प्रधानमंत्री मोदी से लेकर कई नेताओं और मीडिया ने भी किसानों को भला-बुरा कहा.
ऐसे ही एक किसान, पंजाब के तरनतारन के रहने वाले निरंजन सिंह थे, जिन्होंने सिंघु बॉर्डर पर खुदकुशी की कोशिश की थी जिसके बाद उन्हें पीजीआई रोहतक में भर्ती कराया गया, लेकिन बाद में उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा, “क्या सच में हम इस देश के वासी हैं, जिनके साथ गुलामों से भी बदतर सलूक किया जा रहा है?”
करनाल के 55 साल के किसान सुशील काजल, उन किसानों में शामिल थे जो हरियाणा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. इन किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज की थी, जिसके कारण कथित तौर पर सुशील काजल की मौत हो गई. हालांकि सुशील के परिवार ने न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहा था कि पुलिस ने उसे इसलिए पीटा क्योंकि वह किसान आंदोलन में ज्यादा सक्रिय थे और उनकी मौत पुलिस की पिटाई से ही हुई.
किसान आंदोलन के दौरान देशभर के अलग-अलग हिस्सों में जो किसानों पर लाठीचार्ज की गई, उसे इस टाइमलाइन में देख सकते हैं.
बता दें कि दिल्ली आए किसानों ने हांड़ कंपाने वाली ठंड सही, गर्मी में लू के थपेड़े बर्दाश्त किए और मूसलाधार बारिश में भी डटे रहे. कई दिनों तक पानी-बिजली के बिना भी रहे. कभी पुलिस तो कभी कृषि कानूनों के समर्थकों के डर के साए में रहे. यही नहीं किसानों को मीडिया और एक बड़ा तबका भी खालिस्तानी, देशद्रोही और आतंकवादी बोलता रहा.
हालांकि अभी भी मीडिया का एक बड़ा तबका किसान आंदोलन को भला-बुरा कहने में व्यस्त है, जब प्रधानमंत्री ने कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा की तब आंदोलन की आलोचना करते हुए कई पत्रकारों ने कहा, कि पीएम ने राजनीति के आगे राष्ट्रहित को चुना है.