गौतम बुद्ध नगर के जेवर विधानसभा क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 25 नवंबर को जेवर एयरपोर्ट का शिलान्यास किया. इस एयरपोर्ट की वजह से छह गांवों के करीबन 3,000 परिवारों को विस्थापित किया गया है. जिन लोगों की जमीन गई है, उनमें बहुत से लोगों को अभी तक मुआवजा नहीं मिल पाया है. प्रशासन के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, साथ ही केंद्र और राज्य सरकार के द्वारा विस्थापित लोगों को हाई-सोसाइटी नगर देने का वादा भी खोखला साबित हो रहा है.
मुआवजे की रकम में हेराफेरी
जेवर में जिन जमीनों पर विस्थापित लोगों को बसाया गया है, उन जमीनों के मालिकों को मुआवजे की रकम में हेराफेरी नजर आती है, उनका कहना है कि उन्हें जमीन की मालियत के हिसाब से रकम नहीं मिली. लोगों ने बताया कि सर्किल रेट के हिसाब से इलाके की जमीन का असली दाम 40 से 50 लाख रुपए प्रति बीघा है, लेकिन प्रशासन की तरफ से उन्हें मात्र 18 लाख 37 हजार रुपए प्रति बीघा ही दिए गए.
आरोप है कि प्रशासन ने ग्रामीण जमीन को शहरी बताकर मुआवजे की रकम आधी कर दी. ग्रामीण जमीन के हिसाब से 36 लाख रुपए प्रति बीघा मुआवजे के तौर पर मिलना था लेकिन प्रशासन ने ग्रामीण जमीनों को शहरी जमीन बताकर मात्र 18 लाख 37 हजार रुपए प्रति बीघा ही दिए. लोगों ने बताया कि जिन परिवारों की जमीन गई है, उन परिवारों के प्रत्येक 18 वर्ष से ज्यादा आयु वाले सदस्यों को 5.5 लाख रुपए मिलने थे लेकिन इनमें भी हेराफेरी कर काफी लोगों को मुआवजे की रकम से वंचित रखा गया.
वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों को विस्थापित किया गया है उन लोगों को भी समय से मुआवजा नहीं मिल पाया. विस्थापित लोगों में से एक जाहिद बताते हैं कि उनके परिवार के दो घर तोड़े गए थे, जिनमें से एक घर का मुआवजा छह लाख मिल चुका है और दूसरे घर का मुआवजा साढ़े पांच लाख अभी तक नहीं मिला.
दलालों ने खाए खूब पैसे!
स्थानीय लोगों का आरोप है कि मुआवजे की रकम अदा करने में प्रशासन की मिलीभगत से दलालों ने खूब पैसे कमाए हैं. ग्रामीणों का ये भी कहना है कि दलालों को बिना पैसे दिए खाते में मुआवजे की रकम नहीं आती. पास के गांव गोपालगढ़ के रहने वाले एक व्यक्ति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि उनके मुआवजे की 5.5 लाख रुपए रकम लंबे समय से खाते में नहीं आई थी, फिर उनकी मुलाकात एक गौरव नाम के दलाल से हुई जिसे उन्होंने 1.5 लाख रुपए दिए जिसके बाद उनकी मुआवजे की रकम खाते में आ गई.
एक अन्य व्यक्ति सत्येंद्र का कहना है, "इसी तरह से दलालों ने कई लोगों से 50-50 हजार रुपए कुछ लोगों से 1-1 लाख रुपए की रकम ली है. लगभग प्रतिदिन दलालों का आना जाना गांव में लगा रहता था और वे हर रोज करीब 10 लोगों से पैसे लेते थे. जिन लोगों से पैसे लेते थे उन्हीं की फाइल आगे बढ़ाई जाती थी और मुआवजा भी उन्हीं का आता था."
जतनपाल सिंह बताते हैं कि उनके बेटे के मुआवजे के पैसे अभी तक नहीं आए हैं. दलाल उनके घर आते हैं और कहते हैं कि एक लाख रुपए दे दो पैसा आ जाएगा. वह आगे कहते हैं कि उनके बेटे अभिषेक राणा की उम्र 23 साल हो चुकी है लेकिन उनके पास आयु सर्टिफिकेट नहीं था. इस बीच पवन दुबे नाम के एक शख्स ने जतनपाल से आयु सर्टिफिकेट बनवाने को कहा.
जतनपाल कहते हैं, "सर्टिफिकेट को बनवाने में 80 हजार रुपए बीच के लोगों को खिलाने पड़ गए. हालंकि सर्टिफिकेट बनने के बाद भी मुआवजे की रकम अभी तक भी खाते में नहीं आई है."
