मीडिया की आजादी: भारत सरकार ने ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की रिपोर्ट को मानने से किया इनकार

सरकार भले ही आरएसएफ की रिपोर्ट को मानने से इनकार कर रही है लेकिन बात-बात पर पत्रकारों की होने वाली गिरफ्तारी और उनपर होने वाले हमले, भारत में मीडिया की आजादी की हकीकत बयां करते हैं.

WrittenBy:बसंत कुमार
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ हर साल ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ जारी करता है. जिसमें अलग-अलग देशों में मीडिया काम करने में कितना आजाद है, उसकी स्थिति बताई जाती है. भारत सरकार ने इस रिपोर्ट की विश्वनीयता पर ही सवाल उठाते हुए इसे मानने से इंकार कर दिया है.

मंगलवार, 22 मार्च को लोकसभा में इसको लेकर लक्षद्वीप के कांग्रेस सांसद मोहम्मद फैज़ल पीपी ने सवाल पूछा कि क्या सरकार इस बात से अवगत है कि वर्ष 2021 में ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा संकलित विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में सूचीबद्ध 180 देशों मे से भारत 142वें स्थान पर है, जो वर्ष 2020 की तुलना में दो स्थान नीचे है. और यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है?

इस सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की रिपोर्ट को मानने से ही इंकार कर दिया. लिखित जवाब में ठाकुर बताते हैं, ‘‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक का प्रकाशन एक विदेशी गैर सरकारी संगठन ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा किया जाता है. सरकार इसके विचारों और देश की रैंकिंग को नहीं मानती है.’’

आगे जवाब में कहा गया है, ‘‘इस संगठन द्वारा निकाले गए निष्कर्षों से विभिन्न कारणों से सहमत नहीं है. जिसमें नमूने का छोटे आकार, लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को बहुत कम या कोई महत्व नहीं देना, एक ऐसी कार्यप्रणाली को अपनाना जो संदिग्ध और गैर पारदर्शी हो, प्रेस की स्वतंत्रता की स्पष्टल परिभाषा का आभाव आदि शामिल है.’’

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute
22 मार्च को लोकसभा में अनुराग ठाकुर द्वारा दिया गया जवाब

‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ को आरएसएफ के नाम से भी जाना जाता है. इसका मुख्य कार्यालय पेरिस में है. आरएसएफ साल 2002 से विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जारी करता है. बीते कुछ सालों से लगातार इसकी रेटिंग में भारत पिछड़ता नजर आ रहा है. साल 2017 में भारत 136वें स्थान पर था जो, साल 2018 में 138वें, साल 2019 में 140वें, 2020 में 142वें तो वहीं 2021 में भी 142वें स्थान पर है.

‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने पिछले साल ‘प्रेस की आजादी के ‘हमलावरों’ की सूची जारी की थी. इस सूची में अलग-अलग देशों के प्रमुखों का नाम था. इसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत और कई नेता शामिल हैं.

‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने पिछले साल ‘प्रेस की आजादी के हमलावरों’ के नाम से नेताओं की लिस्ट जारी की थी. इसमें भारत के पीएम नरेंद्र मोदी का भी नाम शामिल है.

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब सरकार ने आरएसएफ की रिपोर्ट को मानने से इंकार किया है. बीते साल दिसंबर में भी ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की रिपोर्ट पर सवाल पूछा गया था. इस सवाल के जवाब में भी अनुराग ठाकुर ने वहीं जवाब दिया था जो मार्च 2022 में दिया है.

21 दिसंबर 2021 को लोकसभा में अनुराग ठाकुर ने यह जवाब दिया था, दोनों जवाब में कोई अंतर नहीं है.

इस पर वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘दरअसल सरकार आंकड़े को मानना ही नहीं चाहती है. ये सरकार तो कई बार अपनी एजेंसियों द्वारा दिए गए डेटा को भी नहीं मानती है. पत्रकारों पर हमले को लेकर सिर्फ आरएसएफ ही रिपोर्ट जारी नहीं करता है. भारत में इसको लेकर अलग-अलग संस्थाएं भी रिपोर्ट जारी करती हैं. सरकार को अगर लोकतंत्र की इतनी ही चिंता है तो देश की जो संस्थाएं रिपोर्ट जारी करती हैं. प्रेस काउंसिल या एडिटर्स गिल्ड ने कितने मामलों में हस्तक्षेप किया है. वो देख लें. थानों से एफआईआर मांग ले.’’

श्रीवास्तव आगे कहते हैं, ‘‘हर किसी का अलग-अलग मानक है. कोई स्टेंडर मानक तो है नहीं, अगर सरकार को उनके (आरएसएफ) डेटा कलेक्शन से कोई दिक्क्त है तो वो खुद एक स्टेंडर्ड डेटा कलेक्शन का तरीका बता दें या एनसीआरबी को यह जिम्मेदारी दें कि वह अपने इंडेक्स में पत्रकारों को मारे जाने को भी जोड़े. ऐसा कर सरकार खुद ऑफिसियल डेटा जारी कर सकती है. अगर सरकार खुद ऑफिसियल डेटा जारी नहीं कर रही है तो उसे अनऑफिसियल डेटा को अस्वीकार करने का नैतिक अधिकार नहीं है.’’

