महात्मा गांधी और उनके जैसी ही चाहत रखने वालीं इंद्रा नूई

इंद्रा नूई भी कहती हैं कि 85 प्रतिशत लोगों का समाज ही तय करेगा कि हमारा भावी समाज कैसा होगा. यह भी गांधी की ही बात है जिसे इंद्रा अपनी भाषा में कहती हैं.

WrittenBy:कुमार प्रशांत
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इंद्रा नूई जिसे पूंजीवाद का नया चेहरा कहती हैं लेकिन जिसकी कोई तस्वीर उनके पास नहीं है, गांधी उसे ग्रामस्वराज्य कहते हैं और उसका पूरा व पक्का खाका भी देते हैं. वे बार-बार समझाते हैं कि पूंजी पर पूर्ण नियंत्रण रखने वाला समाज नहीं बनेगा तो मानव-जाति का कल्याण संभव नहीं होगा.

तकनीक को विज्ञान समझने की भूल हम लोगों ने की जबकि गांधी दोनों का स्पष्ट फर्क समझते व समझाते रहे. विज्ञान मानव कल्याण की दिशा बताता है, बल्कि जो यह न बताए, गांधी उसे विज्ञान मानने से इंकार करते हैं. विज्ञान मानव कल्याण की जो दिशा बताता है, तकनीक समाज को उस दिशा में ले जाने का रास्ता खोजती है. आज वह विज्ञान ही कहीं खो गया है (या बिक गया है!) और विज्ञानविहीन तकनीक ने खुदा की जगह ले ली है. इंद्रा जिस अंधाधुंध तकनीक वाले भावी से सशंकित होती हैं, गांधी हमें उससे हमेशा सावधान करते रहे थे.

उनकी बात एकदम सीधी थी: जो समाज अपनी रोटी के लिए पसीना नहीं बहाएगा (ब्रेड लेबर), वह अपने हाल पर जार-जार आंसू बहाएगा और कुछ भी उसके हाथ नहीं आएगा. श्रम शर्मनाक नहीं है, श्रम लाचारी नहीं है, श्रम स्वाभिमान है, श्रम समता का आधार है. जो अक्षम हों उन पर श्रम न लादा जाए (न बालश्रम, न वृद्ध-अक्षम श्रम) यह समाज की सभ्यता का प्रमाण है. मनुष्य को मनुष्यता की तरफ लौटाने का यही स्वर्णिम मार्ग है. यह कठिन मार्ग नहीं है, मजबूत मन का मार्ग है. जो मन से मजबूत नहीं है, वह न नया मन बना सकता है, न नया समाज गढ़ सकता है.

मानव का भावी अंधकारमय इसलिए नहीं है कि महात्मा गांधी और इंद्रा नूई दोनों एक-सी दुनिया की चाहत रखते हैं, और इंद्रा नूई भी कहती हैं कि 85 प्रतिशत लोगों का समाज ही तय करेगा कि हमारा भावी समाज कैसा होगा. यह भी गांधी की ही बात है जिसे इंद्रा अपनी भाषा में कहती हैं.

(लेखक गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष हैं)

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