यूक्रेन में एक ओर हिंदुस्तानी नागरिक भारत सरकार की मदद की राह देख रहे हैं, तो दूसरी ओर किराने की दुकानें और एटीएम तक खाली हो चुके हैं.
22 साल का फिरोज यूक्रेन के ओडेसा शहर के अपने अपार्टमेंट में सुबह 3 बजे से ही जागकर फोन से चिपका हुआ है. वह अपनी आंखों के सामने ही, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद कई मायनों में यूरोपीय इतिहास का सबसे बुरा दौर घटित होते देख रहा है.
फिरोज उन सैकड़ों हिंदुस्तानी छात्रों में से एक है जो रूस द्वारा पूर्वी और मध्य यूक्रेन में सैनिक हमले शुरू करने के बाद भारत सरकार की मदद का इंतजार कर रहे हैं. यूक्रेन की सरकार द्वारा नागरिक विमानों के लिए एयरस्पेस बंद करने के बाद, वहां की राजधानी कीव में स्थित भारतीय दूतावास ने शांति और धैर्य बनाए रखने से संबंधित तीन निर्देश जारी किए हैं. दूतावास ने ये जरूर कहा कि भारतीय नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकालने की व्यवस्था की जा रही है लेकिन उन्होंने कुछ भी बहुत स्पष्ट तौर पर नहीं बताया.
यूक्रेन में करीब 20,000 भारतीय फंसे हुए हैं, जिस कारण उनकी मदद के लिए आकस्मिक योजनाओं को तैयार करने हेतु कई उच्च स्तरीय बैठकें भी हुई हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुरक्षा पर कैबिनेट कमेटी की बैठक की भी अध्यक्षता की.
हालांकि छात्रों का मानना है कि सरकार ने समय रहते उचित कदम नहीं उठाए.
फिरोज ने कहा, “अगर ऐसे हालातों में भी भारत सरकार पैसा बनाने पर जोर देगी तो हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. मैं एक भारतीय नागरिक हूं और कम से कम टिकट का किराया इतना होना चाहिए था जिसे मैं उसे उठा पाने में समर्थ होता.” उन्होंने मार्च की फ्लाइट की टिकट इसीलिए बुक की थी, क्योंकि तब टिकट के दाम सस्ते थे लेकिन अब वो फ्लाइट भी रद्द कर दी गई है. एयर इंडिया की जिस फ्लाइट से लगभग 200 छात्रों को भारत वापस लाया गया था, उसकी कीमत 65,000 रुपए प्रति टिकट थी और फिरोज इस टिकट का खर्च नहीं उठा सकते थे.
धमाकों की आवाज सुनने के बाद ओडेसा में पढ़ने वाले कई दूसरे भारतीय छात्र भी अपने यात्रा संबंधी दस्तावेजों और राशन वगैरह के साथ फिरोज के अपार्टमेंट में इकट्ठा हो गए हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "हम बहुत डरे हुए हैं. विस्फोट शुरू होने के बाद से हम सोए नहीं हैं. अंतरराष्ट्रीय उड़ानें बंद होने के बाद जो भारतीय कहीं और से आए थे, वे फंस गए थे और इसलिए अब वे मेरे साथ मेरे अपार्टमेंट में ही हैं. भारतीय होने के नाते हम एक-दूसरे के साथ अपनापन महसूस कर रहे हैं."
दूतावास, मीडिया और अपने विश्वविद्यालय के अपडेट्स के बीच व्यस्त फिरोज ने इस जंग के माहौल के बीच फंसे होने के लिए, यूक्रेन में स्थित भारतीय दूतावास द्वारा "देरी" और "अस्पष्ट" सलाह को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने कहा, “फिलहाल जो हालात हैं, उसकी जिम्मेदारी दूतावास को लेनी चाहिए. हम यहां इसलिए फंस गए हैं क्योंकि भारत सरकार ने वक्त पर फैसला नहीं लिया. अगर उन्होंने हमें तुरंत जाने के लिए कहा होता तो हम चले गए होते, लेकिन उन्होंने हमारे साथ ये किया है. आप सब देख ही रहे हैं और अब हमें तुरंत बाहर निकालने की जरूरत है. चाहे जमीन के रास्ते, चाहे समुद्र के या फिर चाहे हवा के जरिए.”
ओडेसा से 438 किमी दूर विनित्सिया में 21 वर्षीय मुहम्मद अफरीदी शोएब भी फिरोज जैसा ही सोचते हैं. उन्हें आज एक फ्लाइट पकड़नी थी लेकिन आज उनकी नींद, एयरस्पेस बंद होने की खबर के साथ खुली.
फिरोज बताते हैं, "मेरे रूममेट की उड़ान मुझसे पहले थी. इसलिए वह मेरे जागने से पहले ही कीव के लिए रवाना हो गया था, उसकी उड़ान रद्द कर दी गई इसलिए वो वहीं पर फंस गया था. मैंने उसे हवाई अड्डे से सुरक्षित जगह पर ले जाने के लिए भारतीय दूतावास को फोन किया, क्योंकि राजधानी में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था. दूतावास ने हमें सिर्फ अपना पता दिया और कहा कि हम उसे खुद ही वहां पहुंचने के लिए कहें. कोई सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध नहीं था और न ही कोई वाहन चल रहा था, इसलिए मैंने उनसे मदद के लिए कहा. उनका जवाब था, 'हमने आपको बता दिया है कि दूतावास कैसे पहुंचना है, बाकी अब आप सिर्फ अपने भरोसे हैं."