क्या भारत में मीडिया आजाद है?

जिस वक्त अनुराग ठाकुर लोकसभा में यह जवाब दे रहे थे उसी वक्त सोशल मीडिया पर पत्रकार गौरव अग्रवाल का वीडियो वायरल हो रहा था. अग्रवाल उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में पंजाब केसरी के साथ जुड़े हुए थे. वायरल वीडियो में वे आगरा के एक थाने में कांपते नजर आते हैं.

32 वर्षीय अग्रवाल 8 मार्च को आगरा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में रिपोर्टिंग कर रहे थे. वहां हुए एक विवाद के बाद पुलिस ने उन्हें रात 11 बजे उनके घर से गिरफ्तार कर लिया था. जिसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. आरोप है कि जेल भेजने से पहले उन्हें थाने में प्रताड़ित किया गया.

उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हमले की अक्सर ही खबरें आती रहती हैं. सरकारी स्कूल में मिड डे मील में बच्चों को नमक-रोटी दिए जाने पर रिपोर्ट करने वाले पवन जायसवाल और कोरोना काल में क्वारंटीन सेंटर की बदइंतजामी दिखाने पर पत्रकार पर हुई एफआईआर प्रदेश में मीडिया की आजादी की सच्चाई बताती है. यूपी में बीते साल एक टीवी पत्रकार सुलभ श्रीवास्तव की हत्या कर दी गई. जबकि एक रोज पहले ही उन्होंने अधिकारियों से सुरक्षा की मांग की थी.

यूपी ही नहीं देश के अन्य राज्यों से भी लगातार पत्रकारों पर हमले या गिरफ्तारी की खबरें आती रहती हैं. इसी महीने के पहले सप्ताह में छत्तीसगढ़ की रायपुर पुलिस ने पत्रकार और राजनीतिक व्यंग्यकार नीलेश शर्मा को कांग्रेस कार्यकर्ता की शिकायत के बाद गिरफ्तार कर लिया था. 2 मार्च को गिरफ्तार किए गए शर्मा बीते 21 दिनों से जेल में हैं. निचली अदालत ने उनकी जमानत की अर्जी रद्द कर दी है.

साल 2020 में छत्तीसगढ़ के कांकेर में वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला पर थाने के सामने हमला हुआ था. इस हमले में उनके साथ जमकर मारपीट हुई थी.

कमेटी अगेन्स्ट एसॉल्ट ऑन जर्नलिस्ट ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पास होने के बाद इस बिल के खिलाफ शुरू हुए प्रदर्शन, उसके समर्थन में निकाली गई रैलियों और बीते दिनों दिल्ली में हुए दंगे के दौरान 32 ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें पत्रकारों के साथ मारपीट या उन्हें उनके काम करने से रोकने की कोशिश हुई है.

ऐसे तमाम रिपोर्ट्स आती हैं जिसमें पत्रकारों को प्रशासन, राजनेताओं और माफियाओं द्वारा हमला कर परेशान किया जाता है. कई मामलों में सालों तक जेल में रखा जाता है तो कई में हत्या तक कर दी जाती हैं.

सांसद फैज़ल पीपी ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर भी सवाल किया. इसके जवाब में अनुराग ठाकुर कहते हैं, ‘‘केंद्र सरकार पत्रकारों सहित देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा और रक्षा को सर्वोच्च महत्व देती है. पत्रकारों की सुरक्षा पर विशेष रूप से 20 अक्टूबर 2017 को राज्यों को एक एडवाजरी जारी की गई थी. जिसमें पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून को सख्ती से लागू करने के लिए कहा गया था.’’

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) ने 2021 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया कि इस साल पूरे विश्व में 293 पत्रकारों को उनकी पत्रकारिता को लेकर जेल में डाला गया जबकि 24 पत्रकारों की मौत हुई है. अगर भारत की बात करें तो यहां कुल पांच पत्रकारों की हत्या उनके काम की वजह से हुई है.

अनुराग ठाकुर, हिमाचाल प्रदेश के रहने वाले हैं. राज्य की हमीरपुर लोकसभा सीट से सांसद हैं. कोरोना काल में यहां कई पत्रकारों पर सरकारी विफलता दिखाने के कारण एफआईआर दर्ज हुई थी और उन्हें परेशान किया गया था.

किसान आंदोलन के समय भी पत्रकारों को गिरफ्तार करने और पुलिस द्वारा उनकी पिटाई करने के कई मामले सामने आए थे.

ऐसे में सरकार ने एडवाजरी तो जारी कर दी, लेकिन आए दिन पत्रकारों पर होने वाले हमले और एफआईआर से जुड़ी खबरें, यह बताने के लिए काफी हैं कि भारत में मीडिया की क्या स्थिति है.

Also see
article imageक्या है थाने में खड़े पत्रकार की वायरल वीडियो का पूरा मामला?
article imageटीआरपी और कश्मीर फाइल्स की भेंट चढ़ी खबरिया चैनलों की पत्रकारिता
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like