नीलामी पर चौतरफा चुप्पी ने बहुत सारी जिंदादिल औरतों की जिंदा आवाजें खामोश कर दीं

सुल्ली डील्स के अपराधी जुलाई 2021 से अब तक आजाद घूम रहे हैं यदि उन्हें गिरफ्तार कर उन पर कार्रवाई की गई होती तो शायद इसका दूसरा संस्करण बुली बाई गढ़ने की हिम्मत पकड़े गए आरोपी न कर पाते.

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निश्चित ही नफरत के पुजारियों ने इस बात का जश्न मनाया होगा कि वे 20-21 वर्ष की आयु के तीन हिन्दू युवकों तथा 18 वर्षीय हिन्दू युवती में इतनी गहरी घृणा भर सके कि इन्होंने मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी के लिए बुली बाई जैसा निंदनीय और निर्मम एप बनाया. इसे चर्चित करने के लिए नववर्ष के प्रथम दिवस का चयन किया गया जब लाखों देशवासियों की भांति यह मुस्लिम महिलाएं भी जम्हूरियत को बचाने, औरतों के हक की लड़ाई को नए जोश से आगे बढ़ाने तथा मुल्क में अमन-चैन और भाईचारे का माहौल स्थापित करने के लिए संकल्पबद्ध हो रही थीं. इन मुस्लिम महिलाओं के मनोबल को तोड़ने के लिए बड़ी ही चतुर नृशंसता से नव वर्ष के उत्सव भरे दिनों का चयन किया गया.

बुली बाई एप के निर्माता मुस्लिम महिलाओं के अपमान तक ही सीमित नहीं रहे. उन्होंने झूठी सिख पहचान गढ़ी, एप की भाषा में पंजाबी को प्रधानता दी गई और पगड़ी को एप का लोगो बनाया गया. इसे खालिस्तान समर्थक भी दिखाने की कोशिश हुई. इस तरह न केवल सिख समुदाय की छवि को धूमिल किया जा सकता था अपितु सिख तथा मुस्लिम समुदाय के मध्य शत्रुता भी उत्पन्न की जा सकती थी. हो सकता है कि एप के निर्माण से जुड़े लोग कृषि कानूनों पर सरकार के बैकफुट पर जाने के लिए सिख किसानों को जिम्मेदार समझते हों और इस तरह उनसे प्रतिशोध ले रहे हों.

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क्या यह महज एक संयोग है कि बुली बाई एप तब आया है जब पंजाब, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में चुनाव निकट हैं और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें अपने चरम पर हैं. क्या यह महज एक संयोग था कि इसी तरह की कुत्सित मानसिकता को दर्शाने वाला पहला एप सुल्ली डील्स तब सामने आया था जब बंगाल के चुनाव निकट थे और उस समय भी साम्प्रदायिक दुष्प्रचार सारी सीमाएं लांघ रहा था.

पता नहीं हममें से कितने लोगों ने जुलाई 2021 में सुल्ली डील्स की शिकार बनी व्यावसायिक पायलट हाना मोहसिन खान का वह मार्मिक आलेख पढ़ा है जिसमें उन्होंने उस घनघोर मानसिक यंत्रणा का चित्रण किया है जो उन्हें झेलनी पड़ी थी. हाना बताती हैं कि सुल्ली डील्स की शिकार 83 महिलाओं में से बहुत ने स्वयं सोशल मीडिया छोड़ दिया. कई महिलाओं को परिजनों ने सोशल मीडिया छोड़ने को बाध्य कर दिया. बहुत सी पीड़ित महिलाएं इस अमानवीय घटनाक्रम का विरोध तो कर रही हैं लेकिन उनमें कानूनी कार्रवाई करने का साहस नहीं है, उनके मित्र और परिजन भी उन्हें परामर्श दे रहे हैं कि वे कानूनी कार्रवाई करने का “खतरा” मोल न लें. हाना जैसी चंद पीड़ित महिलाओं ने कानून की शरण ली है और अब उन्हें पता है कि उनके हितैषी क्यों उन्हें शांत रहने को कह रहे थे. बहुत सारी जिंदादिल औरतों की जिंदा आवाजें खामोश कर दी गई हैं.

