टीवी न्यूज रेटिंग बार्क की वापसी: फिर शुरू हुई एनबीएफ और एनबीडीए की नूराकुश्मती

सरकार के द्वारा टीआरपी रेटिंग दोबारा से शुरू करने के आदेश के बाद, ऐसा लगता है कि टीवी न्यूज़ की दुनिया में फिर से टीम अर्णब गोस्वामी बनाम रजत शर्मा शुरू हो गया है.

WrittenBy:आयुष तिवारी
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भारत के समाचार चैनलों की करेंसी कुछ दिन बाद फिर से चालू हो जाएगी. सूचना व प्रसारण मंत्रालय के पिछले हफ्ते के आदेश के बाद, ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल या बार्क की अक्टूबर 2020 से लंबित समाचार चैनलों के लिए रेटिंग जल्द दोबारा से शुरू होने की संभावना है.

इससे एक पुरानी प्रतिद्वंदिता दोबारा से शुरू होती लग रही है. आपस में प्रतिद्वंदिता रखने वाले समाचार प्रचारकों के दो समूहों, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन ने फिर से एक दूसरे से असहमत होने के लिए कुछ ढूंढ लिया है: रेटिंग कब से दोबारा शुरू हों?

बार्क, जो एक स्वतंत्र संस्था है ने तीन महीने के लिए रेटिंग रोक दी थीं. यह निर्णय कई विवादों में घिरी घटनाओं के बाद लिया गया था. एक कथित टीआरपी घोटाला जिसमें रिपब्लिक टीवी पर आरोप लगे, और रिपब्लिक टीवी के प्रमुख अर्णब गोस्वामी की, कथित तौर पर एक आत्महत्या के मामले में गिरफ्तारी. बार्क ने कहा था कि वह अपने मापने के तंत्र में "समीक्षा व सुधार" करेंगे और "सांख्यिकी सुदृढ़ता" में बेहतरी लाने के साथ-साथ "पैनल वाले घरों में सेंध लगाने के प्रयासों को बड़े स्तर पर असफल" करना चाहते थे.

रिपब्लिक टीवी के प्रमुख अर्णब गोस्वामी, जो एनबीएफ के प्रमुख भी हैं, ने रेटिंग को लंबित करने के निर्णय का विरोध किया था. लेकिन उनके थोड़ा चुप रहने वाले प्रतिद्वंद्वी, एनबीडीए के प्रमुख इंडिया टीवी के रजत शर्मा ने सहमति दी थी. अक्टूबर 2020 के एक प्राइम टाइम कार्यक्रम में अर्णब गोस्वामी बिफर उठे थे, "मैं रजत शर्मा से आमने सामने बात करना चाहता हूं. मुझे अपने चैनल पर बुलाओ. मैं चाहता हूं तुम मेरा सामना करो."

नवंबर में, मंत्रालय ने केवल समाचार ही नहीं बल्कि बाकी तरह के कार्यक्रमों के लिए एक कमेटी बनाई जो "मौजूदा टीआरपी तंत्र में कमियों का अध्ययन कर उनकी जांच करेगी." रिपोर्ट फरवरी में आ गई थी और मंत्रालय ने, जब तक कमेटी उस रिपोर्ट की समीक्षा नहीं कर लेती तब तक बार्क को रेटिंग रोकने के लिए कहा था."

नया मनमुटाव

बार्क के एक सूत्र के अनुसार, एनबीएस और एनबीडीए दोनों ही चाहते हैं कि रेटिंग दोबारा से शुरू हों. मतभेद इस विषय पर है कि दोबारा कब शुरू किया जाए. जहां एक तरफ एनबीएस तुरंत शुरू करने के पक्ष में है, वहीं एनबीडीए छह से आठ हफ्ते रुकना चाहता है.