22 वर्षीय नायक की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. उनकी भी अभी तक मुआवजे की रकम नहीं आई है. नायक ने अपना आयु सर्टिफिकेट सीएमओ ऑफिस से बनवाया है जिसके लिए उन्हें 60 हजार रुपए खर्च करने पड़ गए.
नायक के पिता राजपाल सिंह कहते हैं, "मैंने कर्ज पर 60 हजार रुपए लेकर बेटे का सर्टिफिकेट बनवाया था, लेकिन फिर भी अभी तक मुआवजा नहीं आया है."
किराए पर रहने को मजबूर हुए लोग
जिस जमीन पर जेवर एयरपोर्ट का शिलान्यास प्रधानमंत्री मोदी ने 25 नवंबर को किया है, उसी जमीन पर करीबन छह से सात महीने पहले तक छह गांवों के करीबन 3,000 परिवार रहा करते थे. उन सभी परिवारों को बन रहे जेवर एयरपोर्ट से करीबन पांच किलोमीटर की दूरी पर बसाया गया है.
विस्थापितों में से रामकिशन शर्मा बताते हैं कि उनका घर बिना मुआवजा दिए तोड़ दिया गया और उन्हें मजबूर होकर आठ महीने तक किराए पर रहना पड़ा. रोही गांव में उनका घर 600 वर्ग मीटर जमीन पर था, लेकिन प्रशासन की तरफ से उन्हें 300 वर्ग मीटर जमीन ही घर बनाने के लिए दी गई है."
जाहिद बताते हैं कि उनके परिवार को समय से मुआवजा नहीं मिलने के कारण पिछले पांच महीनों से किराए पर रहना पड़ रहा है. किराए का खर्च प्रति माह 5000 हजार रुपए के करीब आता है जो कि हमारे जैसे साधारण परिवार के लिए देना मुश्किल पड़ रहा है."
रूही गांव की रहने वाली सत्यवती जिनका घर पांच महीने पहले तोड़ दिया गया था, वह कहती हैं, "हम एक महीने पहले ही अपने घर में आए हैं, उससे पहले हमारा परिवार अभी तक किराए पर रह रहा था. मेरा एक बेटा अपाहिज है और घर के बाकी लोग मजदूरी का काम करते हैं. हमें प्रति माह पांच हजार रुपए किराए के रूप में देने पड़ते थे, कई बार किराया न होने पर हमने कर्ज मांगकर किराया दिया है.
वीर सिंह बताते हैं, "हमें सात महीने तक किराए पर रहना पड़ा, किराए की रकम प्रति महीने छह हजार रुपए देनी पड़ती थी. सामान को लाने ले जाने में तकरीबन दो लाख रुपए का सामान टूटने से नुकसान हुआ है." वीर सिंह भी करीब एक महीने पहले ही अपने घर में लौटे हैं.
पानी, बिजली, शौचालय के सभी वादे खोखले
प्रशासन की तरफ से लोगों को यह बताया गया था कि विस्थापित लोगों के रहने वाली जगह पर सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी. विस्थापित लोगों को इस नगर में रहते हुए कई महीनों बीत गए हैं लेकिन अभी तक नगर में पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई है. नगर में पानी की टंकी अभी प्रशासन के द्वारा बनाई जा रही है, फिलहाल पानी की आपूर्ति कब तक होगी, किसी को नहीं मालूम है. पूरे इलाके में एक भी सामुदायिक शौचालय तक नहीं है जिस वजह से लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ रहा है.
प्रशासन ने नगर में बिजली की व्यवस्था तो कर दी है, लेकिन लोगों के पास कनेक्शन नहीं हैं. लोगों का कहना है कि हमारा पुराना कनेक्शन रिन्यू किया जाना चाहिए लेकिन प्रशासन का कहना है कि नया कनेक्शन लेना पड़ेगा. नए कनेक्शन की रकम 9000 रुपए के करीब है जिसके कारण बहुत से लोग नया कनेक्शन लेने से कतरा रहे हैं.
छह गांव के करीब 3,000 परिवारों को एक जगह से दूसरी जगह पर विस्थापित किया गया. इस विस्थापन प्रतिक्रिया में बहुत सारे लोगों ने काफी नुकसान उठाया है. लोगों को अपने पशुओं को भी बेचना पड़ा क्योंकि दिए गए नए नगर में पशुओं को रखने की कोई व्यवस्था नहीं है.
जाहिद बताते हैं कि उनकी तीन भैंसें थीं, जिन्हें उन्होंने यहां आने से पहले बेच दिया.