प्रशासन को यह कैसे पता चला कि आईजीएनसीए में मौजूद वृक्ष एक वन का दर्जा दिए जाने लायक हैं
यहां पर यह कथा एक मोड़ लेती है. एक आम नागरिक की संरक्षक भावनाओं ने अप्रत्याशित तौर पर प्रशासन की सोई हुई व्यवस्था को जगा दिया, जिसे फिर हिचकते हुए अपना काम शुरू करना पड़ा. शायद यह एक अनदेखी गुगली थी.
घटनाएं कुछ इस प्रकार हुईं.
मार्च 2021 में, गुजरात की एक कंपनी कदम एनवायरमेंटल कंसल्टेंट्स के द्वारा तैयार की गई सचिवालय इमारतों के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट ने कहा कि "उपग्रह से लिए गए चित्र के साथ त्वरित सर्वे" के आधार पर सेंट्रल विस्टा की साइट पर कई जगह लगे 4642 पेड़ों में से 3230 पेड़ों को प्रत्यारोपित किया जाएगा. इसमें किसी "मान्य वन" की बात नहीं थी जो यह दिखाता है कि कोई विस्तृत भौतिक सर्वे नहीं किया गया. दिल्ली के वन विभाग को यह काम दिया गया है कि वह इस तरह के "मान्य वनों" को पहचाने तो इसकी संभावनाएं कम हैं कि उनसे संपर्क किया गया, और न ही विभाग इस जानकारी को देने के लिए खुद आगे आया.
रिपोर्ट यह भी कहती थी कि इस इलाके से 3000 पेड़ों के हटाने (बाकी विषयों के अलावा) से इलाके की प्राकृतिक परिस्थितियों और जैव विविधता पर "नगण्य" असर पड़ेगा.
इसकी वजह से निर्माण कार्य फटाफट शुरू हो गया.
20 अप्रैल 2021 को सचिवालय इमारतों के आईजीएनसीए प्लॉट पर पहले सेट के निर्माण के लिए शुरुआती ठेके सीपीडब्ल्यूडी द्वारा जारी किए गए. कई कारणों की वजह से कई टेंडर भरने के आमंत्रण उसके बाद आए.
6 मई 2021 को दिल्ली अर्बन आर्ट कमिशन ने बिना स्थानीय निकाय की मंजूरी के इन इमारतों को राजीनामा दे दिया (जो उन्हें देने का अधिकार बिल्कुल नहीं था).
4 जून 2021 को पेड़ों को हटाने और प्रत्यारोपण करने का ठेका दिया गया.
लेकिन 7 जून को आंदोलनकारी भंवरीन कांधारी ने वन विभाग को पत्र लिखा. उन्होंने पूछा कि यह पेड़ काटने क्यों जरूरी हैं खासतौर पर जब आईजीएनसीए साइट पर इतनी बड़ी संख्या में पेड़ संभवत है एक संरक्षित हो सकते हैं जिन्हें काटने के लिए कहीं सख्त नियमों के जरिए मंजूरी मिलनी ज़रूरी है.
ऐसा लगता है कि विभाग इस संभावना से "अनभिज्ञ" था.
अगस्त 2021 में ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग में यह खोज की कि आईजीएनसीए प्लॉट पर पेड़ों की संख्या 2300 थी, नियमों के हिसाब से एक "मान्य वन" घोषित किए जाने के लिए पर्याप्त थी. 10 अगस्त 2021 की एक रिपोर्ट वन अधिकारियों के हवाले से बताती है, "यह मंजूरी केवल केंद्र सरकार से मिल सकती है" और यह भी कहती है कि सीपीडब्ल्यूडी को "हटाए गए पेड़ों को दोबारा प्रत्यारोपण करने के लिए एक नया प्रस्ताव भेजना होगा."
क्योंकि उस समय ठेके देने की प्रक्रिया भी अटकी हुई थी, यह संभव है कि सब चीजों को रोकना पड़ा. इस सबके बीच आईजीएनसीए को खाली किया जा चुका था और उसकी बहुमूल्य चीजों को जुलाई महीने की शुरुआत में जनपद होटल में पहुंचा दिया गया था.
कांधारी ने एक साधारण सा सवाल पूछा, "एक ऐसी विशालकाय परियोजना कैसे नहीं जानती कि यह एक 'मान्य वन' होगा? इससे इस दिखावे का खुलासा होता है कि पर्यावरण प्रभाव आंकलन ठीक से किया गया है."
हतप्रभ करने वाली बात यह है कि सरकार जनवरी 2020 में जानती थी कि यह एक "मान्य वन" हो सकता है, उस समय जब गांधारी ने खुद वन विभाग को यह जानने के लिए पत्र लिखा कि नई-नई घोषित सेंट्रल विस्टा परियोजना के अंदर आने वाले "मान्य वन" की स्थिति क्या है.
और 10 मार्च 2021 को उसे पक्का पता था, जब वन संरक्षण कानून का उल्लेख कर परियोजना को मिली मंजूरी की बात करता हुआ एक पत्र जारी किया गया.
तो फिर उसको अगस्त में एक नया प्रस्ताव क्यों दाखिल करना पड़ा? क्या इसका यह मतलब है कि सरकार को सारे नियम पता थे लेकिन उसने मार्च में पर्यावरण मंजूरी पाने के लिए सही संस्था पर आवेदन नहीं किया जिससे वह आसानी से मंजूरी पा सके?
मजे की बात यह है कि आईजीएनसीए के अंदर पेड़ों का पहला विस्तृत सर्वे 4 अगस्त 2021 आया जब 13 जुलाई 2021 को सीपीडब्ल्यूडी ने एक आरटीआई का जवाब दिया.
