अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ डेवलपमेंट में प्रोफेसर और एफपीओ पर अध्याय (जिसका शीर्षक- ‘किसान उत्पादक कंपनियां: मात्रा से गुणवत्ता तक’ है) की सह-लेखिका, रिचा गोविल ने बताया कि छोटे और सीमांत किसानों को सामूहिक रूप से संगठित करने में 10 हजार एफपीओ की नीति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
इस दिशा में और प्रयास किए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि किसान लंबे समय से संकट का सामना कर रहे हैं. उनके मुताबिक, "चूंकि भारत के अधिकांश किसान छोटे और सीमांत हैं, इसलिए यह उम्मीद करना यथार्थ से परे है कि वे बाजारों में इस तरह से भाग लेने के काबिल बनें, जिससे उन्हें पर्याप्त आय अर्जित करने और फलने-फूलने का मौका मिले."
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में ही स्कूल ऑफ डेवलपमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर अन्नपूर्णा नेति, भी इस अध्याय की सह-लेखिका हैं. उनके मुताबिक, हालांकि इस दिशा में सरकार के प्रयास काफी विस्तृत हैं लेकिन प्रयासों और लाभांवितों के बीच की दूरी पर ध्यान दिया जाना भी जरूरी है. दस हजार एफपीओ योजना के तहत सरकार काफी कोशिशें कर रही हैं, लेकिन जिस तरह से हर बिजनेस स्टार्ट-अप को सहयोग की जरूरत होती है, उसी तरह एफपीओ को भी है.
उन्होंने विस्तार से बताया कि एफपीओ को फंडिंग सुरक्षित करने, ग्राहकों की पहचान करने व उनके साथ संबंध बनाने और आंतरिक-शासन प्रक्रियाओं को स्थापित करने की आवश्यकता है. इसके लिए, उन्हें अपनी क्षमता-निर्माण करने की जरूरत है ताकि वे स्टार्ट-अप चरण से विकास और अंततः परिपक्वता तक पहुंच सकें. उनके मुताबिक, "यह एक फासला है जिस पर अभी ध्यान नहीं दिया गया है."
नेति इस पर जोर देती हैं कि सरकारी कार्यक्रमों तक एफपीओ की पहुंच की प्रकिया को सरल बनाना जरूरी है. साथ ही उसके लिए इक्विटी अनुदान और लोन मिलना भी आसान होना चाहिए. उनके मुताबिक, ऐसा या तो पात्रता के लिए सीमा को कम करके या पात्रता मानदंड तक पहुंचने के लिए एफपीओ का समर्थन करके, या दोनों तरीकों को एक साथ अपनाकर किया जा सकता है.
(डाउन टू अर्थ से साभार)