उत्तर प्रदेश में कॉमर्शियल उद्यमों के भू-जल दोहन का सर्वे करने का आदेश.
पीठ ने जुर्माने के विषय में कहा कि केंद्रीय भूजल प्राधिकरी की 2020 गाइडलाइन के मुताबिक सेमी क्रिटिकल कटेगरी में मौजूद यूनिट को भू-जल दोहन के बदले में 100 फीसदी रीचार्ज करना होता है, हालांकि रीचार्ज करने की दर गाइडलाइन में नहीं बताई गई है. इसलिए सीपीसीबी की रिपोर्ट में बताई गई दोहन की दर को ही रीचार्ज दर के तौर पर तय किया जाता है. गाइडलाइन के मुताबिक प्रतिदिन 5 रुपए घन मीटर दोहन चार्ज है और सीपीसीबी के हिसाब से प्रतिदिन 1693 रुपए घन मीटर दोहन की अनुमति होगी. ऐसे में सेमी क्रिटिकल एरिया में यही दर रीचार्ज की भी मानाी जाएगी. इस तरह परियोजना प्रत्सावक पर प्रतिवर्ष 30,89,725 रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना तय हुआ जो कि छह वर्षों के लिए 1,85,38,350 रुपए हुआ. इसी तरह से दो अन्य यूनिट पर 13.25 करोड़ और 9.71 करोड़ रुपए को चार वर्षों का दोगुना करके पर्यावरणीय जुर्माना तय किया गया है.
पीठ ने मामले में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उत्तर प्रदेश भू-जल विभाग और संबंधित जिलाधिकारियों की एक संयुक्त समिति बनाई है. पीठ ने कहा कि यह समिति रेस्टोरेशन प्लान दो महीनों में तैयार करके अगले छह माह में इसे लागू कराए. इसके बाद आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट भी एनजीटी को मुहैया कराए.
पीठ ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), केंद्रीय भू-जल प्राधिकरण, उत्तर प्रदेश भू-जल विभाग और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, को आदेश दिया है कि वह व्यावसायिक मकसद से भू-जल निकासी करने वाली विभिन्न श्रेणियों का उत्तर प्रदेश में एक सर्वे करें. साथ ही अध्ययन कर यह पता लगाएं कि इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है. और सुझाव भी दें कि भू-जल पर निर्भरता को अत्यधिक दोहन वाले इलाकों में कम कैसे किया जा सकता है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)