आखिर क्यों दिल्ली पुलिस को इस मामले में पहली गिरफ्तारी करने में छह महीने का वक्त लगा?
क्या है एमएलएटी और कैसे मिलती है अनुमति?
गृह मंत्रालय के दिसंबर 2019 के एक पत्र के मुताबिक भारत का कुल 42 देशों के साथ परस्पर कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) है. इसका उद्देश्य परस्पर कानूनी सहायता के माध्यम से आतंकवाद से संबंधित अपराधों समेत अन्य अपराधों की जांच और अभियोजन में दोनों देशों की क्षमता और प्रभावशीलता में वृद्धि करना है.
गिटहब एक अमेरिकी कंपनी है, इसलिए कंपनी ने सीआरपीसी की धाराओं के तहत मांगी गई जानकारी को साझा नहीं किया. इसलिए दिल्ली पुलिस ने एमएलएटी के तहत कंपनी से जानकारी मांगी. भारत ने अमेरिका के साथ साल 2005 में यह संधि की थी.
गृह मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार, किसी भी जांच एजेंसी को राज्य सरकार की अनुमति के बाद एक प्रपोजल तैयार करना होता है जो लीगल सेक्शन, केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा जाता है. इसके बाद लीगल सेक्शन उस प्रपोजल की जांच करता है. जिसके बाद वह जांच एजेंसी को कोर्ट से अनुमति पत्र लेने के लिए कहता है. कोर्ट से अनुमति पत्र मिलने के बाद जांच एजेंसी उसे गृह मंत्रालय को भेजती है. गृह मंत्रालय एडिशनल डायरेक्टर (आईपीसीसी) के जरिए वह संबंधित देश को पत्र भेजता है.
सुल्ली डील्स मामले में एमएलएटी की भूमिका
डीसीपी केपीएस मल्होत्रा न्यूज़लॉन्ड्री को कहते हैं, “दिल्ली पुलिस ने अगस्त में एमएलएटी के लिए आवेदन किया था. हमें दिल्ली सरकार से 29 दिसंबर को अनुमति पत्र मिला, 31 दिसंबर को सीएमएम कोर्ट से अनुमति पत्र मिला, जिसके बाद हमने इंटरपोल के द्वारा 5 जनवरी को अमेरिका भेज दिया.”
क्या यह महज इत्तेफाक है कि बुली बाई मामले के समय में ही दिल्ली पुलिस को एमएलएटी मामले की अनुमति मिली? इस पर मल्होत्रा कहते हैं, “हां, यह महज इत्तेफाक हो सकता है. हालांकि हमें दिल्ली सरकार की अनुमति 29 दिसंबर को ही मिल गई थी.”
एक साइबर एक्सपर्ट के मुताबिक आज की दुनिया में ऑनलाइन अपराध करने वालों तक पहुंचना बहुत मुश्किल नहीं है. यह निर्भर करता है कि पुलिस किस मामले में कार्रवाई करना चाहती है और किस मामले में नहीं. दिल्ली पुलिस का रवैया सुल्ली डील्स मामले में बहुत ढ़ीला रहा है. वह जांच में कोताही कर रही थी, वरना अभी तक गिरफ्तारी हो गई होती.
बता दें कि राकेश अस्थाना सुशांत सिंह ड्रग्स मामले की जांच के दौरान एनसीबी के डीजी थे. उन्होंने ही केपीएस मल्होत्रा के अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था. मल्होत्रा एनसीबी के जोनल डायरेक्टर थे. उन्होंने ड्रग मामले की जांच की थी.
अगस्त 2021 में अस्थाना को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया गया. जिस पर काफी विवाद भी हुआ था. उनकी नियुक्ति को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती भी दी गई थी. हालांकि हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया. केपीएस मल्होत्रा की नियुक्ति स्पेशल सेल में सितंबर महीने में की गई है.
एमएलएटी की प्रकिया में देरी के लिए जिम्मेदार कौन?
परस्पर कानूनी सहायता मिलने में हुई देरी पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “इस पूरी प्रक्रिया में कुल 45 दिन लगते हैं. 15 दिन भारत में अनुमति लेने में और 30 दिन विदेश से जवाब आने में. इस मामले में अगर पांच महीने भारत में ही अनुमति मिलने में समय लग गया तो इसका मतलब है कि पुलिस इस मामले को ठीक से फॉलो नहीं कर रही थी.”
विक्रम सिंह कहते हैं, “एमएलएटी में अगर इतना समय लग गया तो इसका मतलब है कि इसमें पुलिस का कोई ना कोई स्वार्थ है. दिल्ली में तो दो से तीन दिन में प्रक्रिया को अनुमति मिल जाती है.”
दिल्ली पुलिस ने 5 जनवरी को इंटरपोल के जरिए पत्र भेजा और 8 जनवरी को पुलिस ने पहली गिरफ्तारी कर ली. क्या इतनी जल्दी जवाब आ जाता है? इस पर पूर्व डीजीपी कहते हैं, “विदेशी एजेंसियां अपना समय लेती हैं. वह इतना जल्दी जवाब नहीं भेजती हैं.”
जब हमने सुल्ली डील्स मामले में जांच कर रही टीम से जुड़े अधिकारी पवन कालरा से पूछा कि, क्या गिटहब से जानकारी मिलने के बाद आप ने ओंकारेश्वर ठाकुर की गिरफ्तारी की या बिना जानकारी मिले? तो उन्होंने इसका जवाब नहीं में दिया. इसके बाद हमने डीसीपी मल्होत्रा को फोन किया लेकिन वह व्यस्त थे.
उधर इंदौर के न्यूयॉर्क सिटी में रहने वाले युवक के पिता अखिलेश ठाकुर कहते हैं, “दिल्ली पुलिस के दो पुलिसकर्मी आए थे और मेरे बेटे के साथ उसका मोबाइल और लैपटॉप भी साथ ले गए. मेरे बेटे को फंसाया जा रहा है.”
हमने और जानकारी के लिए ओंकारेश्वर ठाकुर के भाई को फोन लगाया. वह कहते हैं, “मैं एक प्राइवेट कंपनी में काम करता हूं. मैं आप से बात नहीं कर सकता. मेरी नौकरी चली जाएगी, इसलिए मेरा नाम भी मत छापिएगा.”
दिल्ली पुलिस ने कहा कि उसे 29 दिसंबर को एमएलएटी प्रकिया की अनुमति मिली है. तो हमने इसमें हुई देरी का पता लगाने के लिए दिल्ली सरकार के कानून विभाग, गृह विभाग के सचिव को सात जनवरी को मेल भेजा और फोन पर भी संपर्क किया. प्रिंसिपल सचिव के ऑफिस के कहा गया कि मेल को आगे भेजा गया है. संबंधित विभाग आपको जवाब भेज देगा. हमें उनके जवाब का इंतजार है.
इसके अलावा हमने केंद्रीय गृह मंत्रालय के लीगल सेल, एडिशनल डायरेक्टर (आईपीसीसी) सीबीआई, और अजय भल्ला के ऑफिस को भी पांच जनवरी को मेल किया था. जिसके बाद फोन कर तीनों विभागों से मेल का जवाब देने का अनुरोध भी किया, लेकिन खबर लिखे जाने तक किसी भी विभाग का कोई जवाब नहीं आया है.