जो 50 थैंक्यू कहने से रह गये हैं मोदी जी…

इतनी सारी उपलब्धियों का श्रेय किसी और को नहीं दिया जा सकता है. सवा सौ करोड़ लोगों का देश आपके प्रधानमंत्री बनने तक मक्खी ही मार रहा था.

WrittenBy:निधीश त्यागी
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31. आपके निजाम में प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट में भी भारत की हालत कोई अच्छी नहीं है. 180 देशों में हम पहले 133 पर थे, अब 142 पर हैं. रिपोर्टर्स सान फ्रंटियर नामक संस्था की इस सालाना रिपोर्ट के मुताबिक भारत ठीक तरह से काम करने वाले पत्रकारों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से है. कुछ लोगों के साथ जरूर ऐसा हुआ है, जिन पर नजर रखी गई, कुछ की पिटाई करवाई गई, कुछ को हवालात भी भिजवाया गया और कुछ की रिपोर्टिंग पर सवाल उठाये गये, पर यह श्रेय आप ही को जाता है कि अक्षय कुमार नाम के कनाडाई नागरिक और प्रसून जोशी जैसे जिंगलकार को पत्रकार बनने की ट्रेनिंग दी. उसमें आम को काट के या चूस के खाने जैसे गंभीर विकल्पों पर चर्चा हुई और आपमें एक फकीरी देखने की क्षमता जोशी के साथ-साथ बहुत से देशवासियों में भी विकसित होती पाई गई.

32. इन तमाम चुनौतियों के बावजूद आपका आशावाद गजब का है. सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक तो ये है कि जब भी कोई चुनौती सामने आये, उसे पहचानने से ही इंकार कर दिया जाए. कुछ और बात करने लगें तो चुनौती अपने आप खत्म हो जाती है. दुनिया भर के सारे आंकड़े भारत विरोधी बताने और भारत में जुटाए गये आंकड़ों को छुपा कर देश का हौसला बुलंद बनाये रखने के लिए तो आपका बहुत ही ज्यादा थैंक्यू है मोदीजी. जितना प्रचार आपकी सरकार ने आपका किया, तमाम प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद, जितना पैसा जलाया, जितना हल्ला मचवाया, उससे हो सकता है सब को सच का पता नहीं चले, पर वह छिप कैसे जाएगा, समझ से परे है.

33. जब आप मानवाधिकारों की दुहाई देते हैं, तो उसका थैंक्यू तो बहुत सारा बनता है. पूरी दुनिया देख रही है कितने सारे लोगों (खास तौर पर नौजवान, मुसलमान और सामाजिक कार्यकर्ताओं को) जेल में बिना पूछे, बिना बताए डाल दिया जाता है. अब साबित होने तक निरपराधी कोई नहीं है. निरपराधी होने का सबूत मिलने तक हर आरोपी अपराधी है. और न भी हो तो अदालतें ही मामला घसीट कर उसे सजा बना देती है. सबसे बड़ा धन्यवाद तो इस बात का कि अनिश्चितकाल के लिए चल रहे मामले में किसी को जमानत भी मिल जाए, तो वे उसे इंसाफ की जीत समझने लगे हैं. और ये कानून सिर्फ उन लोगों पर ही लगता है, जो आपकी तरफ खड़े होकर आपकी जय-जयकार नहीं कर रहे हैं. बाकी लोग जो भी कह लें, जो भी कर लें कानून एक का सगा है, दूसरे का सौतेला. देश की कानून-व्यवस्था का ये हाल करने का श्रेय और किसे दिया जा सकता है, आपके अलावा. वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट की रूल ऑफ लॉ इंडेक्स के मुताबिक कानून के ग्राफ में भी भारत दक्षिण एशिया में ही नेपाल और श्रीलंका से पीछे है और तीन पायदान लुढ़क कर 139 देशों में से 79 पर पहुंच गया है.

