कांग्रेसी कुनबे की कलह: जित्थे राणा, उत्थे बाकियों ने नइ जाणां

अंदरूनी लड़ाई, हाईकमान से नाराजगी और मजबूत विपक्ष से लड़ रही कांग्रेस पार्टी क्या पंजाब चुनावों में लगा पाएंगी पार.

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राजनीतिक पार्टी के लिए चुनाव का समय ही करो या मरो का समय होता है लेकिन कांग्रेस पार्टी में इस दौरान नेता आपस में ही लड़ रहे हैं. एक तरफ विपक्षी पार्टियों से जोरदार टक्कर मिल रही हैं, वहीं दूसरी तरफ पार्टी के सीनियर नेता जिस तरह से पूरे प्रदेश में पार्टी के खिलाफ जाकर अपने भाई, बेटा, रिश्तेदार, सहयोगियों को समर्थन दे रहे हैं, उससे तो यही लग रहा है कि जितना नुकसान खुद वे पार्टी को पहुंचा रहे हैं उतना दूसरी पार्टियों से नहीं है.

पंजाब विधानसभा चुनावों में सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के भाई, वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा के भाई, सांसद जसबीर सिंह डिंपा के भाई और बेटे, कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह के बेटे ये सभी इस बार कांग्रेस पार्टी से अलग होकर चुनाव लड़ रहे हैं.

सुल्तानपुर लोधी - गुरजीत सिंह राणा बनाम अन्य

कांग्रेस पार्टी में नूरा-कश्ती तो वैसे प्रदेश की कई सीटों पर चल रही है लेकिन सबसे ज्यादा अगर किसी सीट ने या किसी नेता ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा है, तो वह है कपूरथला जिले की सुल्तानपुर लोधी सीट जहां से कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह के बेटे इंद्र प्रताप सिंह चुनाव लड़ रहे हैं.

सुल्तानपुर लोधी सीट से मौजूदा विधायक नवतेज सिंह चीमा साल 2012 से यहां जीत रहे हैं. यह जगह सिख धर्म के लिए महत्व वाला स्थान है. माना जाता है कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक कई साल यहां पर रहे हैं. विधायक चीमा से पहले उनके पिता भी इस सीट से विधायक रह चुके हैं.

125 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति लेकर गुरजीत सिंह प्रदेश के चौथे सबसे अमीर उम्मीदवार हैं. राणा तीन बार कांग्रेस विधायक रह चुके हैं. उससे पहले वह जालंधर सीट से लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं. शराब और चीनी कारोबारी सिंह की रोपड़ में एक पेपर मिल भी है. वह साल 2017 में कैप्टन सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं लेकिन खनन घोटालों के आरोपों के कारण उन्हेंं इस्तीफा देना पड़ा था, बाद में सीएम चन्नी ने उन्हें अपनी कैबिनेट में शामिल कर लिया.

कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी लड़ाई के कारण सुल्तानपुर लोधी सीट पर इस बार फायदा आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को मिल रहा है. स्थानीय दुकानदार इंदरजीत सिंह कहते हैं, “ये तो खुद में लड़ रहे हैं हमारे लिए क्या काम करेंगे?” इसलिए इस बार एक मौका ‘आप’ को देना चाहते हैं.

सुल्तानपुर लोधी

हमने स्थानीय लोगों और दुकानदारों से कांग्रेस पार्टी में इस फूट और मौजूदा विधायक के कामकाज को लेकर बातचीत की. लोगों का कहना था कि कांग्रेस विधायक नवतेज सिंह चीमा ने पिछले पांच सालों में कोई काम नहीं किया इसलिए हम कांग्रेस पार्टी को वोट नहीं देंगे. वहीं कुछ लोगों का कहना था कि अगर कांग्रेस पार्टी से राणा इंद्र प्रताप सिंह या मौजूदा विधायक नवतेज चीमा में से कोई एक खड़ा होता, तो यहां परिणाम कुछ और हो सकते थे.

कपड़ा व्यापारी विनोद वर्मा कहते हैं, “कांग्रेस पार्टी तो इस बार तीसरे या चौथे नंबर पर रहेगी. इस बार लड़ाई आप और राणा के बेटे के बीच है.”

कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ निर्दलीय खड़े होने को लेकर इंद्र प्रताप सिंह के सहयोगी न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ”पार्टी ने सभी सीटों पर सर्वे कराए थे. सुल्तानपुर लोधी सीट पर करीब 60 प्रतिशत लोगों ने चीमा को हटाने की मांग की थी लेकिन पार्टी ने सिद्धू के दबाव में उसे नहीं हटाया. कांग्रेस पार्टी यह सीट हारे नहीं इसलिए निर्दलीय लड़कर राणा पार्टी के लिए सीट बचा रहे हैं.”

राणा के सहयोगी के इस दावे से विधायक नवतेज चीमा के करीबी इत्तेफाक नहीं रखते. रहवासी इलाके में स्थित कांग्रेस विधायक के ऑफिस पर शाम को 20-30 समर्थक थे. वही विधायक क्षेत्र में प्रचार के लिए गए थे.

कांग्रेस विधायक नवतेज सिंह चीमा के दफ्तर के बाहर लगा पोस्टर

पार्टी की अंदरूनी राजनीति पर, नवतेज चीमा के साथ 10 साल से काम कर रहे उनके एक करीबी कहते हैं, ”कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत पिछले एक-डेढ़ साल से सुल्तानपुर इलाके में टिकट पाने के लिए मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला. तो अपनी बेइज्जती न हो वह इसलिए लड़ रहे हैं. वो कहते हैं, "मरता क्या नहीं करता, वही हाल है.”

वह कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी को एससी और ओबीसी वोट मिलता रहा है. हालांकि राणा के कांग्रेस पार्टी से अलग होकर निर्दलीय चुनाव लड़ने से उनका कुछ वोट तो कटेगा, लेकिन उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.

चीमा के एक रिश्तेदार कहते हैं, “राणा के लोग जनता को भ्रमित करके बता रहे हैं कि वही कांग्रेस के असली उम्मीदवार हैं. गांवों में जाकर लोगों को बोल रहे हैं कि इस चुनाव में पार्टी ने उन्हें “पंजे की जगह बैट” चुनाव चिह्न दे दिया. वह चुनाव जीतने के लिए एक-एक वोट के लिए पांच हजार भी देने के लिए तैयार हैं, लेकिन चुनाव में हमेशा नोट नहीं चलता.”

इंद्र प्रताप सिंह का ऑफिस और चुनाव प्रचार

इंद्र प्रताप सिंह प्रदेश के सबसे अमीर विधायक के बेटे हैं, जो उनके ऑफिस और जगह-जगह पर लगे पोस्टरों से भी जाहिर होता है. उनका चुनावी दफ्तर एक राजनीतिक पार्टी का कम, किसी बड़ी कंपनी का दफ्तर ज्यादा नजर आता है. ऑफिस के बाहर इंद्र प्रताप की पत्नी की मर्सिडीज कार खड़ी थी और वहीं उनके चुनाव प्रचार को देख रहे मैनेजर की लैंड रोवर कार. ऑफिस के बाहर बड़े-बड़े पोस्टरों में, अलग-अलग कपड़े पहने, हाथ जोड़े राणा कई जगह दिखाई देते हैं.

चीमा के रिश्तेदार इंद्र प्रताप पर आरोप लगाते हैं कि उन्हें नामांकन दाखिल करने के दो दिन पहले ही भारत की नागरिकता मिली है. उनका कहना है कि यह सब बड़े राणा के भाजपा से अच्छे संबंधों की वजह से मुमकिन हुआ. वह 15 दिन पहले भारत आए अपने बेटे को विधायक बनना चाहते हैं.

सुल्तानपुर लोधी में इंद्र प्रताप सिंह के ऑफिस के बाहर लगा पोस्टर

लेकिन राणा के एक सहयोगी कहते हैं कि इंद्र प्रताप के पास वहां की नागरिकता इसलिए है क्योंकि उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई अमेरिका से ही की है. गुरजीत सिंह के सभी बिजनेस में मैनेजिंग डायरेक्टर इंद्र प्रताप ही हैं. भाजपा से अच्छे संबंधों की वजह से नागरिकता मिलने की बात को वह पूरी तरह नकार देते हैं. उनका कहना है कि सरकार की जो जरूरी प्रक्रिया होती है, नागरिकता उसके जरिए ही मिली है.

