डंकापति की जान को खतरा या बुली बाई से खतरा?

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

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कई हफ्ते बाद टिप्पणी में धृतराष्ट्र-संजय संवाद की वापसी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंजाब के फिरोजपुर में जनसभा करने जा रहे थे. वहां उन्हें पंजाब के विकास की कुछ योजनाएं राष्ट्र को समर्पित करनी थीं, एक जनसभा को संबोधित करना था, लेकिन किसानों का एक विरोध प्रदर्शन बीच रास्ते में अड़ गया. प्रधानमंत्री की यात्रा में रूट तय करने की जिम्मेदारी एनएसजी, खुफिया विभाग और संबंधित राज्य की पुलिस की होती है. इस लिहाज से गड़बड़ी तो हुई है. प्रधानमंत्री के काफिले का रास्ता साफ नहीं करवाया गया. इस कारण उन्हें बीच सड़क पर रुकना पड़ा फिर वापस लौटना पड़ा. इस घटना की तर्कसंगत जांच होनी चाहिए ताकि पता चल सके कि गड़बड़ी कहां और किसने की. लेकिन सर्कस में बदल चुके देश के घोघाबसंत मीडिया और हुड़कचुल्लू एंकर एंकराओं ने इस घटना के बाद दिन-रात कई किस्म के करतब दिखाए.

चूंकि पूरा देश ही सर्कस बना हुआ है. हरिद्वार से रायपुर तक जमूरे करतब दिखा रहे हैं. लिहाजा हुड़कचुल्लू एंकर एंकराओं के ऊपर इस बार उनके साहब ने थोड़ा ज्यादा जिम्मेदारी का बोझ डाल दिया था. 2014 तक हिंदू संकट में था. फिर उसे सुरक्षा देने के लिए मोदीजी आए तो मुसलमानों को संकट में डाल दिया. अब खुद मोदीजी संकट में हैं. आप समझ सकते हैं कितनी भारी जिम्मेदारी इन हुड़कचुल्लुओं के कंधे पर है. मोदीजी के नमक का कर्ज एंकर एंकराओं ने कुछ उस अंदाज में चुकाया जिस अंदाज में भारतीय फिल्में दूध और खून का कर्ज चुकाती हैं.

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Complaining about the media is easy and often justified. But hey, it’s the model that’s flawed.

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