34. मानवाधिकार कानूनों की बात करते वक़्त आप उसके ‘सलेक्टिव’ होने पर सवाल करते हैं, यह कहते हैं कि नागरिकों के कर्तव्य के बिना अधिकार नहीं हो सकते, पर अगर आपके स्पीच राइटर इस कानून के बारे में थोड़ा जांच परख कर लेते तो देखते कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून की जवाबदेही सरकारों की होती है, व्यक्ति की नहीं. उधर पूरी दुनिया कश्मीर और उत्तर पूर्व में दमन और मानवाधिकार हनन की बात कर रही है, हमारे मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष सरकार की स्तुति में लगे हुए हैं. पहले भी सुप्रीम कोर्ट के जज होते हुए वे आपकी सार्वजनिक मंचों से प्रशंसा करते पकड़े गये थे. जो हमारे समाज के कांशसकीपर रहे हैं, जिन्होंने अपने निजी सुख और स्वार्थ छोड़कर कतार के आख़िरी लोगों के लिए अपनी जिंदगी दी है, वे आतंकवादी बताए जा रहे हैं. न्यूयार्क टाइम्स के मुताबिक आतंकवाद विरोध के नाम पर यूएपीए आपके सबसे दमनकारी कानूनों में से एक है, जिसमें पिछले पांच सालों में 8,300 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किये गये हैं.

35. आपने विश्वविद्यालयों में अनुशासन लाने के लिए जो ऐतिहासिक और निर्णायक पहल की है, जिस तरह से सड़क पर विरोध करने उतरे नौजवान लड़के-लड़कियों को उठाकर जेल में बंद करवाया, जिस तरह से उनकी बेल नहीं होने दी, जिस तरह से वहां पढ़ा रहे अध्यापकों पर मुकदमे ठोंके, जिस तरह से उन्हें परेशान किया गया, जिस तरह से आपकी विचारधारा से जुड़े छात्रसंघ के लड़कों ने हिंसा की, जिस तरह से थोड़ी भी कूंकां करने वाले जजों का रातों रात तबादला किया, वह तो किसी चाणक्य को भी सदमे में डाल दे. जामिया मिलिया की लाइब्रेरी पर पुलिसिया हमला दुनिया की सबसे विचित्र किन्तु सत्य किस्म की तस्वीर लेकर आई थी. पढ़ने-पढ़ाने, विचार करने वाले सवाल उठाने वालों के प्रति आपका अगाध प्रेम लगातार झलकता रहा है, जिसके लिए यह देश कभी भी पूरी तरह आपका आभार नहीं जता पाएगा.

36. पुलिस जिस तरह से इधर चार्जशीट बना कर अदालतों में पेश कर रही है, और अदालतें उन पर यकीन भी कर लेती हैं, उन आरोपपत्रों को कालांतर में साहित्यिक समारोहों और पुरस्कारों में ‘फ़िक्शन कैटेगरी’ में ईनाम भी दिलवाया जाय. जैसे एक में कहा गया है कि ट्रैक्टरों की बिक्री इसलिए बढ़ी क्योंकि किसानों को लाल किले पर हमला बोलना था. पुलिस की तफतीशों और एफआईआर में लालित्य और कल्पना-शक्ति की जो कमी अब तक दिखाई पड़ती थी, आपके प्रताप से उनके लेखकों ने इस समय के ऊबे और उदासीन साहित्यकारों को बहुत पीछे छोड़ दिया है. जिस तरह से तथ्यों को नजरंअदाज किया गया, सुबूतों को अनदेखा किया गया, कुछ लोगों को फंसाया गया, कुछ को जाने दिया गया... सब मिलकर अदालतों और पुलिस थानों में निरंतर चलता हुआ रियलिटी शो ही है. साथ ही तथ्यों को भी ये कानून और व्यवस्था को एक नये स्तर पर ले जाने का उपक्रम है, जिसके कारण बहुत सारे भले, नौजवान और मासूम लोगों की दुआएं आप तक पहुंच ही रही होंगी. और उनके परिवारों की भी.

37. सबसे गजब की बात ये है कि दिल्ली की देहरी पर बैठे किसानों ने साल भर से अपना धरना लगाया हुआ है. कई बार उन पर लाठियां चलीं. 600 से ज़्यादा किसान मर गये. उन्होंने मोटे तौर पर बहुत ही शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन चलाया और अपनी बात रखने की कोशिश की. पर आपकी सरकार उस कानून को लेकर अपनी स्थिति पर डटी रही. एक कृषि प्रधान देश में एक सरकार और उसके प्रधानमंत्री का ये अडिग रवैया मिसाल कायम करने वाला है. आपके नौकरशाह खुले आम किसानों के सिर फोड़ने की बातें करते सुनाई पड़े. जब देखो तब उन पर हमले किये गये, उनके खिलाफ साजिशें की गईं, जिनमें खुद आपके कृषि मंत्री शामिल समझे जा रहे हैं. एक राज्यपाल खुले आम सरकार के विरोध में उतर आये हैं. आप ही की पार्टी के एक सांसद भी. आपके कारण ये सवाल लोगों के जहन में पहली बार आया है कि सरकार अगर किसान की नहीं हैं, उसके हितों की रक्षा नहीं कर सकती, उसकी बात नहीं सुन सकती, तो फिर ये सरकार किसकी है. इस हठधर्मिता के कारण दुनिया के सबसे बड़े और लम्बे आंदोलनों में से इसकी गिनती होती रही है. और जैसा कि शाहीन बाग के जरिए हुआ था, इस आंदोलन ने भी यह साफ दिखा दिया कि जीवट वाली जनता पर सरकार जितना भी दुष्प्रचार कर ले, जितने भी डंडे भांज ले, उनके सर फोड़ने के कलक्टरी हुक्म जारी कर दे, जितनी भी राह मुश्किल करती रहे, जीत तो उनकी ही होती है. आपने आजाद भारत और लोकतंत्र में सत्याग्रह की आत्मा को जिस तरह से मजबूत किया है, उसका थैंक्यू जितना भी किया जाए, कम ही पड़ेगा.