राणा के प्रचार में एक नारा है, “जित्थे राणा, उत्थे जाना”. वहीं इंद्रप्रताप के पूरे शहर में पोस्टर लगे हुए हैं जो चुनावों में उनकी मौजूदगी को दर्शाते हैं. इसके मुकाबले कांग्रेस विधायक चीमा के पोस्टर काफी काम संख्या में नजर आते हैं. मंत्री राणा गुरजीत अपने बेटे को जिताने के लिए हर दिन दोपहर तक सुल्तानपुर लोधी में प्रचार करते हैं, और फिर शाम को अपने चुनाव क्षेत्र का रुख करते हैं.

आपस में झगड़ती कांग्रेस पार्टी

सुल्तानपुर लोधी में कांग्रेस पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवार राणा के बीच जारी झगड़े का गलत संदेश कपूरथला जिले में पड़ने वाली सभी सीटों पर जा रहा है. खुले तौर पर पार्टी से बगावत कर चुके राणा की शिकायत होने के बावजूद कोई भी कार्रवाई नहीं होने पर, विधायक चीमा के एक रिश्तेदार अपनी भड़ास प्रदेश से लेकर दिल्ली तक, सीएम चन्नी से लेकर राहुल गांधी तक सभी नेताओं पर निकालते हैं.

वह कहते हैं, “गुरजीत सिंह राणा अपनी सीट (कपूरथला) पर कांग्रेस पार्टी से लड़ रहा है और यहां (सुल्तानपुर लोधी) में पार्टी को हराने के लिए भी प्रचार कर रहा है, और पार्टी कुछ नहीं कर रही. यह निकम्मी हाईकमान है जिसने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की.”

अपने ही पार्टी के नेताओं को हराने के लिए काम करने के बावजूद, पार्टी नेतृत्व राणा के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा? इस सवाल के जवाब पर वह कहते हैं, “राणा सभी को पैसा देता है. चन्नी से लेकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व तक सभी को. हाईकमान जैसी पार्टी में कोई चीज नहीं है. राहुल गांधी हो या सोनिया गांधी किसी को कुछ नहीं पता, इसलिए अच्छे नेता पार्टी छोड़ रहे हैं.”

राणा और चीमा के बीच जारी लड़ाई में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू, मौजूदा विधायक चीमा के साथ हैं. चीमा के रिश्तेदार कहते हैं, “सिद्धू का हमें पूरा सपोर्ट है, उन्होंने यहां रैली में भी बोल दिया था कि ‘बाबा नानक ने राजे-राणे सब मिटा दिए’, चन्नी यहां से राणा के बेटे को टिकट देना चाहते थे लेकिन सिद्धू हमारे लिए डटे रहे और आखिर में हमें ही टिकट मिला.” बता दें कि यहां राजे से सिद्धू का मतलब कैप्टन अमरिंदर सिंह था, और राणे से गुरजीत सिंह राणा.

राणा गुरजीत सिंह, सुल्तानुपर लोधी सीट के अलावा भोलाथ सीट से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार और पूर्व आम आदमी पार्टी के नेता सुखपाल सिंह खैरा के भी खिलाफ हैं. उन्होंने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर खैरा को टिकट न देने की मांग की थी. कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे भोलाथ सीट पर कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस के उम्मीदवार अमनदीप सिंह गोरा गिल, का समर्थन कर रहे हैं.

एक ओर जहां कैबिनट मंत्री अपने मनपसंद उम्मीदवारों को टिकट न दिए जाने से नाराज होकर कांग्रेस पार्टी के खिलाफ दूसरे उम्मीदवार का समर्थन कर रहे है. वहीं इसको लेकर कांग्रेस के चार विधायकों ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर राणा के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. पत्र लिखने वालों में चीमा के अलावा जालंधर उत्तर से विधायक अवतार सिंह जूनियर, फगवाड़ा से विधायक बलविंदर सिंह धालीवाल और पूर्व विधायक सुखपाल सिंह खैरा शामिल हैं.

राणा गुरजीत कहते हैं कि चारों नेताओं के पत्र लिखने के बाद ही उन्होंने अपने बेटे के पक्ष में चुनाव प्रचार करने का निर्णय लिया. साथ ही उन्होंने चारों नेताओं को कपूरथला आकर उनके खिलाफ चुनाव प्रचार करने की चुनौती भी दी.

साथ ही साथ उन्होंने सिद्धू पर निशाना साधते हुए कहा कि नवतेज चीमा की जीत सुनिश्चित करने के लिए सिद्धू को सुल्तानपुर लोधी में 15 दिन लगाने पड़ेंगे. यदि सिद्धू 15 दिन यहां लगाएंगे तो अपनी सीट पर कितने दिन लगाएंगे? वे कहते हैं कि सिद्धू अमृतसर पूर्व या सुल्तानपुर में से किसी एक सीट पर ही जीतेंगे, और यह फैसला उन्हें खुद ही करना है.

