मध्य प्रदेश में शहडोल के अलावा अनूपपुर, उमरिया, सीधी, डिंडौरी सहित छत्तीसगढ़ से सटे अन्य कई जिलों में हाथियों की हलचल है.
“मैंने छत्तीसगढ़ के बाद अब मध्य प्रदेश के हाथी के विचरण क्षेत्र में आने वाले गांवों में पर्चा बांटकर लोगों को जागरूक करना शुरू किया है,” उन्होंने बताया.
मध्य प्रदेश में शहडोल के अलावा अनूपपुर, उमरिया, सीधी, डिंडौरी सहित छत्तीसगढ़ से सटे अन्य कई जिलों में हाथियों की हलचल है.
दरअसल ये हाथी मध्य प्रदेश के जंगल के नहीं हैं, बल्कि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के जंगलों से आए हैं.
मध्य प्रदेश के जंगलों के लिए नए हैं हाथी
बाघ की संख्या के मामले में देश में अव्वल मध्य प्रदेश के जंगलों में हाथी न के बराबर पाए जाते हैं. 2019 में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश में सात हाथी हैं. हालांकि, खाने की तलाश में हाथी मध्य प्रदेश के जंगलों का रुख करते हैं और फिर वापस छत्तीसगढ़ के जंगलों में चले जाते हैं.
साल 2021 में हाथियों से बढ़ते टकराव को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने एक कमेटी बनाई थी. कमेटी के सदस्य और मध्य प्रदेश राज्य वन्यप्राणी बोर्ड के सदस्य अभिलाष खांडेकर ने कमेटी की रिपोर्ट के बारे में बताया.
“हमने जनवरी 2022 में इस रिपोर्ट को सरकार को सौंपा था. रिपोर्ट में हमने पाया था कि वन विभाग के पास हाथियों को संभालने का अनुभव नहीं है, इसलिए उनकी ट्रेनिंग होनी चाहिए. साथ ही हाथियों के लिए अभयारण्य बनाए जाने का सुझाव भी रिपोर्ट में है,” उन्होंने कहा.
इस एक्सपर्ट कमेटी में चेयरमैन तत्कालीन प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (वन्यजीव) आलोक कुमार थे. इनके अतिरिक्त हाथियों के विशेषज्ञ आर सुकुमार, अभिलाष खांडेकर, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) के विवेक मेनन, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ- इंडिया के सौमेन डे, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट (आईआईएफएम) से प्रो. योगेश दुबे, और बांधवगढ़ के फील्ड डायरेक्टर बीएस अन्नीगिरी, इस कमेटी के सदस्य थे.
कमेटी बनाने की जरूरत जंगल में आग लगने की घटनाओं के बाद शुरू हुई.
खांडेकर कहते हैं कि 2021 में बांधवगढ़ के जंगल में आग लगने की घटनाएं बढ़ गईं थी. पता चला कि हाथी को भगाने के लिए लोग ऐसा कर रहे हैं. इंसान और हाथियों के टकराव को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत महसूस हुई.
इस रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में इंसानों और हाथियों के बीच टकराव में पहली बार 2018 में दो लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद 2020 में चार लोगों की जान गईं. साल 2021 में टकराव में छह लोगों की मौत हो गई थी.
“लगभग ढ़ाई वर्ष पहले छत्तीसगढ़ से हाथियों का एक समूह मध्य प्रदेश आया और वापस ही नहीं गया. इसकी वजह यहां पानी और हरे जंगल जिसमें बांस का जंगल होना हो सकता है. छत्तीसगढ़ से आए 41 हाथी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में रहते हैं. लेकिन वे हाथी कोर एरिया में हैं और इंसानी आबादी से दूर हैं,” मध्य प्रदेश वन विभाग के प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (वन्यजीव) जेएस चौहान ने बताया.
वह कहते हैं, “जिन हाथियों का सामना इंसानों से हो रहा है वह दो झुंड में हैं. एक की संख्या सात है और दूसरे की नौ. ये अभी-अभी छत्तीसगढ़ से हमारे इलाके में घुसे हैं. खाने-पीने की खोज में इनका सामना मनुष्यों से हो रहा है और टकराव की वजह से पांच लोगों की जान चली गई.”
मध्य प्रदेश के वनों में हाथी न होने की वजह से वन विभाग के पास हाथी को संभालने का कोई खास अनुभव नहीं है.
“हमारे लोग प्रशिक्षित नहीं है. प्रदेश में हाथी आने के बाद हमने प्रशिक्षण पर ध्यान देना शुरू किया है. टाइगर रिजर्व क्षेत्र में हाथियों की निगरानी के लिए अब हमारे पास ड्रोन और अन्य संसाधन भी उपलब्ध हैं,” बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर बीएस अन्नीगिरी ने बताया.
“तत्काल हाथियों की निगरानी की जरूरत है. हमने दो तरह के दल बनाए हैं, एक हाथी के पीछे चलता है और एक उसकी चाल भांपकर आगे वाले गांव वालों को सचेत करता है. हमने ग्रामीणों को या तो जंगल न जाने या झुंड में जाने की सलाह दी है,” चौहान ने तत्कालिक तौर पर हाथियों से बचाव की कोशिशों के बारे में बताते हुए कहा.
वह कहते हैं कि एक तरीका हाथी को उठाकर उसके झुंड में शामिल करना हो सकता है, लेकिन फिलहाल यह तरीका कारगर नहीं होगा. यहां हाथी एक से अधिक हैं.