38. प्रदेशों में चुनावों के आसपास नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में जाकर हिंदू मंदिरों में अर्चना, हिंदुओं की यकायक चिंता करना भी एक तरह से मास्टर स्ट्रोक है. न आचार संहिता का इससे उल्लंघन होता है, न वोट बैंक की राजनीति का इलज़ाम लगता है. इधर आपकी पोप से मिलने की तस्वीर को भी लोग गोवा के चुनाव से जोड़ कर देख रहे हैं, जो कुछ ज्यादा ही हवाबाजी है. जिस बात में हवाबाजी नहीं है, वह ये भारत की छवि को बनाये रखने के लिए देश के मुख्यमंत्रियों को विदेश यात्रा जाने की इजाजत न दी जाए. थोड़ा बारीक है, पर है तो मास्टर स्ट्रोक ही.

39. आपकी संवेदनशीलता के लिए कुत्तों की तरफ़ से भी बहुत सारा थैंक्यू है मोदीजी. एक समय था आपको कुत्ते के गाड़ी के नीचे आने का भी दुख होता था. पर लखीमपुर खीरी में एक मंत्री पुत्र की गाड़ी ने इरादतन किसानों की रौंद कर जो हत्या की, उस पर देश के प्रधान सेवक का एक बोल भी न फूटा. मजाल है आपके ट्विटर और मन की बात में उनके बारे में भी कोई बात निकल जाए. किसानों को सरेआम धमकी देने वाला मंत्री अभी भी आपकी कैबिनेट में बना हुआ है. हालांकि वहां के तमाम नौकरशाहों का तबादला कर दिया गया. प्रजा के प्रति तंत्र की निष्ठा जो झलकती है, उसकी मिसाल दुनिया में शायद ही कहीं मिले. कहा तो ये भी जा रहा है कि टेनी को हटाएंगे तो उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण वोट भाजपा को नहीं मिलेंगे, जो बेसिरपैर की बात है. यूपी के ब्राह्मण का तुष्टिकरण सिर्फ़ टेनी के पद पर बने रहने से होगा, आखिर आपकी पार्टी तो वोट बैंक की राजनीति से ऊपर और परे है.

40. जिस साध्वी के गोडसे समर्थक होने के कारण आप मन से माफ नहीं कर पाए, वह आतंकवादी हमले में आरोपी को अदालत में बुलाए जाने पर खांसते हुए बीमार पड़ जाती है, संसद में व्हील चेयर पर घूमती है और फिर बीमारी के बहाने ज़मानत लेकर गरबा नाचने लगती है. मन से माफ़ न करने के बाद भी अपनी पार्टी के सांसदों को अभिव्यक्ति की ये आजादी देना भी आपकी दरियादिली का परिचायक है. आप कहते हैं कि आतंकवादी हिंदू हो ही नहीं सकता. जो हिंदू नहीं हैं, उनमें से बहुत से हैं जो बहुत से मामलों में बिना चार्जशीट और सुबूत के आतंकवाद से जुड़े कानूनों के तहत जेल में सड़ते रहे हैं. शायद सारी तफतीश, सारी अदालतें, सारा कानून झूठा है या फिर कोई ऐसी मजबूरी है, जो समझ में तो आती है, बताई भले न जा रही हो. आप दुनिया को गांधी का पाठ भी पढ़ाते रहते हैं. गजब का संतुलन है, जिसके लिए जितना भी धन्यवाद दिया जाए, कम ही पड़ेगा.