यह दोनों ही पक्ष इस बात से निकलते हैं कि कोई चैनल रेटिंग पर कितना निर्भर है, कुछ को इसकी जरूरत दूसरों से ज्यादा है. बार्क के सूत्र ने समझाया, "विज्ञापनदाता, अपने विज्ञापन के निर्णयों के लिए डाटा चाहते हैं. मुझे लगता है कि पहले से स्थापित खिलाड़ी, जितना हो सके देरी (रेटिंग जारी करने) चाहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें अपने पुराने कद और साख के आधार पर विज्ञापन मिल जाएंगे. जबकि नए खिलाड़ी रेटिंग को इस्तेमाल कर अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं. एनबीएफ नए खिलाड़ी हैं वहीं एनबीडीए पहले से स्थापित लोग हैं."

एनबीडीए में ज़ी, न्यूज़18, इंडिया टुडे, एनडीटीवी, एबीपी, इंडिया टीवी और टाइम्स नाउ जैसे चैनल हैं. एनबीएफ इसके विपरीत है जिसमें मुख्यधारा के समाचार चैनलों के रूप में केवल रिपब्लिक नेटवर्क और आईटीवी चैनल हैं. बाकी सभी चैनल क्षेत्रीय और भाषाई खबरों के हैं.

इनके अलावा टीवी-9 नेटवर्क भी है, जो एनबीडीए के लिए परेशानी का सबब है. 2011 में, इस चैनल ने हैदराबाद में "गे संस्कृति" के ऊपर एक असहज करने वाली कहानी करते हुए एसोसिएशन को छोड़ दिया था. लेकिन 2020 में बार्क के द्वारा रेटिंग रोके जाने से कुछ समय पहले वह एसोसिएशन में वापस आ गए. पिछले साल अगस्त में यह नेटवर्क, एक अजीब दोहरी सदस्यता लेकर एनबीएफ का सदस्य भी बन गया.

पिछले हफ्ते टीवी-9 ने एनबीडीए को जल्दबाजी में छोड़ा, जिससे एनबीएफ और एनबीडीए के बीच का मौजूदा विवाद सामने आ गया. और घाव पर नमक छिड़कने जैसे, नेटवर्क के सीईओ बरुन दास ने रिपब्लिक टीवी पर अपनी चिढ़न दिखाई.

इस सब की वजह रेटिंग थीं, "हम रेटिंग दोबारा शुरू करने पर उनका (एनबीडीए) पक्ष जानने के लिए उन्हें लिखते रहे हैं. उनसे कोई जवाब नहीं मिला है."

सीईओ ने इस तरफ भी इशारा किया कि शायद एनबीडीए रेटिंग दोबारा जारी होने में देरी करवा रही है, "हम शुरू से ही, रेटिंग को रोकने और अब उन्हें दोबारा से शुरू करने में देरी को लेकर आपस में सहमत नहीं हैं."

प्रतिस्पर्धा की वजह

टीवी न्यूज़ टीआरपी की दुनिया का एक प्रभावी हिस्सा नहीं है. कुल चैनलों में से 46 फीसदी समाचार चैनल होने के बावजूद भी, इन चैनलों के पास केवल 7 फीसदी दर्शक ही हैं. अंग्रेजी समाचार चैनल 0.04 प्रतिशत पर खड़े हैं. इतनी कम संख्या होने के कारण, विज्ञापनदाताओं के लिए यह नजरअंदाज करना आसान है कि इस निरर्थक रेस में कौन आगे है, जिससे कि वह बड़े क्षेत्रों जैसे खेल या मनोरंजन पर ध्यान दे सकें. इसका मतलब कि जहां तक अपने सामान का प्रचार और उसके लिए विज्ञापन के पैसों के निर्धारण की बात है, विज्ञापनदाताओं के लिए समाचार चैनलों की बार्क की साप्ताहिक रेटिंग एक व्यर्थ का मापदंड है.

