लॉकडाउन और किसान आंदोलन ने सिंघु बॉर्डर पर रह रहे निवासियों, दुकानदारों और यात्रियों पर खासा असर डाला है. पुलिस बैरिकेड के कारण कई व्यवसाय प्रभावित हुए हैं.
आंदोलन स्थल के आस-पास व्यवसाय प्रभावित
किसानों के मुख्य मंच के पास जहां से विरोध स्थल शुरू होता है, वहीं प्रेम प्रकाश की छोटी सी दुकान है, जो कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स बेचते हैं. जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम वहां पहुंची तो दुकान पूरी तरह से खाली थी और 52 वर्षीय प्रकाश प्लास्टिक की कुर्सी पर बाहर बैठे थे.
प्रेम प्रकाश ने यह दुकान 2007 में शुरू की थी. 14 साल बाद फरवरी 2021 में उन्होंने इसे बंद कर दिया.
"इसे खुला रखने का कोई मतलब नहीं था. पुलिस बैरिकेडिंग के कारण मेरी कोई भी गाड़ी अंदर नहीं आ सकती थी. गाड़ी में दुकान का सामान होता था. साथ ही बिक्री भी कम हो गई थी." प्रेम प्रकाश कहते हैं.
उन्होंने आगे बताया, "वास्तव में, इस बाजार की सभी दुकानें, जो विरोध स्थल के दोनों ओर अगले 500-700 मीटर तक बनी हैं, मार्च का महीना आते-आते बंद हो गईं. करीब 20 दुकानों को मैं जानता हूं जो बंद हो गई हैं."
जब उनसे कोविड के प्रभाव के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “कोविड ने हमें इतना प्रभावित नहीं किया जितना इस आंदोलन ने प्रभावित किया. लॉकडाउन ने कुछ बिक्री कम कर दी लेकिन विरोध प्रदर्शन ने बिक्री पूरी तरह से बंद कर दी."
अमन शर्मा की तरह ही प्रेम प्रकाश भी किसान आंदोलन खत्म होने का इतंजार कर रहे हैं ताकि दुकान दोबारा शुरू करने की सोच सकें.
50 वर्षीय श्याम सुंदर ने भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनाई. वह धरना स्थल से करीब दो किलोमीटर दूर एक दुकान पर काम करते हैं. जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने दोपहर तीन बजे उनसे मुलाकात की तो दुकान पर कोई ग्राहक नहीं था. सुंदर ने कहा कि अभी तक एक भी ग्राहक नहीं आया है.
स्टोर की शुरुआत सितंबर 2020 में 25 कर्मचारियों के साथ हुई थी. इस स्टोर में कपडे, जूते, और घर की जरूरत का सभी सामान मिलता है. अब, इसमें केवल तीन कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिनमें एक सुंदर हैं. उनके मुताबिक दुकान को करीब 90 फीसदी का नुकसान हो रहा है लेकिन फिलहाल मालिक ने इसे बंद करने से मना कर दिया है. यह पूछे जाने पर कि वह सरकार से नाराज हैं या किसानों से, सुंदर ने कहा, “मैंने कानून नहीं पढ़े हैं इसलिए मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. लेकिन मुझे केवल इतना पता है कि हमने इस सरकार को चुना है और अब उन्हें हमारे जीवन की कोई परवाह नहीं है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के ऐलान के एक दिन बाद सुंदर से फोन पर भी बात की. उन्होंने कहा, "नुकसान इतना हुआ है कि मैं प्रदर्शनकारियों के वापस जाने और हमारी दुकान के फलने-फूलने का इंतजार नहीं कर सकता."
गांववासियों को आंदोलन स्थल पर जाने से रोकती है पुलिस
इस सबके विपरीत सिंघु गांव के निवासियों ने कुछ और ही कहानी सुनाई. गांव के कई लोग किसानी करते हैं जो गोभी, पालक जैसी फसलें उगाते हैं. इन लोगों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वे विरोध का समर्थन करते हैं.
35 साल की रमा देवी कहती हैं, "हमारी जिंदगी नहीं बदली है. हम अब भी अपने खेत में काम कर रहे हैं. हां, मण्डी जाने के लिए परिवहन कभी-कभी एक समस्या होती है लेकिन यह कोई बड़ी समस्या नहीं है."
कई ग्रामीणों ने यह भी कहा कि वे दिल्ली पुलिस से परेशान हैं. "वे (पुलिस) हमें आंदोलन स्थल पर जाने से रोकती है. हम अब अपनी सड़कों पर आजादी से चल भी नहीं सकते." 55 वर्षीय सिंघु गांव के निवासी जगदीश प्रसाद बताते हैं.
सिंगोला गांव में न्यूज़लॉन्ड्री ने चार महिलाओं के एक समूह से मुलाकात की जो पास के सरकारी स्कूल से कोविड वैक्सीन लगवाकर लौट रही थीं.
40 वर्षीय माया देवी कहती हैं, "अगर प्रदर्शनकारियों और पुलिस ने सड़क जाम नहीं किया होता तो हमें 10 से 15 मिनट का समय लगता. लेकिन अब हम एक घंटे से पैदल चलकर आ रहे हैं." माया के पति पेट्रोल पम्प पर काम करते हैं जो की आंदोलन स्थल से करीब 200 मीटर की दूरी पर ही है. वह पहले 16 हजार रुपए प्रति महीना कमाया करते थे लेकिन आंदोलन के बाद बैरिकेडिंग के कारण पेट्रोल पम्प की सेल में 50 फीसदी की गिरावट आने से उन्हें अब केवल नौ हजार रुपए मिलते हैं. माया के तीन बच्चे भी हैं और उनके पति घर में अकेले कमाने वाले हैं.
बस्ती के लोगों ने आंदोलन में बना लिए नए दोस्त
न्यूज़लॉन्ड्री ने विरोध स्थल से लगभग 600 मीटर की दूरी पर एक छोटी, धूल भरी सड़क के किनारे एक झुग्गी बस्ती का भी दौरा किया. बस्ती के बगल से एक बदबूदार नाला भी बहता है. यहां बंगाल के करीब 30 परिवार पिछले 25 साल से रह रहे हैं. इनमें से ज्यादातर कूड़ा बीनने का काम करते हैं तो कुछ रिक्शा चालक हैं.
यहां हमारी मुलाकात 22 वर्षीय सबीना खातूम और 18 वर्षीय सागर खान से हुई. सागर ने आंदोलन में कई दोस्त बना लिए हैं जिनके साथ शाम को काम से घर लौटते समय वह 'फ्री फायर' मोबाइल गेम खेला करता है. अब जब आंदोलन अपने आखिरी चरण में माना जा रहा है तो सागर कहते हैं, “मुझे बुरा लगेगा जब आंदोलन के बाद किसान घरों को लौट जाएंगे, क्योंकि बस्ती के कई लोग विरोध स्थल पर लंगर में मुफ्त में खाना खाने जाते हैं."