दिल्ली दंगों के दौरान इशरत जहां को 26 फरवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया और उनपर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) लगा दिया गया.
कविताएं लिखकर ये मुश्किल वक्त गुजारा
इशरत अपने जेल के दिनों को याद करते हुए बताती हैं, "मैंने जब पहली बार जेल में बारिश देखी तो मुझे अपने घर की बहुत याद आई, घर के पकवान, अब्बू के साथ झूले पर बैठना, बहनों के साथ घूमना सब याद आता था, मैं कोई शायर नहीं थी, लेकिन इस बारिश को देखकर कुछ अहसास पन्ने पर उतारने का मन हुआ, मैंने जेल से अपनी पहली कविता बरसात पर लिखी, एक दीवार मुझे अपने बैरिक से नजर आती थी, उस पर भी मैंने कविता लिखी, अपनी अम्मी की याद में लिखा, मैंने एक डायरी भी बनाई, ये एक अलग अहसास था."
परिवार ने कभी मायूस नहीं होने दिया
इशरत जेल से बाहर आने के बाद अपनी मानसिक सेहत के बारे में बताती हैं कि वे इस दौरान कई बार टूट रही थीं, लेकिन परिवार ने उनका हर तरह साथ दिया, "मैं अपने परिवार का कर्ज कभी अदा नहीं कर पाऊंगी, जिस तरह मेरी अम्मी, बहनें और मेरे पति ने मेरा साथ दिया ये मेरी सबसे बड़ी ताकत थी, यूएपीए जैसी धारा लगा दिए जाने के बाद मैं एकदम डर गई थी लेकिन मेरे परिवार ने मुझे हौसला दिया."
हमारा आंदोलन सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिए नहीं था, ये लड़ाई हर उस नागरिक की थी जिसे अपनी नागरिकता साबित करने में दिक्क्त आने वाली है, ऐसा माहौल बना दिया गया है कि सविंधान को बचाने की जरूरत है, हमारी लड़ाई संविधान को बचाने की लड़ाई थी. इशरत अपने अब्बू को याद करते हुए बताती हैं, "मेरे अब्बू ने हमेशा मुझे मुल्क से मोहब्बत करना सिखाया, आजादी के वक्त हमारे परिवार ने इस मुल्क को चुना था, आज जैसा माहौल बनाया जा रहा है उससे लड़ने और जीतने की जरूरत है."
इशरत जहां जेल से रिहा होने के बाद राजनीतिक जुड़ाव रखने के सवाल पर कहती हैं, "राजनीति मेरे लिए हमेशा एक ऐसा प्लेटफॉर्म रहा जिसके जरिए मैं लोगों की खिदमत करती रही हूं, 2012 में मैंने चुनाव जीता और अपने इलाके में लोगों की खिदमत की, आगे भी इस ही तरह लोगों के बीच रहूंगी और काम करती रहूंगी."