प्रधानमंत्री की सुरक्षा की जिम्मेदारी एसपीजी की है. इसका एकमात्र यही काम है. एसपीजी कैसे फैसला लेगी, प्रधानमंत्री नहीं तय करते हैं बल्कि एक ब्लू बुक है उसके हिसाब से तय होता है.
पंजाब सरकार की भूमिका हो सकती है लेकिन प्रधानमंत्री की सुरक्षा के मामले में उसकी भूमिका एसपीजी के अधीन होती है. प्रधानमंत्री कहां जाएंगे और उनकी बगल में कौन बैठेगा यह सब एसपीजी तय करती है. इसलिए सबसे पहले कार्रवाई केंद्र सरकार की तरफ से होनी चाहिए. अगर पंजाब पुलिस ने एसपीजी को गलत जानकारी दी कि रास्ता साफ है, प्रधानमंत्री 140 किलोमीटर का सफर सड़क से तय कर सकते हैं तो फिर पंजाब पुलिस के प्रमुख को इस्तीफा देना चाहिए लेकिन तब यह सवाल उठेगा कि खुफिया एजेंसियों ने क्या जानकारी दी थी, अगर उन्होंने भी गलत जानकारी दी तब खुफिया एजेंसी को भी बर्खास्त कर देना चाहिए.
क्या सभी एजेंसियों को नहीं पता था कि पंजाब में प्रधानमंत्री के आने के पहले से जगह-जगह में किसानों के प्रदर्शन चल रहे थे. जिसका एलान उन्होंने दो जनवरी को कर दिया था. तब इतना जोखिम क्यों लिया गया? क्या यह पंजाब सरकार की जिम्मेदारी है या केंद्र सरकार की? कायदे से गृह मंत्री अमित शाह को इस्तीफा देना चाहिए मगर ये सब अब पुरानी बातें हो चुकी हैं.
सारी कोशिश डिबेट पैदा करने की है. डिबेट के लिए कटेंट इवेंट से आएगा तो बीजेपी के नेता महामृत्युजंय जाप करने लगे. आनन फानन में इस तरह से महामृत्युंजय जाप तो नहीं होता है. शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट किया कि महामृत्युंजय जाप करने जा रहे हैं और पुजारी कह रहे हैं कि गणपति की पूजा करके चले गए. क्या इसे नौटंकी की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए? सुरक्षा के मूल सवालों को छोड़ कर पूजा पाठ के कार्यक्रम होने लगे ताकि गोदी मीडिया को अगले दिन डिबेट और कवरेज के लिए कटेंट दे सकें और केवल मोदी मोदी होता रहे.
प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक हुई है. इस सवाल को रैली में कितने लोग आए, कितने नहीं आए इसे लेकर ज्यादा बहस की जरूरत नहीं. हर सरकार रैलियों का रास्ता रोकती है. बात है कि 100 किलोमीटर से अधिक की दूरी सड़क से तय करने का फैसला कब हुआ? क्या इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इतनी लंबी यात्रा सड़क से की है?
संयुक्त किसान मोर्चा ने बयान जारी किया है कि वहां के प्रदर्शनकारी किसानों को इसकी पुख्ता सूचना नहीं थी कि प्रधानमंत्री का काफिला वहां से गुजरने वाला है. उन्हे तो प्रधानमंत्री के वापिस जाने के बाद मीडिया से पता चला. संयुक्त मोर्चा ने यह भी कहा कि काफिले के नजदीक प्रदर्शनकारी नहीं गए थे. मगर बीजेपी के समर्थक बीजेपी का झंडा लेकर कैसे चले गए?
आधिकारिक तौर पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है. गृह मंत्रालय की तरफ से एक बयान आया है जिसे पीआईबी ने जारी किया है. इसमें हुसैनीवाला जाने की बात तो लिखी है लेकिन यह नहीं लिखा है कि कार्यक्रम पहले से तय था. प्रधानमंत्री हुसैनीवाला हेलिकॉप्टर से जा रहे थे इसकी सूचना किसे थी? फिर इसका जिक्र प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में क्यों नहीं था जिसे खुद उन्होंने 5 जनवरी को जारी किया था. हुसैनीवाला और रैली स्थल में कोई 10-12 किलोमीटर की दूरी है तो एक जगह की यात्रा को गुप्त रखने की बात बहुत जमती नहीं है.
चलते चलते एक बड़ा सवाल और है. समाचार एजेंसी एएनआई के हवाले से एक खबर आती है कि अपने सीएम को थैक्स कहना, मैं बठिंडा जिंदा लौट आया. एएनआई के अनुसार प्रधानमंत्री ने यह बात एयरपोर्ट पर अधिकारियों से कही है. किसी ने पता लगाने का प्रयास किया कि किन अधिकारियों से यह बात कही और एएनआई ने इसे छाप दिया और यही हेडलाइन हर जगह बनती है.
इस लाइन से भावनाओं में उबाल लाने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन यह साफ नहीं कि प्रधानमंत्री ने एयरपोर्ट पर किन अधिकारियों से बात की? उन अधिकारियों ने क्या पंजाब के मुख्यमंत्री को बताया कि प्रधानमंत्री का ऐसा संदेश है? अगर इसका जवाब नहीं आता है तो यह माना जाना चाहिए कि एएनआई की यह सूचना संदेहों से परे नहीं हैं. क्या इस तरह की हेडलाइन बने ऐसा कुछ सोच कर जारी किया गया? आपने किसी कवरेज में देखा कि पत्रकार उन अधिकारियों को खोज रहे हैं, उनसे बात कर रहे हैं?
आपकी नियति नौटंकियों से तय नहीं होनी चाहिए. ठोस सवालों और जवाबों से होनी चाहिए. प्रधानमंत्री का ट्रैक रिकार्ड रहा है कि वे खुद को मुद्दा बना देते हैं. नोटबंदी के दौरान जब जनता भूखे मर रही थी तो प्रधानमंत्री ने पहले विदेश में मजाक उड़ाया लेकिन भारत आकर रोने लगे. इस तरह का रिकार्ड रहा है. इस बार ऐसा नहीं हुआ है इसलिए सवालों का जवाब गंभीरता से दिया जाना चाहिए. आधिकारिक रूप से दिया जाना चाहिए. बाकी आप मीम बनाते रहिए.
(साभार- फेसबुक)
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