यह बजट इस लिहाज से आलोचना से परे है कि यह कॉर्पोरेट के लिए है. इसे ऐसे देखा जाना चाहिए कि इस नेता ने कॉरपोरेट्स को भी आगामी 25 सालों के लिए काम पर लगा दिया है.
इस बजट में किसानों और कृषि के लिए कुछ नहीं है. इस तरह के एक वाक्य के जुमले अच्छे नहीं होते. किसानों को क्या इस बात से खुश नहीं हो जाना चाहिए कि वे दिल्ली की सरहदों पर साल भर से ज्यादा बैठे रहने के बाद एक जीत की भावना से प्रफुल्लित होकर जिंदा लौट पाए अपने-अपने घरों को? क्या इसे भी बजट में लिखा जाना चाहिए था? और फर्ज करें कि कृषि के तीन कानून अब भी वजूद में होते तो नेता की मजबूरी न होती उनके लिए कुछ राशि देने की? अपने गुनाह किसी और पर नहीं थोपना चाहिए. आपने तब नहीं समझा तो अब उनकी क्या गलती?
अगर ये तीनों कानून अपने काम पर लग गए होते तो जाइए किसी भी गुलाटी से पूछ आइए वो यही कहेगा कि अन्न के भंडार बनाने के लिए सरकार कॉरपोरेट्स को बड़ी रकम अनुदान में देने वाली थी या कांट्रैक्ट और कांटैक्ट फार्मिंगके लिए भी सरकार के पास बहुत खजाना था. इसके अलावा बीज, खाद की रियायतें देने के लिए भी क्योंकि तब वह उद्यमियों को सीधे तौर पर जाना था. एक उद्यमी ही दूसरे उद्यमी की मदद कर सकता है. इसे देश के करोड़ों किसान नहीं समझते तो इसमें नेता की क्या गलती है?
सब कुछ अमीरों के लिए है? इस सवाल पर भी ख्वामखां लोग हलकान हुए जा रहे हैं. किसी भी लोकतंत्रात्मक व्यवस्था ने क्या कभी अमीरों को दंडित किया है? इसमें किसी नेता को उलाहना देने से क्या फायदा है भाई? जिन्हें इतिहास की मामूली सी भी समझ है वे जानते हैं कि यह अमीरों के लिए बाकी निर्धन, भूखे-नंगों के प्रबंधन की व्यवस्था है. उन्हें उग्र नहीं होने देना है. अगर होते हैं तो संविधान की चौहद्दी में रहते हुए उनके क्रोध और गुस्से को लोकतांत्रिक ढंग से मैनेज करना है. इसमें भी कुछ लोग हिंसा, दमन आदि खोज-खोज कर लाने लगते हैं और भूल जाते हैं कि राज्य अपना दायित्व निभा रहा है.
यह बजट इस लिहाज से आलोचना से परे है कि यह कॉर्पोरेट के लिए है. इसे ऐसे देखा जाना चाहिए कि इस नेता ने कॉरपोरेट्स को भी आगामी 25 सालों के लिए काम पर लगा दिया है. उन्हें इसके लिए दो प्रतिशत की कर कटौती का लालच दिया गया है, लेकिन अब इतना तो करना ही पड़ता है. संभव है यह कोई चाल हो, बाद में जब उन्हें देश के सारे संसाधन 25 सालों के लिए देखे गए सपने पूरे करने के लिए दे दिए जाएं तो फिर उनसे तीन प्रतिशत ज्यादा कर भी ले लिया जाए. एक नेता को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
मध्य वर्ग को कुछ हासिल नहीं हुआ? अब इसके लिए दीगर देखना होगा. बजट हर सवाल का जवाब नहीं हो सकता. बजट है भाई, मेनिफेस्टो नहीं है. बीते सात साल से अगर किसी का मन सबसे ज्यादा प्रफुल्लित रहा है तो वो देश का मध्य वर्ग ही है जिसे हर लिंचिंग से सुख मिला है. जिसे मंदिर निर्माण के लिए खुलते गए रास्ते से आनंद की अनुभूति हुई है. जिसे पूरे दिन व्हाट्सएप से निर्बाध सप्लाई हुई है मन हर्षित करने वाले संदेशों से. विदेशों में बजते डंकों का सबसे ज्यादा आनंद इसी ने लिया है. इसे बहुत मजा मिला है रंग बिरंगी टोपियों और पगड़ियों और भिन्न-भिन्न प्रकार की धज से.
यह असल में एक भविष्यजीवी वर्ग रहा है जो विदेश से आल्हादित रहता है. जब इसे लगा कि अब विदेश में कुछ संभावनाएं खुल रही हैं और उसके नेता के नाम से देश का डंका बज रहा है तो ये यहां न आते हुए भी मृदंग बजाते रहा. किसी को अप्रिय न तो बोलने दिया गया और न इसने किसी को सुनने दिया. इसके डीएनए में ऐसे ही किसी डीएनए के जरिए उल्लास का इंजेक्शन दिया गया और ये मस्त मगन बना रहा. अब शिकायत पेटी बंद होने का समय आ गया है तो नाहक बौखला रहा है.
हमारे नेता को अभी हमारे भरोसे और साथ की जरूरत है. इस महामानव की केवल एक ही गलती है कि ये दुनिया की काबिलियत को ठीक से भांप नहीं पाया. यह जब आया था तो इसे भरोसा था कि इस बिगड़ती हुई दुनिया को एक गुरू की जरूरत है. वह गुरू चूंकि किस्से कहानियों में (जो केवल शाखा में ही सुनी सुनाई जाती हैं) भारत जैसा पुण्य प्रतापी देश अतीत में कभी रहा है, तो उसके पुनरुत्थान की जरूरत है.
दिन के 18-18 घंटे (जिनमें साढ़े तीन घंटे कपड़े बदलने में लगने वाले समय को भी जोड़ लें) इसी भगीरथ काम में लगा दिए कि दुनिया को इस वक्त एक गुरू की जरूरत है और उसे भारत को ही बनना होगा. आज अपने कार्यकाल के आठ साल बाद पता चला कि दुनिया इस काबिल नहीं हुई है कि वह अपने लिए एक अदद गुरू की ठीकठाक शिनाख्त कर पाए, उसके शरणागत हो जाए और भवसागर को बिना किसी बाधा के पार कर जाए.
इस बजट में, सोचिए दिल पर कितना भारी बोझ नेता ने रखा होगा और विश्व गुरू बनाने की परियोजना को आगामी 25 साल के लिए मुल्तवी करना पड़ा होगा! वो भी इस वजह से कि दुनिया अभी इसके लायक नहीं हुई है! इस पर तो देश का हर हाथ दुआ में उठ जाना चाहिए कि दुनिया को इतनी अकल नसीब हो. आमीन…
(साभार- जनपथ)