इसके साथ ही साथ, जितनी कम दर्शकों की संख्या होगी उतना ही लैंडिंग पेज और दोहरे एलसीएन के इस्तेमाल से रेटिंग में हेराफेरी करना आसान होगा. इसीलिए विज्ञापनदाता किसी भी समाचार चैनल की लोकप्रियता जानने के लिए दूसरे मापदंडों का भी उपयोग करते हैं, जैसे उनकी छवि और डिजिटल गतिविधियां."

फिर भी, क्योंकि समाचार चैनल जानकारी की दुनिया में काम करते हैं, इसलिए विज्ञापनदाताओं से उनके अच्छे करार हो जाते हैं. यह पुराने और पहले से स्थापित चैनलों के लिए और भी ज्यादा सही है, जो अपने दशकों की मौजूदगी का उपयोग बेहतर कीमत पाने के लिए करते हैं. इसीलिए, अगर एक तीन साल पुराने रिपब्लिक भारत की रेटिंग 20 साल पुराने आज तक से आगे निकल भी जाती है, तो भी इसका मतलब यह नहीं कि नए प्रसारक की विज्ञापनों से ज्यादा कमाई हो जाएगी.

इसी कारण से नए खिलाड़ी थोड़ा घाटे में रहते हैं. जब टीआरपी रेटिंग रुकी हुई हैं, तो पुराने चैनल विज्ञापनदाताओं के पास अपना एक दशक या उससे ज्यादा का दर्शकों का डाटा लेकर जा सकते हैं, जबकि नए चैनल ऐसा नहीं कर सकते.

साप्ताहिक रेटिंग से चैनलों को धीरे-धीरे यह भी पता चलता है कि एक दर्शक क्या देखना चाहता है. यहां भी इस जानकारी की आवश्यकता नए खिलाड़ी को पुराने खिलाड़ी से कहीं ज्यादा है.

एनबीएफ और एनबीडीए के इस मौजूदा समय में आमने-सामने होने की यह वजह है. जहां एक रेटिंग के दोबारा शुरू होने के लिए इंतजार कर सकता है, वहीं दूसरा उन्हें अभी चाहता है. एनबीएफ के सेक्रेटरी-जनरल आर जय कृष्णा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मैं बाजार जा कर विज्ञापन नहीं ले सकता क्योंकि मेरे पास रेटिंग नहीं हैं. हर दिन, एक बचे रहने का संघर्ष है. ऐसे दर्जनों चैनल हैं जिन्हें जबरन बंद किया या बेचा जा रहा है. इससे अलग, ऐसे कम से कम 200 समाचार चैनल हैं जो एनबीएफ और एनवीडीए के सदस्य नहीं हैं, उन पर बिना वजह ही इतना बड़ा असर पड़ रहा है."

आरोप और आशंकाएं

एनबीएफ के एक सूत्र ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि जुलाई 2021 तक बार्क ने अपने रेटिंग मापने के तंत्र में, मंत्रालय के द्वारा ज्यादा पारदर्शिता के लिए बताए गए सुझावों के अनुसार बदलाव कर लिए थे. नई सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर इस बात के "असली और ठोस" सबूत चाहते थे कि बार्क के तंत्र में बदलाव हो गए हैं. सूत्र ने यह भी कहा कि दिसंबर तक यह तथ्य उनके पास थे. 16 दिसंबर की मीटिंग में मंत्रालय ने बार्क को हरी झंडी दिखा दी.

रेटिंग का अभी तक जारी न होना, मंत्रालय पर इसके लिए दबाव बना रहे एनबीएफ के लिए झल्लाहट पैदा करने वाला है. एनबीएफ के एक व्यक्ति ने कहा कि एसोसिएशन को इस "देरी" के पीछे एनबीडीए का हाथ होने का शक है, क्योंकि उसके चैनल- जैसे कि रिपब्लिक नेटवर्क, रेटिंग्स में एनबीएफ के चैनलों से पीछे हैं.

