प्रेस क्लब 'अधिग्रहण' और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की रिपोर्ट दोनों ही उन पत्रकारों पर रोशनी डालते हैं जो सरकार की आलोचना करने के लिए कथित तौर पर अपनों को ही निशाना बनाते हैं.
कमेटी ने नए कश्मीर प्रेस क्लब के महासचिव और डेक्कन हेराल्ड के वरिष्ठ संवाददाता जुल्फिकार मजीद से बात की. मजीद ने कहा, "कुछ पत्रकार एक्टिविस्ट बन गए हैं और जो नहीं बने हैं उन्हें इसकी सजा नहीं देनी चाहिए.” यहां एक अहम बात यह है कि मजीद ने लगातार अपने साथी पत्रकारों पर अलगाववादी या सरकारी एजेंट होने का आरोप लगाया है.
माजिद हैदरी एक टेलीविजन पैनलिस्ट हैं. माजिद, पंडित के समूह के सदस्य भी थें. फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इन्हें एक "फ्रीलांस जर्नलिस्ट" के तौर पर दर्शाया है. हैदरी ने कमेटी से कहा, "कश्मीर में हम शैतान और गहरे समंदर के बीच फंस गए हैं.".
यह भी दिलचस्प है कि रिपोर्ट में जावेद बेग नाम के एक राजनैतिक कार्यकर्ता के बयानों का भी हवाला दिया गया है, जो भारतीय सेना द्वारा आयोजित कैंडल लाइट विजिल्स में नियमित तौर पर भाग लेते हैं. बेग ने कहा, “कश्मीर के अखबार मालिक और संपादक नकारात्मकता फैला रहे हैं और भारत की संकल्पना पर सवाल उठा रहे हैं." इसके साथ ही उन्होंने कश्मीरी संस्कृति के "अरबीकरण" पर भी अफसोस जताया.
गौरतलब है कि इन सभी पत्रकारों की टिप्पणियां वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा कमेटी को बताई गई बातों के अनुरूप ही हैं.
कश्मीर के डिविजनल कमिश्नर पांडुरंग पोले और पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि, “कुछ मौकों पर ऐसा वाकया देखने में आया है कि मीडियाकर्मी/ पत्रकार अपने पद का दुरुपयोग करते हैं और ऐसी गतिविधियों का सहारा लेने की कोशिश करते हैं जिनमें लोगों को भड़काने की प्रवृत्ति होती है, जिससे कि अंततः कानून- व्यवस्था की स्थिति गंभीर हो जाती है..."
कुमार ने यह भी कहा कि 2016 से अक्टूबर 2021 के बीच पत्रकारों के खिलाफ 49 मामले दर्ज किए गए. जिनमें से 17 आपराधिक धमकी से संबंधित थे, 24 "जबरन वसूली और अन्य अपराधों" से संबंधित थे, जबकि आठ आरोप गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) के कठोर अधिनियम के तहत दर्ज थें.
एक और दिलचस्प बात यह है कि वानी, गनी, असद, अहमद और कियारा - जिनको भी इस रिपोर्ट में उद्धृत किया गया है - वो सभी जम्मू और कश्मीर प्रेस कॉर्प के सदस्य हैं. बाद में इन लोगों ने प्रेस काउंसिल की रिपोर्ट के न केवल "झूठे होने बल्कि दुर्भावनापूर्ण" होने के आरोप लगा उसकी आलोचना की. एक बयान में, इस समूह ने कहा कि कश्मीर में मीडिया "फल-फूल" रहा है और यह "संदेश" उसी कमेटी के लिए था जिसने "इन तथ्यों को आसानी से दबा दिया था." (नोट: इन "तथ्यों" का उल्लेख रिपोर्ट में किया गया है.)
इस समूह ने कमेटी को "पूर्वाग्रह से ग्रस्त" होने के साथ ही "बयानों को पूर्व नियोजित तरीके से और खतरनाक स्तर तक तोड़-मरोड़कर" उन्हें अपनी रिपोर्ट में पेश करने का आरोप लगाया. इस समूह का यह भी कहना है कि उन्होंने समिति के साथ अपनी बैठक में स्पष्ट किया था कि किसी भी अधिकृत पत्रकार को पुलिस द्वारा परेशान या तलब नहीं किया गया है. हालांकि समूह ने यह नहीं बताया कि एक "अधिकृत पत्रकार" से उनका क्या आशय है.
