हर न्यूज़ रूम में काम करने वाले चंद पत्रकारों के नाम

न्यूज़ रूम का ढांचा इस तरह का बनाया ही जाता है कि काम करने और न करने का मूल्यांकन कई बार एक तरह से ही होता है.

WrittenBy:रवीश कुमार
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आज सुबह इन्हीं सब चिन्ताओं से गुजर रहा था कि डाउन टू अर्थ के कवर पर नजर पड़ गई. काम करने वाले के प्रति श्रद्धा उमड़ गई. यही सोच कर पिघल गया कि किसी ने कितने मन से कवर बनाया है. जानते हुए भी कि ऐसे विषय महज औपचारिकता निभाने के रह गए हैं, कितने कम लोग पढेंगे फिर भी अजीत बजाज साहब ने कितना मन लगा कर इसे आकर्षक बनाया है. इसके लिए उन्होंने कितना कुछ सोचा होगा, भीतर छपी पत्रकारों की रिपोर्ट को लोगों तक पहुंचाने के लिए कितने रंगों का ख्याल किया होगा. काम में मन न होता तो ऐसा काम न होता.

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सबक यह है कि जब तक हैं इस लाइन में और जितना हो सकता है, मन से काम करते चलिए लेकिन हमेशा-हमेशा के लिए रहने का प्लान मत बनाइए. इस देश में निकास के रास्ते कम हैं और दूसरा काम चुनना आसान भी नहीं लेकिन अगर आजीवन रहने का प्लान बनाएंगे तो तकलीफ होगी. एक समय के बाद पत्रकारिता छोड़ देनी चाहिए. लेकिन जब तक हैं करते चलिए. आपके बस में जितना है, उतना कीजिए, मन से कीजिए, ये नहीं किया और वो नहीं हो सका, इसकी भरपाई कभी नहीं कर पाएंगे. जो किया, जितना किया, उसे कैसे किया, इसके प्रति जवाबदेह रहिए.

आज दर्शकों के बीच दर्शक नहीं हैं. उन्हें आम पर रिपोर्ट दिखाएंगे तो कहेंगे कि इमली पर नहीं दिखाते हैं. ऐसे दर्शकों की चिन्ता मत कीजिए. ये केवल आपको निराश करने आते हैं. सारी दुनिया की सारी खबर एक व्यक्ति नहीं कर सकता और उस दुनिया में एक देश की सारी खबर एक व्यक्ति नहीं कर सकता. दरअसल ऐसी उम्मीद करने वाले बड़े शातिर लोग हैं जो दर्शक और फैन थे की खाल ओढ़ कर आते हैं और आपके किए हुए को बेमानी कर जाते हैं. ऐसा बोल कर वे तमाम सवालों को रौंद जाते हैं और सामना करने से खुद को बचा लेते हैं. उन्हें हर हाल में अपने झूठ को बचाए रखना है. उनकी चिन्ता मत कीजिए. अपना काम करते रहिए.

याद रखना यह है कि आपका किया हुआ हर काम बेमानी होगा, आपके काम में मानी आपको भरना है. आपको कोई नया रंग भरना है. जैसे डाउन टू अर्थ के पत्रकारों और कवर डिजाइन करने वाले अजीत बजाज ने किया है. यह पोस्ट हर न्यूज़ रूम में काम करने वाले एक या दो लोगों के लिए हैं. हर न्यूज़ रूम में काम करने वाले इतने ही होते हैं. संख्या के अनुपात में पांच या दस भी हो सकते हैं. हर दिन जितना हो सके कुछ नया कीजिए, पुराने को भी नया कीजिए, इस कवर के रंग की तरह खिले रहिए. सूरजमुखी का रंग है. आज अमर उजाला के आशुतोष यादव की रिपोर्ट ने भी प्रेरित किया है. शानदार.

(साभार- रविश कुमार के फेसबुक वॉल से)

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