लगातार पिछले तीन दशकों में लिंगानुपात में सुधार हुआ है. इसलिए एनएफएचएस-5 के आंकड़ों में महिलाओं की संख्या बढ़कर दिखाई दे सकती है.
एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के आधार पर इन बड़ी आबादी और प्रवासी श्रमिकों वाले राज्यों में पुरुष-महिला लिंगानुपात को देखें तो मध्य प्रदेश में 1000 पुरुष पर महिलाओं का अनुपात 970 है, जबकि उत्तर प्रदेश में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1,017 है. इसी तरह से ओडिशा में प्रति 1000 पुरुष पर 1063 महिलाएं और राजस्थान में प्रति 1000 पुरुष पर 1009 महिलाएं हैं.
क्या इन सभी राज्यों में भी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की आबादी बढ़ गई है? यह कहना भी भ्रामक होगा. दरअसल इन सभी राज्यों में महिलाओं की संख्या पुरुष से ज्यादा हो गयी है, यह कहना ठीक नहीं है.
वर्ष 1998 में एनएफएचएस सर्वे-2 में बताया गया था कि देश में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 1000 पुरुष पर 957 महिलाएं थीं, जबकि शहरों में प्रति 1000 पुरुषों पर 928 महिलाएं थीं. इस सर्वे रिपोर्ट में कहा गया यह आंकड़ा हमें बताता है, "महिलाओं के मुकाबले ज्यादा पुरुष शहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन कर रहे हैं."
हालांकि, यदि इस विश्लेषण को आधार बनाया जाए तो फिर कोविड काल के बाद आने वाला एनएफएचएस-5 रिपोर्ट लॉकडाउन के बाद आजाद भारत के सबसे बड़े भीतरी पलायन का आंकड़ा इस डी-फैक्टो गणना वाले सर्वे में स्पष्ट नहीं दिखाई देता.
वर्ष 2005-06 में एनएएफएचएस-3 रिपोर्ट में पहली बार प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं का अनुपात 1000 यानी बराबर दर्ज किया गया था. हालांकि जनगणना के आंकड़े दूसरी तस्वीर पेश करते हैं. लेकिन ऐसा क्यों है?
लिंगानुपात मामलों की जानकार जसोधरा दासगुप्ता कहती हैं कि एनएफएचएस रिपोर्ट के आधार पर लिंगानुपात का निष्कर्ष निकालना सही नहीं है. इन आंकड़ों पर ही सवाल हैं. जनगणना के लिंगानुपात आंकड़े ही स्पष्ट निष्कर्ष निकाल सकते हैं क्योंकि इसमें हम समूची आबादी (1.3 अरब लोग) की गिनती करते हैं और फिर अनुपात निकालते हैं. वहीं, एनएफएचएस में विशिष्ट उम्र वर्ग वाली कुछ महिलाओं की गिनती होती हैं. एनएएफएचएस एकतरफ झुका हुआ (बायज) सर्वे है. राज्यों के ही लिंगानुपात आंकड़ों को देखें जहां सर्वे का आकार बहुत ही कम है. हमें जनगणना के नए आंकड़ों का इंतजार करना चाहिए."
बहरहाल जनगनणना 2011 के मुताबिक भारत का लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुष पर 933 है.
अब तक एनएफएचएस की पांच रिपोर्ट जारी की जा चुकी हैं. पहली रिपोर्ट 1992-92, दूसरी रिपोर्ट 1998-99 और तीसरी 2005-06 और चौथी सर्वेक्षण रिपोर्ट 2015-16 में जारी की गई थी.
(साभार- डाउन टू अर्थ)