द कश्मीर फाइल्स: एनसीआर के सिनेमाघरों में नफरत और नारेबाजी का उभार

विवादों की ताज़ा फेहरिस्त द कश्मीर फाइल्स बनी है. प्रधानमंत्री फिल्म का प्रमोशन कर रहे हैं, दर्शक सिनेमाघरों में उत्तेजक नारेबाजी कर रहे हैं.

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वीथ्रीएस मॉल लक्ष्मी नगर, बुधवार, दोपहर 12:20 बजे

लक्ष्मी नगर के वीथ्रीएस मॉल में धीरे-धीरे लोगों की भीड़ जमा होने लगी थी. फिल्म शुरू होने से पहले 10 अधेड़ उम्र के लोगों ने एक युवक से उन सबकी तस्वीर लेने के लिए कहा. ये लोग आईपी एक्सटेंसन में रहने वाले सीनियर सिटीजन हैं. इसमें से कुछ रिटायर हैं और कुछ रिटायरमेंट के बाद अपना बिजनेस करते हैं.

इस फिल्म को देखने का फैसला क्यों किया. इस सवाल के जवाब में ग्रुप के सदस्य पवन चेतल कहते हैं, ‘‘कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ. आखिर अब तक हम लोगों से क्या-क्या छुपाया गया. हमें नहीं पता. रोजी-रोटी के कारण समय ही नहीं मिला इस सब के बारे में पता करने का. इसलिए फिल्म को देखने आए हैं.’’

चेतल से बातचीत के दौरान सीनियर सिटीजन ग्रुप के एक सदस्य कहते हैं, ‘‘हमारे हिंदुओं के साथ क्या हुआ हम वो देखने आए हैं. अब तक हमें सुनी-सुनाई बातें पता हैं. तब कांग्रेस की सरकार थी. उन्होंने पंडितों को बचाने की कोशिश नहीं की.’’

जब हमने बताया कि तब तो वीपी सिंह की सरकार थी और उसे भाजपा का समर्थन प्राप्त था. इसपर ये सदस्य सिंह को अपशब्द कहते हुए बताते हैं, ‘‘वो भी कोई ठीक आदमी नहीं था. इसीलिए गुमनामी में मरा. उसकी मौत की खबर किसी अखबार में नहीं छपी और न ही टीवी में दिखाई गई.’’

चेतन इस सदस्य की बात को काटते हुए कहते हैं, ‘‘हमें हिंदू-मुस्लिम से नहीं मतलब. हम मानवता की बात करते हैं. हम किसी पार्टी के नहीं. देश हमारे लिए पहले है.’’

यहां मिले ज्यादातर लोगों की मानें तो आजतक कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ हुआ देश से छुपाया गया.

फिल्म तय समय से कुछेक मिनट देरी से शुरू हुई. राष्ट्रगान खत्म होते ही एक कोने से ‘भारत माता की जय’ का जोरदार नारा लगा. इस नारे का किसी ने धीमे तो किसी ने तेज आवाज में समर्थन दिया. 170 मिनट की इस फिल्म के दौरान यह सब बीच-बीच में जारी रहा. किसी दृश्य को देखकर कोई रोने लगा तो किसी ने गाली दी.

खुद आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म में भारतीय मीडिया के साथ-साथ विदेशी मीडिया पर भी निशाना साधा है. भारतीय मीडिया को फिल्म में ‘रखैल’, सड़कों पर घसीटकर पीटने की बात की गई है. वहीं विदेशी मीडिया के कवरेज को संदिग्ध बताया गया है. इन डॉयलाग पर सिनेमा हॉल में बैठे लोग सहमति जताते हुए हंसते हैं. हैरानी कि बात यह है कि फिल्म भी अखबारों में छपी खबरों के आधार पर बनी है. ऐसा दावा है. फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती का किरदार अखबारों की कटिंग्स इकठ्ठा करने वाला है. जिसका नाम ‘द कश्मीर फाइल्स’ है.

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अग्निहोत्री की फिल्म में कश्मीरी पंडितों की ६ासदी से अधिक कुछ संस्थानों को बदनाम करने की कोशिश नजर आती है. जैसे जेएनयू. पिछले कुछ सालों से जेएनयू को देश विरोधी होने की छवि सत्ता पक्ष और उनके सहयोगियों द्वारा फैलाई गई. यह फिल्म इसे और बढ़ावा देती है. फिल्म का किरदार कृष्णा, जिसे दर्शन कुमार ने निभाया है. वो अपने दादा (अनुपम खेर ने किरदार निभाया है) के दोस्तों से कश्मीर में पंडितों के नसंहार नहीं होने पर बहस कर रहे होते हैं. तभी सिनेमा हॉल से एक इंसान चिल्लाता है, ‘जेएनयू से पढ़ा है न… साला.’’

फिल्म का एक दृश्य देखकर सिनेमा हॉल में मौजूद एक दर्शक चिल्ला कर कहता है, ‘‘मार बहन#$% को, जूता मार इसे.’’

फिल्म के कई दृश्यों में आसपास बैठे लोग रोते दिखे. फिल्म के आखिरी दृश्य में जब 23 लोगों को खड़ा कर आंतकियों ने गोली मारी. उसमें महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे सब थे. इस दृश्य ने ज्यादातर की आंखों में आंसू भर दिए.

आईपी एक्सटेंशन से आए सीनियर सिटीजन का एक ग्रुप, सबसे बाएं में कुलदीप सिंह मौजूद हैं.

फिल्म खत्म होने के बाद जय श्री राम के नारों के बीच एक शख्स ने कहा, ‘‘फ्री बिजली चाहिए हिंदुओं, देख लो.’’ यह कहने वाले गाजियाबाद के अमित सिंह थे. सिंह अपने साथियों के साथ फिल्म देखने आए थे. इन तमाम साथियों ने फिल्म देखने के लिए छुट्टी ली थी.

दरअसल सिंह, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साध रहे थे. यह समझ से परे था कि इस फिल्म को देखकर केजरीवाल पर निशाना क्यों. जब हमने उनसे पूछा तो वे भाजपा की तारीफ करने लगे. उनकी नजर में मोदी ही देश को बचा सकते हैं. उनका दावा है, ‘‘वे यूपी में भी टैक्स फ्री फिल्म देख सकते थे लेकिन वे दिल्ली आए ताकि सरकार को ज्यादा टैक्स मिल सके.’’

आखिर में हमारी मुलाकात सीनियर सिटीजन ग्रुप से फिर हुई. उसके एक सदस्य कुलदीप सिंह काफी नाराज थे. वे कहते हैं, ‘‘आज हिंदू नहीं जागेगा तो खत्म हो जाएगा.’’

सिंह की भावना यहां फिल्म देखने आए ज्यादातर लोगों में थी. मुसलमान, जेएनयू, लिबरल के प्रति घृणा और हिंदुओं में कथित डर की भवना को यह फिल्म हवा देती है.

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