पीएम मोदी द्वारा तीनों कृषि कानूनों के वापस लिए जाने की घोषणा के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि किसान वापस घरों को लौट जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर किसान आंदोलन को एक साल पूरा हो चुका है. इसी बीच 19 नवंबर की सुबह अचानक से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें वापस लेने की घोषणा कर दी. जिसके बाद अनुमान लगाया जाने लगा था कि अब किसान अपने-अपने घरों को लौट जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ और आंदोलन जारी है.
आंदोलन को लेकर भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के अध्यक्ष बलवीर सिंह राजेवाल कहते हैं, ‘‘तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की गई, कैबिनेट ने भी इसकी मंजूरी दे दी है लेकिन हम तब तक बैठे रहेंगे जब तक संसद में इसे वापस नहीं ले लिया जाता है. इसके अलावा हमारी कुछ मांगे हैं जिनपर स्थिति स्पष्ट नहीं है. जैसे एमएसपी पर कमेटी बनाने का ऐलान तो हो गया. उसकी संरचना क्या होगी. यह अभी नहीं पता.’’
राजेवाल आगे कहते हैं, ‘‘इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और उत्तराखंड में हजारों किसानों पर मामले दर्ज हुए हैं. उसपर भी कोई फैसला नहीं हुआ. अभी तक 700 से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं. उनके परिजनों के पुनर्वास के लिए लिए सरकार क्या देगी. यह भी सरकार ने अभी तक नहीं बताया है. अब अभी इन सब पर सरकार के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. उसका कोई फैसला हो जाएगा तो हम घर वापस चले जाएंगे.’’
किसान नेताओं और भारत सरकार के बीच आखिरी बातचीत इस 22 जनवरी को हुई थी. उसके बाद कोई बातचीत नहीं हुई. अचानक से एक रोज पीएम ने कानून वापस लेने की घोषणा कर दी. क्या ऐसा उन्होंने किसानों की चिंता में किया या कोई और वजह है. इस सवाल पर राजेवाल कहते हैं, ‘‘इसी बात का तो दुख है. अभी तक तो वो किसानों को गालियां ही देते रहे हैं. आंदोलनजीवी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी पता नहीं क्या-क्या उन्होंने किसानों को बोला. 700 किसान शहीद हो गए. उस पर वे कभी बात ही नहीं करते हैं. देश के प्रधानमंत्री हैं और यहां देश का किसान बैठा है. अगर देश का प्रधानमंत्री अपने ही किसानों की नहीं सुनेगा तो वो कैसी सरकार चलाएगा ये आप अंदाजा लगा सकते है.’’
राजेवाल आगे कहते हैं, ‘‘जब हमने यूपी में थोड़ा पेंच कसा. बंगाल में इनको हरवा दिया तो फिर इनको ख्याल आया कि ये तो यूपी और उत्तराखंड में साफ कर देंगे. तब जाकर प्रधानमंत्री ने यह फैसला लिया.’’