औद्योगिक राष्ट्रों को गहन अकार्बनीकरण करने की आवश्यकता है. वे दोबारा से जीवाश्म ईंधन में निवेश कर इसे स्वच्छ एवं हरित नहीं बना सकते हैं.
इस परिदृश्य में, जलवायु परिवर्तन को ऊर्जा का भविष्य बदले बिना नियंत्रित किया जा सकता है और जो कंपनियां इस व्यवसाय को अच्छे से जानती हैं, वे दुनिया को चलाना जारी रखेंगी.
इस तथ्य को भूल जाइए कि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने कहा है कि अगर दुनिया को 2050 में नेट-जीरो के ट्रैक पर बने रहने की जरूरत है तो 2020 के बाद तेल और गैस में नया निवेश नहीं हो सकता है. इससे पहले कि मैं आगे बढ़ूं, मैं भी अपने सारे पत्ते खोल देना चाहती हूं.
मेरा मानना है कि दुनिया के हमारे हिस्से के लिए गैस एक महत्वपूर्ण स्वच्छ ईंधन है. हमारे यहां कोयले से दहन से हुए उत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण की एक बड़ी चुनौती है. 1998 में, हमने सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) में वाहनों में डीजल के उपयोग को बंद करने के लिए कंप्रेसड प्राकृतिक गैस (सीएनजी) लाने की वकालत की थी. ऐसा हुआ और इससे हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ.
अब, हमारे पास देश भर में औद्योगिक बॉयलरों में कोयले का उपयोग किया जा रहा है, जिससे खराब हवा के कारण स्वास्थ्य संबंधी बड़ी समस्याएं पैदा हो रही हैं. विकल्प यह है कि स्वच्छ प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाए या बॉयलरों में बायोमास का उपयोग किया जाए, जिसमें हमारे प्रदूषणकारी कोयला ताप विद्युत संयंत्र भी शामिल हैं.
हमें स्वच्छ ईंधन की आवश्यकता है ताकि हम अपने ऊर्जा परिवर्तन को चलाने के लिए स्वच्छ बिजली प्राप्त कर सकें. स्थानीय वायु को साफ करने के लिए बायोमास, नवीकरणीय और प्राकृतिक गैस हमारे सर्वश्रेष्ठ विकल्प है. लेकिन सवाल यह है कि क्या पहले से ही औद्योगिक देशों को इस जीवाश्म ईंधन के उपयोग का “लाभ” मिलना चाहिए? सच्चाई तो यह है कि कार्बन बजट पहले ही कुछ देशों द्वारा अपने विकास के लिए विनियोजित किया जा चुका है.
इन देशों को गहरे डीकार्बोनाइजेशन की आवश्यकता है, जिसका अर्थ है नवीकरणीय ऊर्जा और अन्य गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन. वे जीवाश्म ईंधन में फिर से निवेश करके इसे स्वच्छ और हरा-भरा नहीं कह सकते हैं.
समस्या सिर्फ यह नहीं है कि ये देश जीवाश्म ईंधन के निरंतर उपयोग के कारण कार्बन बजट का अधिक हिस्सा लेंगे. इसका मतलब यह भी है कि ऊर्जा परिवर्तन की कीमत बढ़ जाएगी. पहले से ही एलएनजी को यूरोप जैसे अमीर स्थानों को भेजा जा रहा है. इसका मतलब यह होगा कि भारत जैसे देशों को कोयले के जाल से बाहर निकलना मुश्किल होगा.
यह सस्ता ईंधन है चाहे कितना भी गंदा क्यों न हो और क्योंकि यह हमारी जमीन के नीचे है. ऊर्जा सुरक्षा विशेषज्ञों के लिए इसका महत्व और बढ़ जाता है. यह हमें पीछे ले जाता है और पूरी दुनिया को असुरक्षित बनाता है. स्पष्ट है कि यह वह जगह है जहां से असली काम शुरू होता है.
(डाउन टू अर्थ से साभार)
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?