सब मौन हैं. केंद्र सरकार की सभी कद्दावर महिला मंत्री चुप हैं. अभी कुछ ही महीने पहले तीन तलाक प्रकरण में स्वयं को मुस्लिम महिलाओं के परम हितैषी के रूप में प्रस्तुत करने वाले बुद्धिजीवी मूकदर्शक बने हुए हैं. बार-बार भावोद्रेक में अपने नेत्र सजल कर लेने वाले आदरणीय प्रधानमंत्री जी की सर्द खामोशी इन महिलाओं को चिंता में डाल रही है. सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव का जवाब यह बताता है कि यह मामला उन्हें दूसरे साइबर अपराधों से ज्यादा गंभीर नहीं लगता. अनेक मामलों में स्वतः संज्ञान लेने वाला न्यायालय भी इस बार शांत है. मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन नीलामी के अपराध से ज्यादा डराने वाली सरकार और सभ्य समाज की यह चुप्पी है.

ऐसा लगता है कि लंबे संघर्ष के बाद अर्जित स्वतंत्रता, सशक्त लोकतांत्रिक व्यवस्था और गौरवशाली नागरिक जीवन का हासिल हम चंद महीनों में ही खो देंगे, मध्ययुगीन सामंती व्यवस्था की वापसी हो रही है जहां हिंसा है, प्रतिशोध है, जहां औरतों की आजादी के लिए कोई जगह नहीं है. अंतर केवल एक है-अब हमारे पास औरतों को अपमानित और प्रताड़ित करने के लिए उन्नत तकनीक है. दुर्भाग्य है कि तकनीक तो विकसित हो रही है किंतु वैज्ञानिक दृष्टि तथा मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है.

सुल्ली डील्स के अपराधी जुलाई 2021 से अब तक आजाद घूम रहे हैं यदि उन्हें गिरफ्तार कर उन पर कार्रवाई की गई होती तो शायद इसका दूसरा संस्करण बुली बाई गढ़ने की हिम्मत पकड़े गए आरोपी न कर पाते. किंतु जैसा आजकल का चलन है अल्पसंख्यक समुदाय को प्रताड़ित करना कोई गंभीर अपराध नहीं माना जाता, फिर यह तो मुस्लिम महिलाएं हैं. हो सकता है इन एप निर्माताओं को राष्ट्र भक्तों के रूप में सोशल मीडिया पर चित्रित किया जाए.

मुस्लिम समुदाय से आने वाली जागरूक, सक्रिय, मुखर एवं अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने को तत्पर महिला पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ता इस एप के निशाने पर थीं. यह एप कितना जघन्य और भयानक है इसकी कल्पना केवल वही महिला कर सकती है जिसे किसी प्यारी सी सुबह में मालूम हो कि वह नीलामी के लिए लोगों के सामने पेश की गई है, उसकी तस्वीर को देखकर कुत्सित और भद्दे कमेंट किए जा रहे हैं. वह एक बहन, बेटी,पत्नी या मां नहीं है बल्कि वह एक सामान है. केवल एक जिस्म! वासना के सौदागर अपने सामान की मुंह मांगी कीमत देने को लालायित हैं और लोगों को बता रहे हैं कि वे दी गई कीमत कैसे वसूल करेंगे.

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने भारत सरकार से आग्रह किया है कि इस तरह के एप्लीकेशन्स के निर्माताओं पर कठोरतम कार्रवाई की जाए. पता नहीं इस आग्रह पर सरकार की प्रतिक्रिया क्या होगी? कहीं इसे भारत की छवि खराब करने के अभियान का एक भाग तो नहीं कह दिया जाएगा.

हम निश्चिंत हैं, हमें भरोसा है कि ऐसी किसी नीलामी में हम हमेशा खरीददार ही रहेंगे. हमारी बहन-बेटी-पत्नी-मां की इस नीलामी में कभी बोली नहीं लगेगी. यह हमारा भ्रम है. नफरत, हिंसा, प्रतिशोध यह सारे संक्रामक रोग हैं. जब इनका आक्रमण होगा तो हमें पछतावा होगा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.

लेखक छत्तीसगढ़ के रायगढ़ स्थित स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.

(साभार- जनपथ)

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