कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी की भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की नफरत, बंटवारे की सियासत पर तीखी टिप्पणी.
हमें विश्वस्तर पर कितना महत्वपूर्ण आंका जाता है यह विशेष रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपने घर में कितने समग्र और समावेशी हैं- सिर्फ खोखले नारों नहीं बल्कि वास्तविक कार्यों और नीतियों के माध्यम से. आखिर प्रधानमंत्री स्पष्ट और सार्वजनिक रूप से नफरती भाषणों के खिलाफ बोलने से हिचकिचाते क्यों हैं, ऐसी क्या विवशता है? बार-बार उन्माद फ़ैलाने के अपराधी स्वछंद रूप से मुक्त घूमते हैं, और उनकी भड़काऊ, उत्तेजक भाषा पर कोई संयम नहीं लगता है. दरअसल, वह विभिन्न स्तरों पर आधिकारिक संरक्षण पाते हैं और यही कारण है कि वह वीभत्स बयान देने के बाद भी आज़ाद घूमते हैं.
जोरदार बहस, चर्चा और वस्तुतः किसी भी तरह का संवाद जहां एक वैकल्पिक दृष्टिकोण का स्वागत किया जाये- अब संभव नहीं है. यहां तक कि शैक्षिक संस्थान और शिक्षक, जिनका सम्मान कभी नई सोच प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता था, अब दुनिया के अन्य हिस्सों के अपने समकक्षों के साथ बातचीत करने के लिए भी शक के दायरे में रख दिए जाते हैं.
अन्य मान्यताओं और समुदायों की निंदा एक सामान्य बात होती जा रही है, और यह विभाजनकारी राजनीति न केवल कार्यस्थल को प्रभावित कर रही है बल्कि धीरे-धीरे इसने पास-पड़ोस और लोगों के घरों में भी प्रवेश कर लिया है. इससे पहले कभी भी इस देश ने नफरत को हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में इतनी घुसपैठ करते नहीं देखा.
हमारी इस अद्भुत भूमि ने ना सिर्फ विविधता, बहुलता और रचनात्मकता का सृजन किया है बल्कि यह उन तमाम महान विभूतियों की भी जननी है जिनके कार्यों और लेखन को दुनिया भर ने पढ़ा और सराहा है. आज तक के उदार वातावरण, समावेशिता और सहिष्णुता की भावना ने यह सब संभव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. एक संकीर्ण- बंद समाज जो केवल जकड़ी हुई संकुचित सोच को प्रोत्साहित करता है, कभी भी नवीन विचारों का संचार नहीं कर सकता. एक डरा हुआ आतंकित दिमाग कभी भी उपजाऊ या अभिनव नहीं हो सकता है.
नफरत, कट्टरता, असहिष्णुता और असत्य का सर्वनाश आज हमारे देश को घेर रहा है. यदि हम इसे अभी नहीं रोकेंगे तो यह हमारे समाज को ऐसा नुकसान पहुंचाएगा जिसकी भरपाई संभव नहीं है. हम किसी भी कीमत पर यह नहीं होने दे सकते हैं. शांति और विविधता को फर्जी राष्ट्रवाद की वेदी पर बलिदान होते देख मूकदर्शक बने रहना संभव नहीं है.
सदियों के दौरान पिछली पीढ़ियों द्वारा मेहनत से बनाई गई हमारी संस्कृति को नफरत की इस अंधी आग और सुनामी में तबाह हो जाने से बचाना है. एक सदी पहले, भारतीय राष्ट्रवाद के कवि ने अमर रचना गीतांजलि लिखी. इसका 35वां श्लोक सबसे प्रसिद्ध हुआ और आज भी सबसे अधिक उद्धृत है. गुरुदेव टैगोर की प्रार्थना आज के हालात में और अधिक प्रासंगिक है जिसमें उन्होंने कहा "जहां लोगों के मन में भय नहीं हो…"
(यह लेख मूलरूप से इंडियन एक्सप्रेस में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ है.)