गलत ही सही, संघ की अपनी वैचारिकी है और उसी आधार पर वह अपना समाज बनाना चाहता है जिसमें पुरातनपंथ की प्रतिष्ठा और सवर्ण श्रेष्ठता को स्थापित करने की लालसा है. लेकिन बहुजनों के पास तो कोई वैकल्पिक ‘विजन’ ही नहीं है? समाजवादियों के सबसे बड़े राजनैतिक व सांस्कृतिक पुरोधा डॉ. राम मनोहर लोहिया सांस्कृतिक रूप से राम की ओर बहने वाले इंसान थे जिन्होंने राम और रामायण मेला लगाकर भारतीय संस्कृति में अधिक भारतीयता को समाहित करने का प्रयास किया.
उत्तर भारत के पिछड़ों में त्रिवेणी व अर्जक संघ को छोड़कर कोई वैकल्पिक सांस्कृतिक विरासत खड़ा करने की कोशिश नहीं हुई और मोटे तौर पर लगभग सत्तर साल का इतिहास बिना किसी सांस्कृतिक बहस के सिर्फ राजनीतिक जोड़-तोड़ पर चलाया जा रहा है. फिर इस तरह से प्रगतिशील सांस्कृतिक व्यक्ति व विरासत पर हमलावर होना किस चीज का परिचय देता है? तीन दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने वरिष्ठ वकील सौरभ किरपाल को हाईकोर्ट में जज नियुक्त करने की अनुशंसा की गई जिसे सरकार ने मान लिया. सौरभ किरपाल देश एलजीबीटी समुदाय से आने वाले देश के पहले हाईकोर्ट जज होंगे. हां, सौरभ किरपाल भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस बीएन किरपाल के बेटे हैं. यह भी सही है कि कॉलेजियम सिस्टम की अपनी निहित दिक्कतें हैं. फिर भी एलजीबीटी समुदाय के किसी सदस्य को जज बनाया जाना बेहद प्रगतिशील और महत्वपूर्ण फैसला है. इस पर बात न करके, बहस उस पर चलाई जाने लगी कि कैसे किसी खास आदमी के बेटे को यह ‘सुविधा मुहैया’ करा दी गई है!
कई बार बहुजन बौद्धिकों का जातीय विमर्श या बहस, खुद को ‘अंधेरे में’ ले जाने वाली बहस बन जाती है. इसमें क्षणिक सनसनी के अलावा कोई दूरगामी लक्ष्य या विचार नहीं होता, समाज का कोई हित नहीं होता. कभी-कभी तो लगता है कि इस तर्कपद्धति से ये लोग कभी अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाहों का भी विरोध न शुरु कर दें. जो कि सामाजिक परिवर्तन के सबसे सार्थक कदम है. बौद्धिकों का सबसे सार्थक कदम यह होना चाहिए कि वो समाज को दो क़दम आगे की तरफ ले जाएं न कि उसे पीछे की तरफ धकेलें. दुखद यह है कि हड़बड़ी में वे अक्सर ऐसा कुछ कर देते हैं जिससे आगे बढ़ना तो दूर बल्कि रास्ता भी भटक जाते हैं!
इसका सबसे दुखद पहलू यह भी है कि लोहिया, अंबेडकर, कांशीराम की विरासत की बात करने वाली ताकतें (खासकर समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी) जब पूरी तरह ब्राह्मणों को पूज्य और ब्राह्मण सम्मेलन करने के साथ-साथ परशुराम का मंदिर बनाने की बात करती हैं तब ये बौद्धिक पूरी तरह चुप्पी साध लेते हैं!