वजीराबाद से ओखला तक यमुना की 22 किलोमीटर की यात्रा में 22 मौतों की पड़ताल.
1990 में पहला यमुना एक्शन प्लान आया, कई वादे किए गए और कई समय सीमा समाप्त हो गईं, लेकिन दिल्ली से गुजरने वाली यमुना आज भी तिल-तिल कर मर रही है. यह थोड़ा उल्टी बात हो गई दरअसल यमुना नहीं मर रही है, बल्कि लोग खुद अपनी जीवनदायिनी नदी की हत्या कर रहे हैं, जिसकी कीमत एक न एक दिन लोगों को ही चुकानी होगी. इंसानी सभ्यता का इतिहास गवाह है कि वह नदियों की ओर भागता रहा है, पानी के किनारे-किनारे ही आबाद हुआ है. नदियों की नमी से ही इंसानी सभ्यताओं की बेल हरी-भरी हुई है. खैर 1990 से लेकर अब तक तीन यमुना एक्शन प्लान तैयार हुए, लागू हुए, फेल हो गए. इनमें 5,000 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किया गया लेकिन नतीजा सिफर ही रहा.
हरियाणा के पल्ला गांव से यमुना दिल्ली में प्रवेश करती है. यहीं से थोड़ी दूर वजीराबाद बैराज पर दिल्ली का मशहूर सिग्नेचर ब्रिज बना हुआ है. हरियाणा से पानी दिल्ली में प्रवेश करता है. नदी के घाटों के दोनों तरफ मंदिर बने हैं, जहां लोग पूजा अर्चना करते हैं. साथ ही नाविक भी वहां खड़े रहते हैं. ये नाविक श्रद्धालुओं को नदी के बीच अस्थियां और फूल विसर्जित कराने का काम करते हैं.
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