41. स्त्रियों के खिलाफ अपराध को लेकर आपका एक विज्ञापन हुआ करता था, पर हकीकत कुछ और है. लॉकडाउन के समय को छोड़ दें, तो महिलाओं पर अपराध बढ़े ही हैं. यूपी में आपकी पार्टी के मुख्यमंत्री औरतों को देवी की तरह देखने की बात करते हैं और आपकी पार्टी के ही नेता और उनके सरकारी कारिंदे बताते हैं कि महिलाओं को देवी की तरह कैसे देखें. उसी राज्य में बलात्कार और हत्या की शिकार की लाशें पुलिस परिवार को दिये बिना जला देती है. वहीं पर कई बाबा (और आप ही की पार्टी के सांसद भी) लोग यौन शोषण करने के सबूत पेश करने के बाद छूट जाते हैं. आपके पार्टी के पूर्व एमएलए भी औरतों में देवी देखते हुए दुष्कर्म के आरोप में जेल काट रहे हैं और आपकी पार्टी ने उसी की पत्नी को टिकट दिया है. देश के गृहमंत्री बता रहे हैं कि देर रात को स्कूटी में गहनों से लदी 16 साल की लड़की बिना किसी ख़तरे के यूपी की सड़कों पर निकल सकती है. इसमें कितने सारे अलंकारों का प्रयोग किया है, ये अनुसंधान का विषय हो सकता है. देश का ध्यान इस तरफ़ दिलाने का तो शुक्रिया बनता ही है, साथ ही उन स्पीच राइटर्स का भी, जो कहां-कहां की बात कर लेते हैं. खुद को क्लीन चिट देने वाले यौन शोषण के आरोपी एक मुख्य न्यायाधीश को राज्यसभा का टिकट देना भी दर्शाता है कि आपकी पार्टी किस कदर स्त्रियों का सम्मान करती है. साथ ही कानून जानने वालों का भी.

42. आपने हाल में कहा कि आप अपनी आलोचना के गंभीरता से लेते हैं. इसके लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं. आपकी सरकार को इशारा ही काफी होता है इस गंभीरता का मतलब ताड़ लेने के लिए. तभी जो भी आपसे असहमत होता है या दबे हुए सच को उघाड़ने की कोशिश करता है, उसके पीछे पूरा तंत्र तेल लेकर पड़ जाता है. चाहे पत्रकारिता करने वाले संस्थान हों या मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाले व्यक्ति या संगठन, अपने हक के लिए लड़ रहे किसान हों, या अपनी संवैधानिक नागरिकता के लिए विरोध कर रही औरतें. ये भूल कर कि वे प्रजा के ही हिस्से हैं, तंत्र उनसे दुश्मनों से भी बुरा बर्ताव करता है. गंभीरता से लेने का क्या खूब अंदाज है कि जेल में बंद किये ताउम्र आदिवासियों के हक़ के लिए एक बीमार बूढ़े आदमी को सहूलियत के लिए एक सिपर गिलास देने के लिए भी अदालत का मत्था टेकना पड़ता है. क्या फादर स्टेन स्वामी की जेल में मौत उस गंभीरता का परिणाम है, जो आपने अपने आलोचकों के लिए तय कर रखी है. जब उनके सामने आपकी ही पार्टी के नेता खुले आम हिंसा, नफ़रत, सांप्रदायिकता फैला रहे होते हैं, तो कानून और उसके रखवाले मुंह में दही जमा कर बैठ जाते हैं. उनकी जो आलोचना होती है उस पर कोई कार्रवाई होती नहीं दिखती. सरकार जिस तरह से उद्योगपतियों और व्यवसाइयों के अलावा उन सारे नेता, आंदोलनकारियों के खिलाफ सीबीआई, एनआईए, इनकम टैक्स और ईडी के लोगों के लगा देती है, वह भी मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस की बड़ी मिसाल है. इसी बीच आपकी ही पार्टी के एक नेता का ये कह देना आपकी अघोषित नीति की पुष्टि ही करता है, कि जो अपने होंगे उनका बाल भी बांका नहीं होगा. आपको लेकर जो वफ़ादारियां देश में जागी हैं, यह उसी धन्यवाद की अभिव्यक्ति है, जो आपको दिया जा रहा है.

