन पिछले कुछ सालों में पैदा हो गए हैं.”
सती ऋषिकेश-चम्बा रोड का उदाहरण देकर कहते हैं कि पिछले 2-3 सालों में हमने वहां करीब 8 जगह भूस्खलन होता देखा है जहां पहले यह समस्या नहीं थी. सती के मुताबिक, “गंगोत्री हाईवे के जिस रास्ते में देवदार के पेड़ काटे जा रहे हैं वह काफी संवेदनशील है. इसलिए सड़क की चौड़ाई और पेड़ों के संरक्षण के बीच तालमेल होना चाहिए.”
ग्लेशियरों के लिए ढाल
उत्तराखंड का पहाड़ी क्षेत्र हर साल फॉरेस्ट फायर की चपेट में होता है और यहां के जंगल इस साल भी धू-धू कर जल रहे हैं. इस साल 10 दिन के भीतर आग की घटनायें दो गुनी हो गईं. उत्तरकाशी जिले में भी बड़े क्षेत्र में जंगल स्वाहा हो गए हैं. ऐसे में ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरों को देखते हुए गोमुख जैसे महत्वपूर्ण ग्लेशियर के लिए यह जंगल ढाल की तरह हैं और इनके न रहने से ये अधिक तेजी से पिघलेंगे.
गोमुख से उत्तरकाशी तक के 100 किलोमीटर क्षेत्र को साल 2012 में यूपीए सरकार ने एक इको सेंसटिव ज़ोन घोषित किया गया जो दर्जा अभी भी कायम है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) ने 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद जो लैंड स्लाइड जोन चिन्हित किए थे उनमें करीब 30 भागीरथी इको सेंसटिव जोन पड़ते में हैं जहां पेड़ काटे जाएंगे.
(साभार- Mongabay हिंदी)
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?