विधायक चीमा के रिश्तेदार कहते हैं, “राणा पार्टी को फंडिग करते हैं इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती. कार्यकर्ता, सरपंच, कई विधायक राणा के खिलाफ होने के बावजूद भी पार्टी कोई कार्रवाई नहीं कर रही है. इसका कार्यकर्ताओं पर गलत संदेश जाता है जिसकी वजह से पार्टी को नुकसान हो रहा है.”

वह आगे कहते हैं, "धमकी और पैसे के बल पर राणा ने सुल्तानपुर लोधी के 13 में से 9 पार्षद अपने पक्ष में कर लिए. राणा की वजह से ही सीएम चन्नी हमारे लिए प्रचार करने नहीं आए. वह आसपास की सीटों पर आए लेकिन हमारी सीट पर नहीं आए क्योंकि राणा का बेटा यहां से चुनाव लड़ रहा है.”

जहां एक ओर चीमा गुट 9 पार्षदों का दावा कर रहा है, वहीं राणा के करीबी कहते हैं कि उन्हें सभी 13 पार्षदों का समर्थन मिला हुआ है. उनकी मानें तो हारे हुए सभी लोग भी उन्हीं के साथ हो गए हैं. उनके हिसाब से अब राणा को कुल 16 पार्षदों का समर्थन मिला हुआ है. यह पूछे जाने पर कि यह समर्थन उन्होंने खुद किया या खरीदा गया? वह जवाब में कहते हैं, “वह खुद हमारा समर्थन कर रहे हैं क्योंकि विधायक ने कोई काम ही नहीं किया है.”

राणा बनाम सिद्धू

पेशे से बिजनेसमैन राणा गुरजीत सिंह 2002 में राजनीति में शामिल हुए. कपूरथला जिले के जिला परिषद अध्यक्ष गुरदीप सिंह बताते हैं कि गुरजीत सिंह का परिवार, उस समय के उत्तर प्रदेश और आज के उत्तराखंड के बाजपुर से आता है. वह 80 के दशक में वह पंजाब आ गए थे और राजनीति में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के कहने पर आए.

पंजाब में राणा का बिजनेस चीनी मिल के जरिए शुरू हुआ, साथ ही उनका बिजनेस कई अन्य राज्यों में भी है. गुरजीत सिंह 2002 में पहली बार कपूरथला से विधानसभा चुनाव लड़े और उसके बाद से हमेशा जीतते रहे. 2004 में जालंधर लोकसभा सीट से वह संसद पहुंचे, और उसके बाद फिर से कपूरथला से लगातार तीन बार विधायक रहे. अब चौथी बार फिर से मैदान में हैं. यह विधानसभा सीट राणा के परिवार के पास करीब 20 सालों से है.

राणा गुरजीत कांग्रेस हाईकमान के खास माने जाते हैं. पंजाब चुनावों में कांग्रेस पार्टी के कुछ उम्मीदवारों के प्रचार में हाथ बंटा रहे एक शख्स कहते हैं, “उन्होंने पार्टी के ‘एक बार’ कहने पर हरियाणा कांग्रेस को पांच करोड़ रुपए का फंड दे दिया. वह यूपी में भी पार्टी को फंड करते हैं. इस वजह से ही वह हाईकमान के खास माने जाते हैं.”

राणा को कांग्रेस पार्टी हाईकमान से कितना फर्क पड़ता है, इस बात का अंदाजा उनके हाल ही में दिए बयानों से भी लगाया जा सकता है. उनके सहयोगी न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “पार्टी हाईकमान से चुनाव लड़ने को लेकर कभी कोई पत्र नहीं मिला. वह भी जानते हैं कि हम सीट जीत रहे हैं और कांग्रेस के उम्मीदवार चीमा हार रहे हैं.”

इंद्र प्रताप सिंह और उनके पिता राणा गुरजीत सिंह

दैनिक भास्कर से बातचीत में भी राणा ने कहा कि कुछ लोग शिकायती टट्टू होते हैं और उनका काम सिर्फ शिकायतें करना ही होता है. वे खुद के लिए कहते हैं कि राणा गुरजीत सिंह कभी किसी की शिकायत नहीं करता, काम करता है, और सीट जीतकर कांग्रेस की झोली में डालता है.

