जो लोग यह सोचकर अमेरिका से दोस्ती कर रहे हैं कि संकट के समय वह उन्हें बचा लेगा या उनकी मदद करेगा यह उनकी बहुत बड़ी भूल ही नहीं बल्कि खुद को भी धोखा देना है.
वहां भारत से गए शरणार्थी जिन्हें मुहाजिर कहा जाता है वहां के मूलनिवासी सिन्धियों से लड़ रहे हैं. सिन्धी, पंजाबियों से और पंजाबी, पख़्तूनों से लड़ रहे हैं. सभी लोग आपस में किसी न किसी बात पर लड़ रहे हैं. अफगानिस्तान में आई किसानों-मजदूरों की सरकार के खिलाफ अमेरिका ने पाकिस्तान और उसके सरहदी इलाकों को अपने हथियारों से पाट दिया और फिर वह हथियार पूरे पाकिस्तान में चक्कर लगाने लगे. इन हथियारों ने राजनीतिक पार्टियों में अपना स्थान बना लिया और तब से वहां सभी राजनीतिक सवालों का समाधान बजाय संसद में हल होने के संसद के बाहर आपस में हथियारों के बल पर होने लगा.
अमेरिका से दोस्ती का यह ईनाम पाकिस्तान को मिला. अमेरिका जिससे दोस्ती करता है उसकी सहायता हथियार देकर करता है. उसने एशिया के इस पूरे क्षेत्र में आतंकवाद को पैदा कर दिया. अब आप उस आतंकवाद से लड़ने के लिए ‘‘वार ऑन टेरर’’ के नाम पर उसके साथ आइए और जो बीमारी उसने पैदा की है अब उस बीमारी से लड़ने के लिए अपने सैनिकों की जान जोखिम में डालिए.
जब आप किसी बाहुबली से यह सोचकर दोस्ती करते हैं कि इससे आपका रुतबा दूसरों पर कायम हो जाएगा तब आप इस बात को भूल जाते हैं कि उस बाहुबली के जितने दुश्मन हैं वह सभी आपके भी दुश्मन बन जाएंगे. यही पाकिस्तान के साथ हुआ है. पाकिस्तान आज अमेरिका द्वारा निर्मित की गई दलदल में बुरी तरह फंस गया है और उससे निकलने के लिए इधर उधर हाथ-पैर मार रहा है. उसका चीन के निकट जाना, खुद को बचाने और दलदल से निकलने की कोशिश के रूप में देखा जाना चाहिए.
जो लोग यह सोचकर अमेरिका से दोस्ती कर रहे हैं कि संकट के समय वह उन्हें बचा लेगा या उनकी मदद करेगा यह उनकी बहुत बड़ी भूल ही नहीं खुद को भी धोखा देना है. ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण मौजूद हैं जब उसने अपने वफादारों को ही धोखा दिया है. मैं केवल दो उदाहरण आपके सामने पेश कर रहा हूं.
एक लैटिन अमेरिकी देश पनामा के राष्ट्रपति मेनुएल नोरेगा का और दूसरी ओसामा बिन लादेन का. अमेरिका से लगा हुआ एक देश पनामा है जिसके राष्ट्रपति मेनुएल नोरेगा ने अमेरिका के बदनाम सैनिक स्कूल, ‘‘स्कूल ऑफ अमेरिका’’ से पढ़ाई की और जो अमेरिका की जासूसी एजेंसी सीआईए के लिए काम करता रहा. उससे जब अमेरिका नाराज हुआ तो उसे राष्ट्रपति से अपदस्थ करके अपने देश ले गया. वहां उस पर मुकदमा चलाया गया और उसको 40 साल की सजा दी गई.
17 साल बाद 2007 में अच्छे चाल-चलन के आधार पर उसकी सजा समाप्त कर दी गई और उसे अमेरिका ने अपनी जेल से निकालकर फ्रांस सरकार के हवाले कर दिया जहां फिर उस पर मुकदमा चला और उसको सात साल की सजा हुई. सजा पूरी होने के बाद फ्रांस सरकार ने उसको पनामा सरकार के हवाले कर दिया और तब उसे उम्रकैद की सजा दी गई. 2017 में उसकी ब्रेन टयूमर से मृत्यु हो गई.
दूसरी मिसाल ओसामा बिन लादेन की है. ओसामा बिन लादेन और बुश परिवार में कभी घनिष्ठ व्यापारिक संबंध थे. बुश सीनियर जब सीआईए के डायरेक्टर थे तो उनका और लादेन परिवार का व्यापारिक सम्बंध था. लादेन अमेरिका के कहने पर ही अफगानिस्तान गया था और वह सीआईए के लिए काम करता रहा लेकिन जैसे ही ओसामा बिन लादेन अमेरिका के लिए अनुपयोगी हुआ और अमेरिकी हितों के लिए रुकावट बनने लगा उसे मार दिया गया.
पाकिस्तान, पनामा और ओसामा बिन लादेन वह मिसालें हैं जिससे भारत के राजनेताओं को सबक हासिल करना चाहिए और उसके नतीजों की रोशनी में जनता को भारत-अमेरिकी दोस्ती के भावी परिणाम पर गंभीरता से चिंतन करना चाहिए.
(साभार- जनपथ)