मीडिया पर सलीम पंडित का रुख
रिपोर्ट जारी होने से 10 दिन पहले, 3 मार्च को सलीम पंडित ने "इतिहास के चौराहे पर कश्मीर" नाम के एक सेमिनार में भाषण दिया. इस सेमिनार का आयोजन भारतीय सेना की 15 कोर और इंटरनेशनल सेंटर फॉर पीस स्टडीज के कश्मीर चैप्टर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था. यह सभा श्रीनगर के बादामीबाग छावनी में आयोजित की गई थी, जिसमें सेना के जवान और बहुत से दूसरे लोग शामिल हुए थे.
इस आयोजन में पंडित का परिचय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक के रूप में करवाया था. अधिकारी ने उनकी तारीफ में कहा था कि "इनके द्वारा ही अलगाववादी लॉबी के छिपे हुए एजेंडे को उजागर किया गया था, यही कारण है कि हम इनसे प्यार करते हैं."
कागज के एक टुकड़े को पढ़ते हुए, पंडित ने पत्रकारों पर "एक्टिविस्ट" और "ब्लैकमेलर" होने का आरोप लगाया. उन्होंने फ्रीलांसर्स के तौर पर काम करने वालों पर खास तौर से निशाना साधा.
उन्होंने कहा कि, "यहां कश्मीर में आकर हर किसी ने खुद को पत्रकार दिखाने की कोशिश की है. हालांकि ऐसे लोग इस पेशे के खिलाफ ही हैं. ये लोग खुद को फ्रीलांसर्स कहते हैं." उन्होंने सोशल मीडिया को "भड़कावे और बहकावे के जरिेए के तौर पर उसे आतंकवाद की एक अलग ही तरह की मुहिम" के रूप में पेश किया. उन्होंने आगे कहा, "सफेदपोश आतंकवादियों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके संस्थानों की छवि-ध्वंस करने का काम सौंपा गया है."
पंडित ने कश्मीरियों को उनके मौलिक अधिकारों का दुरुपयोग करने की परेशानी से संबंधित चेतावनी भी दी. उन्होंने कहा, "मुझे जनरल पाटनकर याद हैं, जो कोर कमांडर थे और मुफ्ती मोहम्मद सईद उस वक्त मुख्यमंत्री थे. उस वक्त वह कश्मीर को मोबाइल फोन या इस तरह के उपकरण देने के कट्टर विरोधी थे क्योंकि उन्हें यह पता था, बल्कि यह पूर्वानुमान था कि कुछ गलत होने वाला है और आगे आने वाले वक्त में मोबाइल फोन का दुरुपयोग किया जाएगा ... और हुआ भी वही."
उन्होंने यह भी कहा, "देश की अखंडता या संप्रभुता को चुनौती देने वाले तत्वों से सख्ती और दृढ़ता से निपटने की जरूरत है ताकि कानून का राज बना रहे ... हमारे जैसा देश ऐसे तत्वों के खिलाफ नरम हो जाता है जो सोशल मीडिया के माध्यम से राष्ट्र के खिलाफ नफरत फैलाते हैं.”
पंडित ने कहा, "वक्त का तकाजा है कि इन तत्वों की पहचान राजनैतिक विचारधारा के आधार पर की जाए."
संयोग से, रिपोर्ट में पुलिस प्रमुख श्रीमान कुमार का बयान छापा गया है कि उन्हें, "यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि जम्मू-कश्मीर में काम कर रहे पत्रकारों का एक विस्तृत ब्यौरा रखने के लिए एक कार्यक्रम तैयार है." उन्होंने आगे यह भी कहा, "हमारा उद्देश्य 80 प्रतिशत कश्मीरियों का ब्यौरा रखना है, और हम पत्रकारों के लिए भी ऐसा ही करेंगे."
बावजूद इसके कि कश्मीरी पत्रकारों ने जनवरी में पंडित द्वारा प्रेस क्लब का "अधिग्रहण" करने की घोर निंदा की थी फिर भी उन्होंने सेमिनार में पंडित के बयानों पर टिप्पणी करने से परहेज किया क्योंकि ऐसा माना जाता है कि पंडित के प्रशासन के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जो कि "अधिग्रहण" की कार्रवाई के दौरान उनके सुरक्षा विवरण से भी स्पष्ट है." पत्रकार इस बात से भी वाकिफ हैं कि जम्मू-कश्मीर पुलिस सोशल मीडिया पोस्ट्स के आधार पर भी पत्रकारों पर मुकदमें दायर कर रही है.
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.