शायद यह विस्तृत सर्वे पहले नहीं किया गया या फिर इसे न जारी करने को चतुराई माना गया. इसके अंदर मूल्यवान जानकारी थी. इसमें लिखा था कि आईजीएनसीए के अंदर मौजूद 2300 पैरों में से 1838 हटाकर प्रत्यारोपित किए जाएंगे, इनमें से 520 की मोटाई हैरान कर देने वाली 2 फीट से ज्यादा थी और इनमें से 144 की मोटाई 5 फीट से अधिक थी. दूसरे शब्दों में कहें तो यह विरासती वृक्ष करीब 60 से 70 सालों में बड़े हुए होंगे.
यह जानकारी तब बाहर आई जब ईआईए रिपोर्ट मार्च में फाइल हो चुकी थी, मंजूर कर दी गई थी और ठेके जारी हो चुके थे या दे दिए गए थे. या फिर उससे पहले पता चला पर बताया नहीं गया. दोनों ही परिस्थितियों में इससे परियोजना पर कोई फर्क नहीं पड़ा जो किसी न किसी तरह से मिलने वाली मंजूरी के लिए पहले से आश्वस्त था, भले ही थोड़ा सा विलंब हो.
यह स्पष्ट है कि अगर एक्टिविस्ट आरटीआई फाइल नहीं करते, तो पेड़ों का यह जत्था ऐसे ही या तो काट दिया जाता या हटा दिया जाता और उस नुकसान का कभी सर्वे या आकलन भी नहीं होता.
इस समय पेड़ अपने अलग प्रकार के संहार का इंतजार कर रहे हैं - प्रतिरूपण से मृत्यु. यह बार बार आजमाया गया और बुरी तरह से नाकाम रहा प्रयोग है. प्रत्यारोपित किए जाने वाले वृक्षों को 50 किलोमीटर दूर बदरपुर के एनटीपीसी इको पार्क में ले जाया जाएगा जो आम जनता के लिए नहीं खुला है. इन पेड़ों का कोई सार्वजनिक आकलन नहीं किया जा सकता.
पिछले अनुभवों के हिसाब से उनके साथ क्या होने वाला है यह विचार आंखें खोलने वाला है.
इस बात के पूरे आसार हैं कि इनकी परिणिति भी नवंबर 2020 में नई संसद के प्लॉट से हटाए गए 404 घने और परिपक्व वृक्षों की जैसी ही होगी, जिनको आनन-फानन में संसद निर्माण पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय आने से पहले ही दिसंबर के भूतपूर्व समारोह के लिए हटा दिया गया था.
इन सभी 404 वृक्षों को सेंट्रल विस्टा से 23 किलोमीटर दूर एनटीपीसी इको पार्क मेंट्रांसप्लांट किए गए. यह तब हुआ जब 16 सितंबर 2020 के नोटिफिकेशन में यह दावा किया गया था कि प्रत्यारोपण "सेंट्रल विस्टा इलाके के 8 खंडों" के अंदर ही होगा.
नवंबर 2021 को दोबारा से जारी किए गए नोटिफिकेशन, जिस पर दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव के हस्ताक्षर हैं अभी भी यह दावा किया गया है की साइट पर खड़े 404 पेड़ों का प्रत्यारोपण किया जाएगा और उनमें से 130 का प्रत्यारोपित सेंट्रल विस्टा के अंदर ही होगा.
लेकिन इस समय साइट पर कोई पेड़ है ही नहीं, सभी 404 पेड़ 11 महीने पहले ही हटा दिए गए थे!
एक्टिविस्ट कांधारी ने प्रत्यारोपित वृक्षों को जांचने की कोशिश की लेकिन उन्हें इको पार्क में जाने की इजाजत नहीं दी गई. फिर वह अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल कर एक ऐसी जगह पर पहुंची जहां पर वह थोड़ी दूरी से कुछ तस्वीरें ले पाईं.
सत्यता ह्रदय विदारक है.
नीचे की तस्वीरों में प्रत्यारोपण से पहले पेड़ों को लहराते हुए देखें और उसके बाद उनकी मौजूदा स्थिति में उनके सूखे को भी देखें.
इस समय आईजीएनसीए के अंदर 1838 पेड़ इसी परिणीति का इंतजार कर रहे हैं. करीब 500 अन्य वृक्ष ऐसे ही काट दिए जाएंगे. पर्यावरण मंत्रालय की स्थानीय एंपावर्ड कमिटी ने "नैतिक तौर" पर "मान्य वन" की भूमि में से 8.11 हेक्टेयर ज़मीन के परिवर्तन के प्रस्ताव को स्वीकार कर दिया है. इन वृक्षों की कटाई वन संरक्षण कानून के अंतर्गत दूसरे स्तर की सहमति का इंतजार कर रही है.
इसी बीच "कार्यकुशल और उत्पादक" स्टाइल में आईजीएनसीए प्लॉट पर निर्माण का ठेका 27 अक्टूबर 2021 को लार्सन एंड ट्यूब्रो को दे दिया गया. आईजीएनसीए के अंदर का माटी घर और लकड़ी के पैनल वाला पुराना बंगला पहले से ही तोड़ा जा चुका है जबकि उसके लिए आवश्यक वन विभाग की मंजूरी अभी तक नहीं दी गई है.
आईजीएनसीए को अपने शानदार 2300 वृक्षों के साथ पूरे शबाब में आप इस वीडियो में आखिरी बार देख सकते हैं.
यह चार हिस्सों वाली सीरीज का दूसरा पार्ट है. पहला पार्ट आप यहां पढ़ सकते हैं.
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