सिद्धू से दुश्मनी को लेकर गुरदीप सिंह कहते हैं, ”सिद्धू से कोई निजी दुश्मनी नहीं है. यह सब राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है. वह बहुत ज्यादा बोलते हैं और कुछ भी बोलते हैं. यह बात राणा गुरजीत को पसंद नहीं. वैसे भी वह कितने दिन कांग्रेस में रहेगें यह भी किसी को नहीं पता”.

राणा के करीबी कहते हैं, “सिद्धू का कोई जनाधार नहीं है, वह जहां-जहां प्रचार करने जा रहे हैं वहां पार्टी हार रही है. वह खुद की भी सीट हार रहे हैं, अगर उन्होंने काम किया होता तो आज ऐसा नहीं होता.”

वायर की एक खबर के मुताबिक जब सिद्धू ने प्रदेश कांग्रेस के पद से इस्तीफा दिया था, तो वह डीजीपी पद के लिए हुई नियुक्ति के साथ-साथ सीएम चन्नी की कैबिनेट को लेकर भी नाराज थे. दरअसल सीएम चन्नी ने राणा गुरजीत सिंह को मंत्री बना दिया था, जबकि उन पर अवैध खनन के आरोप थे. इसी कारण उन्हें अमरिंदर सिंह के कार्यकाल में भी मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. राणा को मंत्री बनाए जाने के खिलाफ सुखपाल खैरा समेत अन्य नेताओं ने सिद्धू को पत्र लिखा था. इसे लेकर सिद्धू ने हाईकमान से शिकायत की थी लेकिन कोई कार्रवाई न होने से नाराज सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया था.

अमरिंदर के करीबी होने का आरोप और नवतेज चीमा से नाखुशी

राणा गुरजीत पर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी होने का भी आरोप लगता है. कांग्रेस पार्टी का चुनाव प्रचार देख रहे एक शख्स कहते हैं कि वह (राणा) अमरिंदर के खास हैं. वे यह भी कहते हैं कि जब पटियाला में, अमरिंदर को अपनी हवेली की मरम्मत के लिए पैसों की जरूरत थी, तब राणा ने उनकी मदद की थी. वहीं जब राणा 2017 में मंत्री बने और उन पर खनन और भ्रष्टाचार के आरोप लगे, तब अमरिंदर सिंह उनका बचाव करते रहे.

इतना ही नहीं भोलाथ सीट पर वह कांग्रेस पार्टी के खिलाफ जाकर, अमरिंदर सिंह के पार्टी के उम्मीदवार का समर्थन कर रहे हैं. लेकिन राणा अमरिंदर सिंह के करीबी होने के दावों से इंकार करते है. वह कहते हैं कि 2018 के बाद से उनकी अमरिंदर सिंह से कोई बात नहीं हुई. राणा के समर्थक गुरदीप सिंह कहते हैं, “हम पहले अमरिंदर सिंह के साथ थे लेकिन अब चन्नी के साथ हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद से अच्छा काम किया है.”

स्थानीय दुकानदार 34 वर्षीय इंदरजीत सिंह कहते हैं, “इस सीट पर कांग्रेस विधायक ने कोई काम नहीं किया. यहां बस दो बड़े काम हुए हैं, एक रेलवे स्टेशन और एक बस अड्डा, जो केंद्र और राज्य सरकार ने बनवाए हैं. इसलिए इस बार विधायक को बदलेंगे”.

सुल्तानपुर लोधी में खिलौने की दुकान चलाने वाले मंजीत मान कहते हैं, “विकास के लिए दिया गया पैसा कभी गांवों तक नहीं पहुंचता. सड़कें खराब हैं. नगर पालिका के पास जाओ तो भी वह कुछ नहीं करते.”

राणा के सहयोगी, चीमा पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, “गुरु नानक देव के कार्यक्रम को लेकर करोड़ों रुपए राज्य सरकार से मिले, लेकिन विधायक सब पैसा खा गए. भ्रष्टाचार करके करोड़ों की संपत्ति बना ली है.”

चीमा पर भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर स्थानीय लोग भी गुस्से में लगते हैं. मंजीत मान भी कहते हैं, ”विधायक ने यहां कोई काम नहीं किया, इसलिए यहां मुकाबला आप और राणा इंद्र प्रताप सिंह के बीच है.”

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