एनबीएफ के सूत्र ने कहा, "नवंबर में, बार्क ने हमसे कहा था कि वह रेटिंग जारी करने के लिए तैयार थी. तो वे कहां हैं? बार्क के पास समाचार क्षेत्र की रेटिंग जारी करने में आगे देरी के लिए, अब कोई और वाहियात कारण और बेकार के बहाने नहीं बचे हैं."

बार्क के लोगों का कहना है कि आठ से दस हफ्तों में रेटिंग आ जाएंगी, क्योंकि उसे "हिस्सेदारों में सामंजस्य" बिठाने के लिए इतना समय चाहिए. बार्क के दोनों एसोसिएशन में से किसी एक के दबाव में आकर झुकने की बात को खारिज करते हुए बार्क के एक सूत्र ने कहा, "आकलन के लिए 400 से ज्यादा चैनल हैं. बार्क अपना खुद मालिक है और अपने हिसाब से काम करेगा."

एनबीडीए के सदस्यों ने कहा कि एनबीएफ के दावे खोखले हैं. समाचार जगत के एक सूत्र ने कहा, "मंत्रालय ने बार्क को रेटिंग जारी करने के लिए कहा. उसने यह नहीं कहा कि इसी शाम या इसी हफ्ते जारी कर दो. बाकी सभी चैनल इस बारे में संयम बरत रहे हैं. मुझे नहीं पता कि रिपब्लिक और टीवी-9 इतने दुखी क्यों हैं. जब बार्क तैयार होगा तब रेटिंग आ जाएंगी."

एएनआई के अनुसार, मंत्रालय ने बार्क को रेटिंग "तुरंत दोबारा से शुरू करने" के लिए कहा था.

एनबीडीए के हलकों में रिपब्लिक टीवी की साख को लेकर भी काफी असहजता है. 2020 के अंत में, मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी पर बार्क के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता को, और मीटर लगे हुए कुछ घरों में रिश्वत देकर रेटिंग बढ़ाने का आरोप लगाया था. अर्णब गोस्वामी ने इन आरोपों को "एक पूरी तरह से घृणित झूठ" बताकर खारिज कर दिया था.

एनबीडीए के एक नजदीकी सूत्र ने कहा, "मुझे लगता है कि बार्क ने कुछ बदलाव किए हैं और बाकी बदलावों के लिए उन्हें कुछ समय चाहिए. अगर रेटिंग अभी चुनावों से बिल्कुल पहले चालू होती हैं और कुछ चैनल पुराने पैंतरों का इस्तेमाल कर उसमें हेर-फेर करते हैं, तो फिर क्या?"

हमने इस पर टिप्पणी लेने के लिए रजत शर्मा से संपर्क करने की कोशिश की. अगर उनकी तरफ से कोई उत्तर आता है तो वह इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

इकलौती बात जिस पर एनबीएफ और एनबीडीए के लोग एक दूसरे से राजी होते हैं, वह यह कि बार्क ने पिछले साल में अपने कॉर्पोरेट प्रशासन और तकनीक को बेहतर कर लिया है. लेकिन जैसे-जैसे संस्था रेटिंग जारी करने की तैयारी कर रही है, पिछले 16 महीनों से छाई शांति बहुत कमजोर जान पड़ती है. कथित "टीआरपी घोटाले" के दौरान रिपब्लिक टीवी, टाइम्स समूह और इंडिया टुडे नेटवर्क के बीच हुई तू-तू मैं-मैं और एक दूसरे पर कीचड़ उछालने से, विज्ञापन की आमदनी के लिए झुके हुए मीडिया जगत में एक खटास छोड़ दी. केवल यही उम्मीद की जा सकती है कि नए बार्क में अराजकता फिर नहीं शुरू होगी.

न्यूज़लॉन्ड्री ने बार्क को अपने प्रश्न भेजे हैं. उनकी तरफ से जवाब आने पर इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

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