अफरीदी ने आगे बताया कि कुछ यूक्रेनी सहयोगियों और विश्वविद्यालय के कोऑर्डिनेटर्स की मदद से वह अपने रूममेट को एक छात्रावास में सुरक्षित जगह तक पहुंचाने में कामयाब हो पाए.
हालांकि विनित्सिया में कोई गोलाबारी या विस्फोट अभी तक नहीं हुए हैं, लेकिन अफरीदी का कहना था कि यूक्रेन द्वारा हमले के अभ्यास के लिए लगभग हर 10 मिनट में सायरन बजते हैं. सायरन सुबह 9 बजे से बजना शुरू हुआ था और यह सिलसिला अभी भी जारी है.
अफरीदी ने कहा, "मैं घबरा नहीं रहा हूं. ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें मैं लगातार सांत्वना दे रहा हूं. मेरे अकेले अभिभावक मेरे पिता, जो पटना बिहार में हैं, मेरी सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं. ऐसे में दूसरे छात्रों और उनके परिवारों की चिंता भी वाजिब ही है.”
अपने अपार्टमेंट के बाहर के हालात के बारे में अफरीदी ने कहा कि किराना स्टोर की अलमारियां खाली होने लगी हैं. किराने की दुकान के दृश्य के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “चारों ओर दहशत थी. यूक्रेनियन और भारतीय रास्तों पर चिल्ला रहे हैं क्योंकि जरूरी सामानों की जमाखोरी हो रही है. मुझे चावल और गेहूं के बस तीन पैकेट ही मिले, स्थानीय लोग बहुत भारी तादाद में जमाखोरी कर रहे हैं.”
फिरोज के मुताबिक ओडेसा में भी ऐसी ही स्थिति थी. वे बताते हैं, “जिनके पास पैसे नहीं हैं, ऐसे लोगों की एटीएम पर लंबी लाइनें हैं, और किराने की दुकानों पर राशन तेजी से खत्म हो रहा है. हर बार जब हम अपार्टमेंट छोड़ते हैं तो इस बात के संकेत और ज्यादा मिलते हैं कि स्थिति और भी खराब होने वाली है. हवा बमों की आवाजों से भर रही हैं और स्थानीय लोग कह रहे हैं कि ओडेसा में रूसी समर्थक समूह सक्रिय हो रहे हैं. इसको लेकर हम काफी चिंतित हैं."
यूक्रेन में भारतीय दूतावास की प्रतिक्रिया के बारे में फिरोज और अफरीदी ने कहा कि उन्होंने उस सुबह, दूतावास द्वारा भेजे गए एक गूगल फॉर्म को भरकर उन्हें अपने ठिकाने के बारे में बताया था. फिरोज कहते हैं, “हम दूतावास के सभी अपडेट्स पर नजर रख रहे हैं. हम किसी भी पल मिली एक सूचना पर इस जगह को खाली करने के लिए तैयार हैं. हम बस किसी भी तरह बाहर निकलना चाहते हैं."
भारत सरकार से क्या चाहिए?
अफरीदी ने कहा, “भारत मेरा देश है और इसलिए मुझे उम्मीद है कि मेरा देश इस मुश्किल में मेरी मदद करेगा. मुझे लगता है कि वे यहां से निकाल लेंगे, लेकिन थोड़ी देरी से. ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा दूतावास सबसे अंत में एडवाइजरी जारी करने वाला दूतावास था. यहां मेरे आसपास मौजूद लोग रो रहे हैं. घर पर मेरे परिवार के लोग रो रहे हैं. मैं जानता हूं कि हालात तनावपूर्ण हैं लेकिन फिलहाल हम सिर्फ यही चाहते हैं कि किसी भी तरह हमें यहां से सुरक्षित निकाल लिया जाए."
इस बीच यूरोपीय यूनियन के विदेशी मामलों के उच्च प्रतिनिधि जोसेप बोर्रेल्ल ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से बात कर इस मुद्दे पर चर्चा की, कि इस 'अति-गंभीर स्थिति' में तनाव को कम करने में भारत कैसे अपना योगदान दे सकता है?
अपनी सबसे हालिया एडवाइजरी में भारतीय दूतावास ने कहा है कि मार्शल लॉ लागू होने के कारण, यूक्रेन के भीतर लोगों का आवागमन मुश्किल हो चुका है. साथ ही एयर सायरन या बमबारी की चेतावनी सुनाई देने पर लोगों को नजदीकी बम शेल्टर में छिप जाना चाहिए.
गुरुवार को कांग्रेस ने सरकार से सवाल किया- वक्त रहते वहां मौजूद 20,000 भारतीय नौजवानों को सुरक्षित निकालकर घर तक पहुंचाने की व्यवस्था क्यों नहीं की गई? कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यूक्रेन में फंसे हुए एक छात्र की वीडियो शेयर करते हुए लिखा, "यूक्रेन में फंसे हुए 20,000 भारतीयों की सुरक्षा सर्वोपरि है. सरकार को उनको सुरक्षित निकाल कर लाने की कार्रवाई में तेजी लानी चाहिए."