रूबिका, नाविका और अमीश की मासूम मूर्खताएं और डंकापति का मौनव्रत

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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गंगा से लेकर यमुना के किनारों तक तहजीब के नाम पर कुछ बचा नहीं है. चहुओंर मारो काटो का कोरस गूंज रहा है. इसी मसले पर इस हफ्ते का धृतराष्ट्र-संजय संवाद सुनिए. देश के बदले सूरते हाल पर विपक्षी दलों का तीखा हमला और प्रधानमंत्री की चुप्पी पर विशेष टिप्पणी.

पिछला पूरा पखवाड़ा पहले रामनवमी इसके बाद हनुमान जयंती के मौके पर हिंसा और अराजकता की चपेट में रहा. धार्मिक उन्माद ने त्यौहारों से प्यार, मनुहार, उल्लास और भाईचारे को खत्म कर दिया है. मर्यादा पुरुषोत्तम की आड़ लेकर एक तबके ने बहुत सारी मर्यादाएं तोड़ी.

इन तमाम घटनाओं पर देश के घोघाबसंत मीडिया की गदहपचीसियां जस की तस जारी रहीं. गए हफ्ते में हुड़कचुल्लू एंकर-एंकराओं की कुछ मासूम मूर्खताओं को भी दर्ज किया गया.

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