किसान जत्थेबन्दियां आंदोलन के चलते बहुत सूझबूझ से मजबूत हो कर उभरी हैं.
पंजाब में सियासी करवट की पूरी संभावना है. पंजाब किसान बहुल प्रदेश है. किसान जत्थेबन्दियां आंदोलन के चलते बहुत सूझ-बूझ से मजबूत हो कर उभरी हैं. चालीस विभिन्न जत्थेबन्दियों को जो समर्थन पंजाब की कृषि से जुड़ी जनता ने दिया है वो विलक्षण है. इस अन्दोलन का प्रभाव आने वाले विधानसभा के चुनावों मे एक नयी भूमिका निभाएगा. जिस प्रकार किसानों ने केन्द्र की सत्ता की चूलें हिला दीं उसी प्रकार प्रदेश के राजनीतिक दलों को भी कठघरे में खड़ा करने से वे चूकेंगे नहीं.
पूरे पंजाब में हर विधानसभा क्षेत्र में किसान अन्दोलन का प्रभाव गांव-गांव तक गहरा है. इस आंदोलन ने समाज के सभी वर्गों व जातियों को जिस तरह से एक बार फिर से साथ ला दिया उसे राजनीतिक दल इन चुनावों में शायद ही बांट पाएं.
संयुक्त किसान मोर्चा एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा है जिसका राजनीतिक दल अभी मूल्यांकन नहीं कर पा रहे हैं. किसान अन्दोलन ने जहां एक ओर जनता को उनकी ताकत का अहसास करवा दिया है तो दूसरी ओर सत्ता की जवाबदेही को भी सुनिश्चित कर दिया है.
पिछले कई दशकों से चली आ रही पारंपरिक राजनीति व वर्चस्ववादिता को अबकी बार विराम लगा कर नयी राजनीतिक भूमिका की परिभाषा धरातल पर आना तय है. इस अन्दोलन से पंजाब ने अपनी प्रगति व उत्थान के लिए राजनीतिक नेताओं को बाध्य कर दिया है कि कोरे आश्वासनों का समय व भविष्य अब राजनीति में नहीं चलने वाला. सरोकार की प्रतिबद्धता व परिणाम ही राजनीति की नयी इबारत है.
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
(साभार- जनपथ)