रूस-यूक्रेन युद्ध की चपेट में भारत का प्रिंट मीडिया, गहराया कागज का संकट

दुनियाभर में कागज की कमी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि हाल में श्रीलंका ने लाखों स्कूली छात्रों के लिए परीक्षा रद्द कर दी है क्योंकि वहां प्रिंटिंग पेपर की कमी है और उसके पास कागज आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा नहीं हैं.

Article image

हिंदी पाठकों की संख्या में खासी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन हिंदी पाठक अखबार के लिए उचित मूल्य देने के लिए तैयार नहीं है. यदि एक रुपए भी अखबार की कीमत बढ़ाई जाती है, तो हमारे प्रसार के साथी परेशान हो उठते हैं क्योंकि बड़ी संख्या में पाठक अखबार पढ़ना ही छोड़ देते हैं. पेट्रोल, दूध, फल-सब्जियां, खाने-पीने की हर वस्तु की कीमत बढ़ी है. यहां तक कि कटिंग चाय भी पांच रुपए से कम में कहीं नहीं मिल रही है. अखबार आपको सही सूचनाएं देता है, आपको सशक्त बनाता है.

रोजगार के अवसर हों या राजनीति, मनोरंजन या फिर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खबरें, यह सब आपको उपलब्ध कराता है. बावजूद इसके पाठक उचित कीमत अदा करने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं. पाकिस्तान में अखबार की कीमत औसतन 25 रुपए है. मुझे ब्रिटेन में रहने और बीबीसी के साथ काम करने का अनुभव रहा है. वहां पाठक खबरें पढ़ने के लिए पूरी कीमत अदा करने को तैयार रहते हैं. वहां गार्जियन, टाइम्स और इंडिपेंडेंट जैसे अखबार हैं, जो लगभग दो पाउंड यानी लगभग 200 रुपए में बिकते हैं. यह सही है कि वहां की आर्थिक परिस्थितियां भिन्न हैं.

मौजूदा दौर में खबरों की साख का संकट है. लोकतंत्र में जनता का विश्वास जगाने के लिए सत्य महत्वपूर्ण है. सोशल मीडिया पर तो जैसे झूठ का बोलबाला है. इसके माध्यम से समाज में भ्रम व तनाव फैलाने की कोशिशें हुई हैं. कोरोना संकट के दौर में सोशल मीडिया पर महामारी को लेकर फेक वीडियो व फेक खबरें बड़ी संख्या में चली थीं.

टीवी चैनलों में खबरों के बजाय बेवजह की बहस आयोजित करने पर ज्यादा जोर है. वहां एक और विचित्र स्थिति है कि एंकर जितने जोर से चिल्लाए, उसे उतनी सफल बहस माना जाने लगा है. लेकिन संकट के इस दौर में साबित हो गया है कि अखबार से बढ़कर भरोसेमंद माध्यम कोई नहीं है. संकट के समय में अखबार आपको आगाह भी करता है और आपका मार्गदर्शन भी करता है. अखबार अपनी खबरों के प्रति जवाबदेह होते हैं. यही वजह है कि अखबार की खबरें काफी जांच-पड़ताल के बाद छापी जाती हैं.

कोरोना संकट के दौर में भी अखबार के सभी विभागों के साथी मुस्तैदी से अपने काम में लगे रहे तथा अपने को जोखिम में डालकर पाठकों तक विश्वसनीय खबरें पहुंचाने का काम करते रहे. प्रभात खबर ने अपने पाठकों तक प्रामाणिक खबरें तो पहुंचाई ही, साथ ही अपने सामाजिक दायित्व के तहत अखबार के माध्यम से अपने पाठकों तक मास्क पहुंचाने, हॉकर भाइयों को राशन पहुंचाने और अन्य ऐसे अनेक प्रयास किए ताकि कोरोना काल में आप हम सब सुरक्षित रहें. इस भरोसेमंद माध्यम के लिए पाठकों को अधिक कीमत अदा करने में संकोच नहीं करना चाहिए.

(लेखक प्रभात खबर के प्रधान संपादक हैं. यह लेख प्रभात खबर से साभार प्रकाशित है)

Also see
article imageजय प्रकाश चौकसे: “एक ऐसा लेखक जिनको पढ़ने के लिए हम अखबार खरीदते थे”
article imageमीडिया की आजादी: भारत सरकार ने ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ की रिपोर्ट को मानने से किया इनकार
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like