उत्तराखंड में कांग्रेस हरीश रावत अपनों के बीच घिरे तो बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पुष्कर सिंह धामी के सामने सत्ता विरोधी लहर से निपटने की चुनौती.
लालकुंआं: अपनों के बीच घिरे हरीश रावत
खटीमा से 50 किलोमीटर दूर लालकुंआं विधानसभा सीट पर कांग्रेस नेता हरीश रावत लगातार डेरा डाले हैं. चार बार लोकसभा सदस्य और केंद्र में मंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके 73 साल के रावत के लिए यह सीट आसान नहीं है. पहले रामनगर सीट से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा हुई, फिर पार्टी में अन्तर्कलह के कारण उन्होंने वहां से लालकुंआं का रुख किया. लालकुंआं सीट पर नाम के ऐलान के बाद हटाई गईं संध्या डालाकोटी अब बागी उम्मीदवार के तौर पर रावत के सामने हैं.
डालाकोटी ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “कोरोना महामारी हो या प्राकृतिक आपदा, मैंने राशन बांटने से लेकर अपनी जमीन पर लोगों को बसाने का काम किया और कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता की भूमिका निभाई लेकिन ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का नारा देने वाली पार्टी ने मुझसे टिकट छीन लिया.”
लालकुआं सीट पर कुल 13 उम्मीदवार हैं. बीजेपी ने पिछली बार यह सीट 27,000 से अधिक वोटों से जीत कर उसने अपने वर्तमान विधायक को टिकट न देकर नए चेहरे मोहन सिंह बिष्ट को उतारा है, जो रावत को टक्कर दे रहे हैं. हरीश रावत के आलोचक कहते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी के लिए हरिद्वार सीट से टिकट सुनिश्चित करने के लिए पहले रामनगर जाने और फिर सीट बदलने का “राजनीतिक ड्रामा” किया. हालांकि लालकुंआं में प्रभाव रखने वाले दो मजबूत कांग्रसी नेता हरीश दुर्गापाल और हरेन्द्र वोहरा अभी रावत के साथ हैं, और बीजेपी के बागी पवन चौहान भी मैदान में हैं जिनसे रावत को मदद मिल सकती है.
पिछली हार से नहीं सीखा कांग्रेस ने
पिछले 2017 विधानसभा चुनावों में हरीश रावत को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर उतारा लेकिन तब पार्टी को सबसे करारी हार मिली और वह 70 में से सिर्फ 11 सीटें ही जीत पाई. खुद रावत दो विधानसभा सीटों (किच्छा और हरिद्वार ग्रामीण) से चुनाव हार गए. बीजेपी के उम्मीदवार मोहन सिंह बिष्ट लगातार अपने भाषणों में रावत को “बाहरी” उम्मीदवार बता कर हमला कर रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्य है कि 2107 की दोहरी हार से मिले सबक के बावजूद इस बार हरीश रावत ने अपने लिये पांच साल में कोई सीट तैयार नहीं की.
देहरादून के वरिष्ठ पत्रकार अविकल थपलियाल कहते हैं, “रावत ने रामनगर क्षेत्र में प्रभाव रखने वाले अपनी ही पार्टी के रंजीत रावत से बैर बढ़ाया और पार्टी में कलह बढ़ा. ये हैरान करने वाली बात है कि जिसे मुख्यमंत्री का उम्मीदवार कहा जा रहा है उसके सामने बागी उम्मीदवार को बिठाने में पार्टी कामयाब नहीं हुई. राज्य में मुख्यमंत्री पद के दावेदार पहले भी चुनाव हारते रहे हैं और रावत लालकुंआं को हल्के में नहीं ले सकते.”