पराली प्रबंधन: केंद्र और पंजाब सरकार के बीच तकरार के चलते किसानों को नहीं मिल रहा लाभ

2019 में जब सुप्रीम कोर्ट में पराली प्रबंधन का मामला पहुंचा था तब पंजाब सरकार ने यह कहा था कि सीमांत और छोटे किसानों को मशीनों की मदद के अलावा 2500 रुपए नगद राशि प्रति एकड़ की मदद दी जाए.

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पराली प्रबंधन: केंद्र और पंजाब सरकार के बीच तकरार के चलते किसानों को नहीं मिल रहा लाभ
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किसान मांग रहे 6000 रुपए की मदद

वहीं, मौसम और डीजल की महंगाई की मार झेलने वाले किसान खेतों में पराली प्रबंधन के लिए किराए पर हैप्पी सीडर जैसी मशीनों का इस्तेमाल करने से परहेज कर रहे हैं. किसानों को पराली प्रबंधन के लिए हैप्पी सीडर का 2500 रुपए किराया देना पड़ता है. किसान बच्चितर सिंह के मुताबिक कम से कम दो बार जब खेतों में हैप्पी सीडर चलाया जाता है तब जाकर अच्छी बिजाई होती है. ऐसे में कम से कम 5000 हजार रुपए तक का खर्च किसानों को चाहिए.

पंजाब के संयुक्त सचिव कृषि मनमोहन कालिया बताते हैं, "इस वक्त कृषि लागत काफी बढ़ गई है और इसलिए किसान मशीनों का इस्तेमाल कम कर रहे हैं. करीब 15 हजार हैप्पी सीडर और 17 हजार सुपर सीडर मशीने राज्य में हैं. इनका इस्तेमाल करने के लिए लगातार जागरुकता फैलाई जा रही है."

पराली प्रबंधन में कम से कम 5000 रुपए प्रति एकड़ का खर्च

हालांकि किसानों के जरिए पराली की लागत उनपर बोझ बढ़ा रही है. पराली के लिए 6000 रुपए प्रति एकड़ की मांग करने वाले किसानों का कहना है कि 100 से ज्यादा किसानों के बीच एक हैप्पी सीडर मशीन है. ऐसे में उन्हें किराए पर लेने पर कम से कम प्रति एकड़ 5000 रुपए का खर्चा बैठता है. यदि किसान खुद से ट्रैक्टर चलाए तो खेतों में पांच बार ट्रैक्टर चलाना पड़ता है, जिसमें एक एकड़ में पांच लीटर तक का डीजल तेल खर्च हो जाता है. ऐसे में 2500 रुपए तक तो सिर्फ डीजल का खर्चा है. ट्रैक्टर चलाने का खर्चा भी यदि जोड़ दें तो 2000 रुपए अतिरिक्त लग जाते हैं. किसान पराली प्रबंधन के लिए यदि श्रमिकों को खेतों मे लगाए तो भी उसे 4000 रुपए तक प्रति एकड़ देना पड़ता है. ऐसे में किसी भी तरह से 4500 से 5000 रुपए तक किसानो को खुद लगकर खर्च करना पड़ता है.

किसान बच्चितर सिंह कहते हैं ऐसी स्थिति में हम पराली न जलाएं तो क्या करें. किसान पराली जलाएगा ही. वहीं सरकार के एक उच्च अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि चुनाव और आंदोलन के समय में पंजाब के किसानों को कौन पराली जलाने से रोक पाएगा. वैसे इस बार पराली जलाने में कमी आई है, आगे स्थिति बिगड़ सकती है.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

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