बचपन में अगरबत्ती बेचने से लेकर सबसे कम उम्र के यूनिवर्सिटी वाइसचांसलर बनने तक का मनोज सोनी का सफर.
"एक स्मार्ट उम्मीदवार न केवल साक्षात्कार के लिए अच्छी तैयारी करता है, बल्कि #UPSC के अध्यक्ष और साक्षात्कार बोर्ड के प्रमुख सदस्यों की पृष्ठभूमि जानने की भी कोशिश करता है."
यह सलाह आईएएस अधिकारी जितिन यादव ने ट्वीट कर दी. उनकी सूची में पहला नाम यूपीएससी के नवनियुक्त अध्यक्ष डॉ. मनोज सोनी का था. सोशल मीडिया पर राय व्यक्त करते हुए लिखा कि कैसे सोनी की नियुक्ति मोदी सरकार द्वारा शीर्ष नौकरशाही पर भाजपा के प्रभाव को बढ़ाने का एक प्रयास है. वहीं पूर्व आईएएस और वर्तमान टीएमसी सांसद जवाहर सरकार ने ट्वीट कर सोनी की नियुक्ति को ‘एसओएस’ मानने के लिए कहा.
तो भले ही आप यूपीएससी के उम्मीदवार हों या न हों, लेकिन जो सलाह जितिन यादव ने दी, उसपर बात करते हैं और मनोज सोनी के बार में जानते हैं.
कौन हैं डॉ मनोज सोनी?
यूपीएससी की वेबसाइट पर उनके बायो में बताया गया है कि 25 वर्षों का शिक्षण अनुभव रखने वाले सोनी, दो बार (साल 2009 से 2015 तक) डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय (बीएओयू) के और 2005 से 2008 तक बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (एसएसयू) के कुलपति के रूप में काम किया. डॉ सोनी भारत में अब तक के सबसे कम उम्र के कुलपति हैं. उन्हें अंतरराष्ट्रीय मामलों के विद्वान के रूप में जाना जाता है. सोनी ने अपनी पीएचडी “शीत युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय प्रणालीगत संक्रमण और भारत-यूएस संबंध” विषय पर की है.
5 अप्रैल को यूपीएससी अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के बाद, सोनी से संबंधित खबरें कई मीडिया संस्थानों में प्रकाशित हुईं. टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित लेख का शीर्षक था "उस साधु से मिलिए जो अब यूपीएससी का प्रमुख होगा". इस खबर में बताया गया है कि कैसे सोनी ने अपने पिता के निधन के बाद परिवार की मदद के लिए अगरबत्ती बेचीं और बाद में भारत में सबसे कम उम्र के वीसी बन गए.
द बेटर इंडिया ने अगरबत्ती पर जोर देते हुए एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था, "अगरबत्ती बेचने से यूपीएससी अध्यक्ष तक: डॉ मनोज सोनी के बारे में 10 दिलचस्प तथ्य". आगे लेख में लिखा गया है कि डॉ सोनी का स्वामीनारायण संप्रदाय के अनूपम मिशन से जुड़ाव है और उन्होंने जनवरी 2020 में "निष्कर्म कर्मयोगी (निस्वार्थ कार्यकर्ता)" के रूप में दीक्षा ली.
आगे बढ़ने से पहले यह भी जान लीजिए कि 2007 की एक रिपोर्ट में लिखा गया है कि कैसे बड़ौदा में एमएस विश्वविद्यालय परिसर में डॉ मनोज सोनी को "छोटे मोदी" के नाम से बुलाया जाता था.
सोनी जिस स्वामीनारायण संप्रदाय से जुड़े हैं उसे सोखड़ा स्वामीनारायण संप्रदाय कहा जाता है. कुल पांच अलग-अलग संप्रदाय गुजरात में है जो स्वामीनारायण से जुड़े हैं. गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार नाम न छापने पर न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं कि गुजरात में स्वामीनारायण के पांच अलग-अलग संप्रदाय हैं. जिसमें सबसे बड़ा बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था है. इस संस्था ने पूरे भारत में कई मंदिरों का निर्माण किया है, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध गुजरात और दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर हैं. इस संप्रदाय के सबसे बड़े अनुयायियों में से एक खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं.
प्रमुख स्वामी महाराज, स्वामीनारायण संस्था के प्रमुख थे जिनका 2016 में निधन हो गया. पीएम मोदी का इनसे जुड़ाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महाराज को श्रद्धांजलि देने के लिए वे स्वतंत्रता दिवस के भाषण के बाद गुजरात चले गए थे.
वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, “सोनी ने 11वीं और 12वीं आणंद शहर से की है. उन्होंने सबसे पहले 12वीं साइंस संकाय में दिया था जिसमें वह फेल हो गए. उसके बाद अगली बार उन्होंने आर्ट संकाय में फिर से परीक्षा दी जिसमें वह पास हुए. इस दौरान कुछ समय के लिए सोनी ने टाइपिस्ट का भी काम किया.”
मनोज सोनी ने स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद वडोदरा के एमएस यूनिवर्सिटी से बीए और एमए की पढ़ाई की. पारीख कहते हैं, “सोनी ने दो बार यूपीएससी की परीक्षा भी दी है. पहले प्रयास में वह असफल हो गए थे. दूसरी बार में उन्होंने परीक्षा तो पास कर ली लेकिन इंटरव्यू में असफल हो गए.”
सोनी, यूपीएससी का सदस्य बनने से पहले वीसी के साथ-साथ ब्रह्म निर्झर पत्रिका का संपादन करते थे. इसके अलावा अनुपम मिशन के प्रचारक और अक्षर-पुरुषोत्तम उपासना में कथावचक थे.
वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र मोदी और सोनी के रिश्तों को लेकर न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘’‘जिस वक्त गुजरात दंगों के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराजा जा रहा था, उस समय में सोनी की किताब उनका बचाव कर रही थी.”
सोनी ने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर ‘इन सर्च ऑफ ए थर्ड स्पेस’ किताब लिखी थी. इस किताब में दंगे को ऐसे पेश करने की कोशिश की गई जो हिंदूवादी नजरिए में फिट बैठती थी.
ऐसा माना जाता है कि इस किताब के बाद ही सोनी को एनएस यूनिवर्सिटी का वीसी बनाया गया था. सोनी गुजरात फीस रेगुलेशन कमेटी के भी सदस्य थे.
एक वाकया हुआ था जब वडोदरा यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम के लिए नरेंद्र मोदी को बुलाया गया था. तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और कार्यक्रम में जाने वाले थे. लेकिन उस दौरान बाढ़ आई हुई थी जिस कारण लोगों ने उस कार्यक्रम का विरोध किया. विरोध के कारण मोदी को अपना दौरा रद्द करना पड़ा. इस घटना के वक्त सोनी वहां के कुलपति थे.
गुजरात के एक अन्य पत्रकार जो स्वामीनारायण संप्रदाय को कवर करते हैं, वह नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं “प्रदेश में जितने भी इस संप्रदाय के मंदिर हैं, उनसब से नरेंद्र मोदी के बहुत अच्छे रिश्ते हैं.”
वह आगे कहते हैं, ‘‘इस संप्रदाय को प्रदेश में 30-35 प्रतिशत आबादी मानती है. अगर प्रदेश के 10-15 प्रतिशत वोटर्स एक संप्रदाय के फॉलोवर्स हो तो उनका असर करीब 40-45 सीटों पर होता है. ऐसे में इतने बड़े वोट बैंक को वह कैसे दूर कर सकते हैं.”
क्या सोनी जिस संप्रदाय से जुड़े हैं और पीएम मोदी भी उस संप्रदाय से खास जुड़ाव रखते हैं. क्या यह भी एक वजह हो सकती है दोनों के अच्छे रिश्तों की? इस पर वह कहते हैं, “ऐसा हो सकता है. आश्रम एक तरह के सोशल क्लब हैं. इसे सोशल कैपिटलिज्म भी कह सकते हैं.”
यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कराने वाले एक शिक्षक नाम न छापने पर कहते हैं, “वैसे तो यूपीएससी का अध्यक्ष बनने के लिए यह जरूरी नहीं कि कोई पूर्व नौकरशाह ही हो. अध्यक्ष शिक्षाविद भी हुए हैं और हो सकते हैं. बस वह किसी प्रख्यात विश्वविद्यालय में पढ़ाते हों और जिन्हें कई वर्षो का अनुभव हो.”
वह आगे कहते हैं, “जो लोग आज सोनी की शिक्षा और बीजेपी-आरएसएस के संबंधों पर सवाल खड़े कर रहे हैं उन्होंने उस समय कोई सवाल क्यों नहीं किया जब वह आयोग के सदस्य बने थे.’’
सोनी के साथ एक विवाद साल 2007 में जुड़ा था जब वह एमएस यूनिवर्सिटी के वीसी थे. यूनिवर्सिटी के फाइन आर्ट्स के छात्र श्रीलमंथुला चंद्रमोहन ने परिसर में एक प्रदर्शनी में अपने कुछ चित्रों को प्रदर्शित किया. जिसका हिंदू और ईसाई छात्र गुटों ने यह कहकर विरोध किया कि इन चित्रों ने उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया है. हिंदू विरोध समूह का नेतृत्व विहिप नेता नीरज जैन ने किया था और ईसाई समूह का नेतृत्व रेव इम्मानुएल कांत ने किया.
डॉ मनोज सोनी ने इस मामले में यूजीसी को एक रिपोर्ट धार्मिक समूहों के पक्ष में लिखकर भेजी और उन्होंने चित्रों को गलत बताया. जिसके बाद एमएसयू फैकल्टी ने उनके पत्र का खंडन किया और कहा कि चित्रों की उनकी व्याख्या में बारीकियों का अभाव है और चंद्रमोहन जो संदेश अपने चित्रों के जरिए देने की कोशिश कर रहे थे, सोनी उसकी गलत व्याख्या कर रहे थे. कला संकाय के कार्यवाहक डीन प्रोफेसर शिवाजी पणिकर को चंद्रमोहन का समर्थन करने पर सोनी ने निलंबित कर दिया था.
नतीजतन, चंद्रमोहन को गुजरात पुलिस की धारा 153 (ए) द्वारा धार्मिक दुश्मनी को बढ़ावा देने और दंगे भड़ाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. चंद्रमोहन को पांच दिन जेल में बिताने पड़े. 2018 में, चंद्रमोहन वीसी कार्यालय यह पूछने गए की उन्हें उनकी स्नातकोत्तर डिग्री क्यों नहीं दी जा रही है जो उन्होंने 2007 में पूरी की थी. कोई जवाब नहीं मिलने के बाद उन्होंने वीसी के कार्यालय में आग लगा दी.
"यह परिसर में सबको पता है कि सोनी आरएसएस और भाजपा के लोगों को एमएस विश्वविद्यालय के सिंडिकेट और सीनेट में अनुमति देते थे, जो सरकार द्वारा नामित होते थे और वह विश्वविद्यालय के हर निर्णय को प्रभावित करते थे.” यह बात “यंगेस्ट वीसी: द फाइन आर्ट ऑफ भगवा थिंकिंग” शीर्षक से टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे एक लेख में लिखा गया था.