किसान आंदोलन में निहंग सिखों की भूमिका?

किसान आंदोलन में उतार-चढाव के बीच कितनी बदली है निहंग सिखों की भूमिका और क्यों किसान नेताओं ने किया उनसे किनारा.

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बॉर्डर पर तनाव क्यों?

सिंघु सहित दिल्ली के सभी विभिन्न स्थलों पर विरोध का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) नामक 32 किसान यूनियनों का एक संगठन कर रहा है.

सुखविंदर सिंह

फिर भी, आज सिंघु में विरोध असमान रूप से दो भागों में विभाजित है- एसकेएम के नेताओं के नेतृत्व में एक बड़ा समूह और किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) के नेताओं के नेतृत्व में एक छोटा समूह. दोनों का स्टेज अलग है. केएमएससी सिंघु बॉर्डर की शुरुआत में बैठता है. उनके पास एक छोटा मंच और लगभग 200 टेंट हैं. उनके मंच के पीछे टिन के कंटेनरों का एक बैरिकेड है. एक व्यक्ति को, एक विरोध स्थल से दूसरे में प्रवेश करने के लिए चक्कर लगाना पड़ता है. सिंघु में केएमएससी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुखविंदर सिंह ने कहा, "हम उनके पक्ष में नहीं जाते हैं और वे हमारे पक्ष में नहीं आते हैं."

ऐतिहासिक रूप से भी, केएमएससी की उनकी अपनी इकाई रही है. 15 साल पहले वे बड़े किसान समूह- किसान संघर्ष समिति से अलग हो गए. रिपोर्टों के अनुसार यह समूह ज्यादातर पंजाब के मांझा इलाके में सक्रिय था, लेकिन आज यह पंजाब के करीब 8 जिलों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है.

पिछले साल जब विभिन्न किसान सिंघु पहुंचे, तो समूहों ने एसकेएम के नेतृत्व में आंदोलन के लिए एक संयुक्त मोर्चा बनाने पर सहमति व्यक्त की और शुरू में केएमएससी भी उसका हिस्सा था. फिर भी, तीन महीने बाद 26 जनवरी को चीजें बदल गईं.

एसकेएम नेताओं ने गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली आयोजित करने का फैसला लिया था. इसके लिए दिल्ली पुलिस से अनुमति ली गई थी, तब ट्रैक्टर मार्च के लिए एक निर्धारित मार्ग तय किया गया था. लेकिन केएमएससी सहित कई व्यक्तिगत और छोटे किसान समूहों ने इसका विरोध किया था.

इसके बाद लाल किले पर हुई हिंसा में एक किसान की जान चली गई, करीब 40 सुरक्षाकर्मी घायल हो गए और 22 पुलिस शिकायतें दर्ज होने के बाद करीब 200 किसानों को हिरासत में लिया गया. तभी एसकेएम ने केएमएससी से दूरी बनाने का फैसला किया और कहा कि एसकेएम के सदस्यों ने हिंसा में हिस्सा नहीं लिया था.

लेकिन इन सबसे निहंगों को क्या फर्क पड़ता है?

एसकेएम, केएमएससी और निहंग

निहंग समुदाय के प्रत्येक सदस्य जिससे न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की, उन्होंने कहा कि अब उनके मन में एसकेएम नेतृत्व के लिए कोई सम्मान नहीं रहा है. निहंगों का दावा है कि "किसान नेता बिक चुके हैं." क्यों?

जब लखबीर सिंह की हत्या हुई, तो एसकेएम नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि वे हिंसा के खिलाफ हैं और पुलिस का सहयोग करेंगे. एक प्रेस बयान में, एसकेएम के नेताओं ने कहा, "मोर्चा किसी भी धार्मिक दल या प्रतीक की बेअदबी के खिलाफ है. यह किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं देता है."

इस बीच, शेर शाह ने कहा कि वे केएमएससी नेतृत्व में विश्वास करते हैं. उनके अनुसार, केएमएससी नेताओं ने निहंगों को स्पष्ट कर दिया कि वे जरूरत पड़ने पर उनके साथ खड़े होंगे. परमजीत कौर ने यह भी कहा कि जब उनके पति जेल में थे, तब एसकेएम का कोई नेता उनसे मिलने नहीं गया था, लेकिन केएमएससी के नेता आए और उन्हें अपना समर्थन दिखाया.

निहंग सिखों की भूमिका और नेताओं से उनके संबंध समझने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने किसान नेताओं से बात की. बलबीर सिंह राजेवाल की भारतीय किसान यूनियन के महासचिव ओमकार सिंह कहते हैं, "चाहे निहंग सिख हों या कोई भी हो, हम गलत को सहन नहीं करते. 26 जनवरी को जो घटना हुई उसमें सरकार की गलती थी. हमें जो मार्ग दिया गया था उन्होंने हमें जाने से रोका. उसके बाद जो हुआ वह सरकार की नालायकी के कारण हुआ. उसी तरह हम यह भी नहीं बर्दाश्त करते जो निहंग सिखों ने लखबीर सिंह के साथ किया. राजेवाल ने उसी समय इस घटना की निंदा की थी. आंदोलन में शामिल ऐसे तत्वों के साथ हमारी कोई हमदर्दी नहीं है. हमने निहंग सिखों को साफ बोल दिया था कि अगर आराम से रह सकते हो तो रहो. अगर ऐसे काम करना है तो हम सहन नहीं करेंगे."

बता दें कि आज सुबह 9 बजे, प्रधान मंत्री मोदी ने देश को अपने संदेश में विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने का ऐलान किया है. सुबह 9:40 बजे जब एक संवाददाता ने शेर शाह को फोन किया और पूछा, "क्या आपने खबर सुनी है?", शेर शाह इससे अनजान थे.

कानूनों को निरस्त करने के सरकार के निर्णय के बारे में उन्हें सूचित करने पर, शेर शाह को विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने कहा, "क्या आप सही कह रहे हैं? क्या इसकी पुष्टि हो गई है? क्या आप मुझे एक लिंक भेज सकते हैं?"

शेर शाह प्रधानमंत्री के शब्दों की विश्वसनीयता को लेकर बहुत आशंकित थे. "क्या होगा, अगर यह हमें यहां से खाली कराने के लिए एक चाल हो?" उनका एक और सवाल था.

फिर भी शेर शाह ने कहा कि अगर आंदोलन को समाप्त करना है तो निहंग भी सीमा छोड़ देंगे. ऐसा होता है तो शेर शाह का एक ही स्थान पर सबसे लंबा प्रवास समाप्त हो जाएगा.

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