43. जवाहर लाल नेहरू से कुछ तकलीफ हमेशा ही थी. आपके समर्थक देश की हर दिक्कत के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री को जिम्मेदार ठहराते हैं. भले ही वो शीर्षासन कर लेते थे, और अपन ठीक से पद्मासन में भी नहीं बैठ पाते. कुछ के लिए जिन्ना का पहला प्रधानमंत्री बनाया जाना ज्यादा मंजूर था. ये सवाल कांग्रेस के नेताओं को वाजिब लगता है कि जब कुछ किया ही नहीं तो उनके दौरान बने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बेचे क्यों जा रहे हैं, वो भी जो मुनाफे में हैं. चाहे एयरपोर्ट अथॉरिटी हो, या जीवन बीमा निगम, इनका निजीकरण और विनिवेश जनहित में कैसे अच्छा है, ख़ास तौर पर तब जब बेरोजगारी का संकट रिकॉर्ड तोड़ रहा है. निजी हाथों में जाने के बाद नौकरियों का क्या होता है, सब जानते हैं. और आरक्षित नौकरियों का क्या, इसका भी.

44. लोकतंत्र को विपक्ष मुक्त करने की दिशा में आपके प्रयासों की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है. दरअसल उसे ‘टू मच डेमोक्रेसी’ से निजात दिलवाने की कोशिश की तरह देखा जाना चाहिए, जहां बहस और चर्चाएं करने जैसी फालतू बातों में वक्त खराब किये बिना देश के लिए तमाम ज़रूरी फैसले फटाफट कर लिए जाएं (नोटबंदी, धारा 370, तीन तलाक, अयोध्या, कृषि अधिनियम, सीएए) ताकि देश एक निर्णायक तरीके से आगे बढ़ सके. विपक्ष नक्कारखाने की तूती बनकर रह गया है जिससे लोकतंत्र मजबूत ही हुआ होगा, इसका आपको धन्यवाद.

45. आपके राज में आर्थिक असमानता बढ़ी है. अमीर और अमीर हुए हैं. गरीब और गरीब. इस खाई को पाटना सरकार का काम होता है. पर जैसा कि ज्यादातर संकेतों और सूचकांकों से देखा जा सकता है, इसके आसार काफी कम हैं. आपदा में अवसर देखने वाली बात यहां ठीक से लागू हो रही है, जो आप ही ने कही थी. जिन लोगों की आमदनी आपके राज में बढ़ी उनका आपको बड़ा वाला थैंक्यू है ही. जिनकी कम हुई है, उनका छोटा वाला पैक आपके लिए है. अभी इसी से काम चलाना पड़ेगा.

46. पैगासस के बारे में अभी भले ही भारत में तहकीकात पूरी नहीं हुई है, पर दूसरे देशों की जांच और सुप्रीम कोर्ट और संसद में सरकार की हुज्जत से संकेत साफ़ हैं कि सरकार ख़ुद उन सारे लोगों के मोबाइल में जा कर ताका-झांकी कर रही है, जिनसे उसे तकलीफ है. इसमें विपक्षी नेता राहुल गांधी भी हैं और पूर्व मुख्य न्यायाधीश पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली सरकारी कर्मचारी भी, पत्रकार, आपके मंत्री और समाजसेवी भी. सरकार जितना भी मुकर रही हो, पर इजरायल ने सरकारी तौर पर कहा है कि यह सॉफ्टवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचा जा सकता है. अनधिकृत तौर अपने ही नागरिकों की जासूसी करना, उनकी निजता का अतिक्रमण करना और उनके ख़िलाफ़ इस्तेमाल करना जिस रौशनी में भारत को उसके लोगों और दुनिया के सामने रखता है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है. भारत में चाहे अदालतें ढीला रवैया दिखलाएं, पर दुनिया के कई लोकतांत्रिक देश इस पर कार्रवाई कर रहे हैं. अगर चोरी छुपानी नहीं होती, तो हमारी सरकार भी अपने नागरिकों के बुनियादी और संवैधानिक अधिकारों के क्षरण को लेकर सक्रिय और संवेदनशील होती. एक बड़ा थैंक्यू इस सीनाज़ोरी का, कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार लोगों के साथ जो मन आये कर सकती हैं और उन पर सवाल किया जाना आपराधिक हो सकता है.