जेएस चौहान मानते हैं कि वन विभाग के साथ-साथ ग्रामीणों की भी ट्रेनिंग होनी चाहिए.
“दक्षिण भारत, पूर्वोत्तर और अन्य हाथी बाहुल्य राज्यों में वन विभाग के साथ नागरिक भी हाथियों से परिचित हैं. वे हाथी की उपस्थिति में उसके अनुकूल व्यवहार करते हैं. यहां तक कि उनके फसल में उसी मुताबिक होते हैं. इसी तरह की जागरुकता हम मध्य प्रदेश के हाथी वालों क्षेत्रों में फैला रहे हैं. डब्ल्यूटीआई (वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया) जैसी गैर सरकारी और दूसरे राज्यों की सरकारों के अधिकारियों की मदद से हम ऐसी ट्रेनिंग कर रहे हैं.”
क्या छत्तीसगढ़ से निकलना चाह रहे हैं हाथी?
छत्तीसगढ़ में 2017 में हुई हाथियों की गणना के मुताबिक राज्य में 398 हाथी हैं. हालांकि, अनुमान के मुताबिक ताजा आंकड़ा 500 तक भी हो सकता है. राज्य में हाथियों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन इसके उलट खनन और अन्य विकास गतिविधियों की वजह से उनके लिए रहने लायक स्थान कम हो रहा है.
हाल ही में छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक को अनुमति दी है. यह इलाका सरगुजा क्षेत्र में आता है जहां के जंगल हाथियों का आशियाना है. कभी छत्तीसगढ़ सरकार इस इलाके को हाथी अभयारण्य बनाना चाहती थी, लेकिन अब खनन की वजह से हाथियों का एक प्रमुख आवास छिन सकता है. लंबे समय से प्रकृति प्रेमी और स्थानीय आदिवासी इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं.
“हाथियों को अपने इलाके में किसी तरह की दखल पसंद नहीं है. खनन की वजह से इनका आवास प्रभावित होगा,” यह कहना है मंसूर खान का.
हाथियों के जानकार खान, पिछले एक दशक से छत्तीसगढ़ के हाथी वाले जंगलों में लोगों को जागरूक कर रहे हैं. खान अचानकमार टाईगर रिजर्व सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं.
खान कहते हैं कि जो जंगल बचा हुआ है उसे नहीं उजाड़ना चाहिए. हाथियों के लिए इंसान जंगल नहीं लगा सकता, यह संभव ही नहीं है.
खांडेकर ने बताया कि मध्य प्रदेश में हाथी आने की एक बड़ वजह खनन है. “छत्तीसगढ़ और ओडिशा में हाथियों के लिए पर्याप्त खाना उपलब्ध नहीं है, इसलिए वह इसकी खोज में मध्य प्रदेश के जंगलों में आ रहे हैं,” उन्होंने आगे कहा.
वह आशंका जताते हैं कि जिस तरह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के जंगलों में 300 साल बाद हाथी दिखे, उसी तरह मध्य प्रदेश में भी इनके आने का सिलसिला शुरू हुआ है. बहुत पहले कभी मध्य प्रदेश में ग्वालियर के जंगलों में हाथी हुआ करते थे.
मध्य प्रदेश में हाथियों की आमद पर खान कहते हैं कि फिलहाल मध्य प्रदेश में तकरीबन 65 हाथी हैं जो छत्तीसगढ़ से गए हैं.
“अभी हाथियों ने जाना शुरू किया है. आने वाले समय में और भी हाथी यहां से जा सकते हैं. हाथियों की प्रकृति ऐसी है कि यह एक स्थान पर टिककर नहीं रहता, बल्कि भ्रमण करता रहता है. इसे 500 से 1500 किलोमीटर तक घूमने की जगह चाहिए होती है.”
हाथियों को मध्य प्रदेश का रास्ता दिखाता त्रिदेव
खान ने एक छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के बीच आवाजाही करने वाले एक हाथी को चिन्हित किया है. उन्होंने बताया, “हमें पिछले साल बारिश से पहले यह हाथी दो छोटे हाथियों के साथ छत्तीसगढ़ के जंगलों में मिला था. हमने इसका नाम त्रिदेव रख दिया. यह हाथी इस दौरान कई बार मध्य प्रदेश गया है और जो रास्ता इसने चुना उसी रास्ते पर बाकी के हाथी आगे बढ़ रहे हैं. हमने पाया है कि त्रिदेव बाकी हाथियों के लिए रास्ता खोजता है. इस तरह हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि छत्तीसगढ़ से अभी और भी हाथी मध्य प्रदेश पहुंचेगे.”
उन्होंने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के बीच हाथियों के जाने के रास्ते पर भी अध्ययन किया है.
“हाथियों के मध्य प्रदेश में घुसने की पहल सबसे पहले सरगुजा के हाथी करते हैं. वे पहाड़ पार कर गुरुघासीदास नेशनल पार्क पहुंचते हैं फिर मध्य प्रदेश स्थित संजय दुबरी राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश करते हैं. हाथियों की मंजिल है बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, जहां पहले से एक बड़ा झुंड मौजूद है. ब्यौहारी, मरवाही, राजेंद्रग्राम से होते हुए मध्य प्रदेश में जाने वाला हाथियों का एक नया रास्ता भी हाल में देखा गया है,” खान कहते हैं.
(साभार- MONGABAY हिंदी)