शेन वॉर्न की आत्मकथा क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक सौगात है.
अपने मेहनती माता-पिता और भाई के साथ बड़े होने का उनका स्नेहपूर्ण वर्णन 70 और 80 के दशक के मेलबर्न में ऑस्ट्रेलियाई मध्यवर्गीय जीवन की सटीक व्याख्या है. उनके पिता ने जिस तरह वॉर्न के खेल जीवन में रूचि दिखाई और उनका समर्थन किया. पहले एक विफल ऑस्ट्रेलियाई रूल्स फुटबॉल खिलाड़ी के रूप में और बाद में क्रिकेट इतिहास के सबसे सफल लेग-स्पिन गेंदबाज के रूप में वह दिखाता है कि ऑस्ट्रेलिया के समाज में खेलों का क्या स्थान है.
असावधानीवश पाकिस्तान में एक सट्टेबाज के साथ हुई बातचीत से लेकर अनजाने में ली गई प्रतिबंधित दवा के कारण अप्रत्याशित रूप से ड्रग टेस्ट पॉज़िटिव पाए जाने तक, वॉर्न अपने करियर के हर विवाद पर अपना पक्ष रखते हैं. इन दोनों मामलों में ही ज्यादातर लोग ऐसे थे जिन्हें वॉर्न पर कोई संदेह नहीं था, और इस पुस्तक के बाद यह संख्या भी बढ़ने वाली है.
कई महिलाओं से संबंधों के कारण अक्सर सुर्खियों में रहने वाले वॉर्न स्वीकार करते हैं कि इस लापरवाह मनोविनोद के कारण ही उनके तीन बच्चों की मां सिमोन से उनकी शादी टूट गई. वह पछताते हैं कि वह अपने बच्चों के लिए शर्मिंदगी का कारण बने, क्योंकि वह उन्हें अपने जीवन का सबसे मूल्यवान हिस्सा मानते हैं. पहली शादी टूटने के बाद वार्न का एकमात्र गंभीर संबंध अभिनेत्री एलिजाबेथ हर्ले के साथ था. लेकिन लंबी दूरी के रिश्ते की असुविधाओं के कारण वह भी अधिक समय तक नहीं टिका.
अपने असंयमी बर्ताव और कामुकता के क्षणों के बावजूद, वॉर्न का मानना था कि वह मूल रूप से एक प्रतिबद्ध पारिवारिक व्यक्ति हैं. उन्होंने न केवल पहली पत्नी के साथ अपने संबंध सुधारे, बल्कि आत्मनिरीक्षण के लंबे सत्र भी किए.
क्रिकेट की यादों में वापस जाते हुए वॉर्न नेतृत्व, टीम का तालमेल, खेल के प्रति दृष्टिकोण और प्रशिक्षण के बारे में सुदृढ़ विचार व्यक्त करते हैं. स्टीव वॉ को एक स्वार्थी खिलाड़ी और कप्तान के रूप में खारिज करते हैं और एलन बॉर्डर तथा मार्क टेलर को सर्वश्रेष्ठ कप्तानों की उपाधि देते हैं.
उसी स्पष्टता के साथ वह पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कोच जॉन बुकानन का तिरस्कार भी करते हैं. वॉर्न 'बैगी ग्रीन-वर्शिप कल्चर' की अवहेलना करते हैं, जो उनके अनुसार एडम गिलक्रिस्ट और जस्टिन लैंगर जैसे सहयोगियों की मदद से स्टीव वॉ ने प्रचारित किया. यह भारत जैसी उपमहाद्वीप की टीमों के लिए दिलचस्प सबक हो सकता है.
हाल के वर्षों में, भारतीय टीम के शीर्ष नेतृत्व द्वारा मैदान के बाहर जो गौरव प्रदर्शन किया जा रहा है उससे लगता है कि अब यह समझा जाने लगा है कि जो अंध-राष्ट्रवाद प्रदर्शित करते हैं वही जुनून के साथ खेलते हैं. वॉर्न ने ठीक ही कहा है कि टीम की एकजुटता और गर्व की भावना प्रदर्शन सिर्फ मैदान में होना चाहिए. इसके बाहर राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ी को भी किसी अन्य खेल-प्रेमी की तरह ही बर्ताव करना चाहिए.
ब्रायन लारा और सचिन तेंदुलकर को अपनी पीढ़ी के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज बताते हुए वॉर्न काफी ईमानदारी से स्वीकार करते हैं कि वह अक्सर उनपर भरी पड़े. लेकिन वह हमेशा प्रतियोगिता में बने रहे क्योंकि उन्होंने इन सर्वश्रेष्ठ दिग्गजों को गेंदबाजी करने की चुनौती का आनंद लिया.
संभवत: 1998 में उनके कंधे के ऑपरेशन के बाद उनकी 'रॉंग-अन' गेंदों और विविधताओं ने अपना दंश खो दिया. इसका मतलब था कि जब तेंदुलकर और अन्य भारतीय बल्लेबाजों ने उन्हें 1998 की श्रृंखला में बेअसर कर दिया था तब वह अपनी सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी नहीं कर रहे थे. तब भी जब 2001 में वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ ने और भी बेहतर तरीके से उन्हें विफल किया.
हालांकि आम तौर पर भारतीय परिस्थितियों में अपने उच्च मानकों को बनाए रखना उनके लिए एक संघर्ष था, उन्होंने 2004 के भारतीय दौरे में अच्छी गेंदबाजी की.
उपमहाद्वीप में हो या ऑस्ट्रेलिया में, वॉर्न भारतीय बल्लेबाजों पर काबू पाने में नाकाम ही रहे, फिर भी भारतीयों ने उन्हें खूब सम्मान दिया. लेग-स्पिन गेंदबाजी की कला को पुनर्जीवित करने वाले चेहरे के रूप में उनकी अपील देश के लाखों क्रिकेट-प्रेमियों के मन में मजबूती से बैठ गई थी.
राजस्थान रॉयल्स को इंडियन प्रीमियर लीग का पहले संस्करण जिताने में उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता का बखूबी इस्तेमाल किया. वॉर्न का टीम मालिकों के साथ काम करने का अनुभव अच्छा रहा, मामूली मतभेदों को दूर कर टीम की पूरी कमान संभालने और उसे चैंपियनशिप जिताने की सभी यादें उन्होंने साझा की हैं.
वह बताते हैं कि टीम की जीत लिए संयुक्त प्रयास करने की भावना पैदा करने की इस प्रक्रिया में उन्होंने किस तरह एक भारतीय खिलाड़ी के सर से वरिष्ठता और स्टारडम के अहंकार को उतारा.
भले ही उन्होंने अपने शर्मनाक ऑफ-फील्ड क्षणों के विवरण साझा किए हैं, लेकिन इस किताब को यादगार वही भाग बनाते हैं जब वार्न गेंदबाजी की कला की बात करते हैं. वह कला जिसने बड़े-बड़े बल्लेबाजों को चौंका देने वाली गेंदों के दर्शन कराए हैं.