47. उस फिलिप कोटलर अवार्ड के लिए जो पहली बार आपके उत्कृष्ट योगदान के लिए मिला और अंतिम बार भी. इसका जन अभियान चलाया ही जाना चाहिए कि फिलिप कोटलर अवार्ड को फिर से चालू करवाया जाए और हर साल वह आप ही को मिले. हमेशा. हर साल. देश-विदेश के कई लोग हर साल सोचते हैं कि आपको कोई तो नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए. शांति का नहीं तो अर्थशास्त्र और अर्थशास्त्र का नहीं तो भौतिक विज्ञान का सही. एक ठीक-ठाक अर्थव्यवस्था को इतनी जल्दी गर्त में कैसे पहुंचाया जा सकता था, आपके इस चमत्कार पर दुनिया के शीर्ष विशेषज्ञों को अध्ययन करना ही चाहिए.

48. विज्ञान और टेक्नोलॉजी के प्रति आपका अगाध प्रेम भी हम सबकी श्रद्धा का विषय है. आपने 1988 में डिजिटल कैमरे का इस्तेमाल उसके बाज़ार में आने से पहले ही कर लिया था और ईमेल का इस्तेमाल अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से भी 10 साल पहले. फौजी अफसरों, रडार विज्ञानियों और मौसम विशेषज्ञों से पहले ही आप जान गये थे कि बादलों की ओट की वजह से पाकिस्तानियों को पता ही नहीं चलेगा कि हम बालाकोट पर हवाई हमला करने वाले हैं. भले ही तथ्यों की पुष्टि करने वालों को इससे दिक्कत हो, पर आप समय से काफ़ी आगे रहे. जैसा कि आप ख़ुद कह रहे थे, कि खुद आडवानीजी भी चकित रह गये थे.

49. आपकी आलिंगन कूटनीति का भी जवाब नहीं है. इसलिए बहुत सारा थैंक्यू भारत के बाहर से भी आपके लिए आता है. भारत में पता नहीं आपने कितने लोगों को गले लगाया हो (राहुल गांधी ने जरूर कोशिश की थी), पर विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को गले लगाने में आपका कोई सानी नहीं है. सब नेताओं ने भले ही आपके साथ वैसी गर्मजोशी नहीं दिखलाई (जिनपिंग याद आते हैं). पर उनके साथ दोस्ती गांठने, पलक पांवड़े बिछाने में आपने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. चाहे नवाज शरीफ के यहां बिन बुलाए जा धमकना हो, या ओबामा को बराक कहके बुलाना या ट्रम्प के हाथ पर हंसते हुए छेड़छाड़ के अंदाज में हाथ मारना, आपने डिप्लोमैसी को एक बेलौस बेतकल्लुफी वाला अंदाज दिया है. भले ही कुछ लोगों को वो नजदीकियां नहीं भाती शायद कोविड समय में बिना मास्क लगाए गले लगने के कारण. राष्ट्रहित में आपने इस बात की परवाह भी नहीं की कि उनमें से बहुत से लोग गोमांस पसंद करते हैं. आपने एक खांटी गोमांस-भक्षी के लिए परिपाटी छोड़कर उनका चुनाव प्रचार भी किया. राष्ट्रहित में ही किया होगा, भले ही अमेरिका ने उसे चलता कर दिया. आपका अहसान उससे कम नहीं हो जाता.

50. आपने खुद को भारत के लिए भाग्यशाली बताया था. इस भाग्यशाली होने की बड़ी वजह कमजोर और बंटा हुआ विपक्ष भी है. अगर इस नेता की तरह कोई विपक्ष में होता तो थैंक्यू इतने सारे हो रहे होते कि सरकार चलाना मुश्किल हो जाता. उदाहरण के लिए देखें ये, ये और ये. अगर वह अभी भी मुख्यमंत्री होता तो केन्द्र सरकार के हर गिरते ग्राफ, हर मनमानी, हर नाइंसाफी, हर चुप्पी के खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाता, बल्कि शायद वैसी ही खाट खड़ी करता, जैसा उसने यूपीए के आखिरी सालों में किया था.

जो भाग्य भारत के लिए आप लेकर आये हैं, उससे भारत कभी भी पूरी तरह उऋण नहीं हो सकता. उसे सामान्य होने में ही बहुत वक्त लगने वाला है. इन सारी बातों का श्रेय किसी और को नहीं दिया जा सकता है. क्योंकि सवा सौ करोड़ लोगों के देश में आपके प्रधानमंत्री बनने तक देश मक्खी ही मार रहा था. जो हुआ आप ही की छत्र-छाया में हुआ. सारा श्रेय आप ही का. अभी तो दो साल बचे हैं. देश यानी हम सब मरे जा रहे हैं आपकी तरफ थैंक्यू सरकाने के लिए. अभी तो पता नहीं क्या क्या होना है.

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