एनसीबी पर सवाल उठ रहे हैं लेकिन इस समस्या का एक पार्ट एनडीपीएस एक्ट भी है

जानिए कैसे कई सांसदों द्वारा इस एक्ट के दुरुपयोग पर चिंता जताने के बावजूद यह कानून पारित हुआ.

WrittenBy:श्रीनाथ राव
Date:
Article image

17 मार्च 1986 को सरकार ने एनसीबी की स्थापना की ताकि केंद्र और राज्य के विभिन्न विंगों द्वारा एनडीपीएस अधिनियम के तहत की जाने वाली कार्यवाही का समन्वय किया जाए और यह सुनिश्चित हो कि भारत ने नशीली दवाओं पर अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अंतर्गत अपने दायित्वों को पूरा किया और ड्रग्स की अवैध तस्करी पर लगाम लगाई.

जल्दबाजी में बनाए गए कानून की कमियां जल्द ही उजागर हो गईं. 1988 में शीतकालीन सत्र के दौरान अधिनियम में संशोधन के लिए एक विधेयक संसद में पेश किया गया.

20 दिसंबर को राज्यसभा में राजस्थान के सांसद कमल मोरारका ने उल्लेख किया कि एनडीपीएस अधिनियम लागू होने के प्रथम तीन वर्षों में कानून के तहत जो 1,800 दोषी पाए गए, उनमें से अधिकांश ऐसे मामले थे जहां पुलिस ने दो ग्राम, पांच ग्राम और 10 ग्राम ड्रग्स जब्त किए थे.

"मैं मंत्री जी से विशेष आश्वासन चाहता हूं कि इस अधिनियम को लागू करते समय ड्रग्स के साथ पाए जाने वाले नशेड़ी और ड्रग्स के साथ पाए जाने वाले तस्कर या डीलर के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिए. अब यह एक बेहद बारीक भेद है, लेकिन मानवीय दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि पांच ग्राम के साथ पकड़े जाने वाला व्यक्ति नशे का आदी है तो वह एक रोगी है, उसे हमारी सहानुभूति की जरूरत है, उसे बहुत ही विशेष उपचार की आवश्यकता है. उसे जेल में डालने से किसी समस्या का हल नहीं होगा. दुर्भाग्य से, जिस प्रकार आज कानून लागू किया जा रहा है, उससे नशे का आदी वह बेचारा बच्चा जो इस समस्या का दुर्भाग्यपूर्ण शिकार बन गया है, उसे ही पकड़कर जेल में डाला जा रहा है.

वास्तविक बड़े ड्रग तस्कर, सीमा पार से इन पदार्थों का व्यापार करने वाले कार्टेल अभी भी आनंद ले रहे हैं, अपना व्यवसाय बढ़ा रहे हैं, भारत को एक ट्रांजिट पॉइंट की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं और उनका व्यवसाय दिन-प्रतिदिन फल-फूल रहा है,” मोरारका ने कहा.

उन्होंने यह भी चेताया कि नशीली दवाओं के उपभोक्ता और तस्कर के बीच अंतर किए बिना, एजेंसियों द्वारा अधिनियम का व्यापक प्रवर्तन 'बहुत खतरनाक' हो सकता है.

“जब तक स्वापक नियंत्रण ब्यूरो में ऐसे लोग न हों जिनकी सत्यनिष्ठा पर कोई संदेह न किया जा सके, तब तक आपके लिए इस अधिनियम को लागू करना असंभव होगा. मैं मंत्री जी के ध्यान में लाना चाहता हूं कि स्वापक नियंत्रण ब्यूरो का प्रमुख ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो मादक द्रव्यों के सेवन की रोकथाम के लिए समर्पित हो. यह एक प्रकार की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता है जो उसके पास होनी चाहिए. यह सोने की तस्करी या घड़ी या ट्रांजिस्टर की तस्करी रोकने जैसा केवल आर्थिक मामला नहीं है. यह एक ऐसी वस्तु है जो न केवल इस पीढ़ी, बल्कि आने वाली कई पीढ़ियों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है. जब तक आप बेदाग सत्यनिष्ठा वाले अधिकारियों को नहीं रखेंगे, यह अधिनियम आपकी मदद नहीं कर पाएगा,” मोरारका ने कहा.

तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री अजीत कुमार पांजा ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों का बचाव किया. "मैं सदस्यों से सहमत नहीं हूं कि हमारे अधिकारी भ्रष्ट हैं. उनमें से अधिकांश अच्छे हैं और कड़ी मेहनत करते हैं," उन्होंने कहा, लेकिन फिर यह स्वीकार किया कि 'एक-दो' अधिकारी ऐसे हो सकते हैं जो इस विवरण से मेल नहीं खाते.

संशोधन 1989 में धारा 31 (ए) के साथ पारित किया गया, जिसमें ऐसे दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान था जो पहले भी अधिनियम के तहत दोषी पाए जा चुके हैं.

अधिनियम में संशोधन के लिए एक दूसरा विधेयक 1998 में संसद में पेश किया गया. 1985 में पारित किए गए मूल कानून के विपरीत, एनडीपीएस अधिनियम में संशोधन करने के लिए 1998 के विधेयक को वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति को जांच के लिए भेजा गया.

इसी बीच सरकार ने ड्रग्स की मात्रा को छोटी, व्यावसायिक और दोनों के बीच की मात्रा के रूप में वर्गीकृत करके 'पीड़ितों' और उनके 'उत्पीड़कों' के बीच अंतर करने का प्रयास किया.

लेकिन लंबे इंतज़ार के बाद जब नवंबर 2000 में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने संसद में विधेयक पेश किया तो सदस्यों ने फिर से ड्रग्स की मात्रा के वर्गीकरण की अस्पष्टता पर चिंता जताई.

पश्चिम बंगाल से राज्यसभा सांसद भारती रे ने 'छोटी मात्रा से अधिक लेकिन व्यावसायिक मात्रा से कम' की शब्दावली की अस्पष्टता की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा कि यह अस्पष्टता ड्रग माफिया के लिए सहायक होगी और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा.

उन्होंने एक और दोष का भी उल्लेख किया. 'उपयोगकर्ता' शब्द को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है. इसका उल्लेख नहीं किया गया है कि उपयोगकर्ता व्यक्तिगत उपयोग करने वाला है, दूसरों को देने वाला है या लाभ कमाने वाला है. इसलिए यह विधेयक ड्रग्स का उत्पादन या बिक्री कर जानबूझकर नियम तोड़ने वालों और ड्रग्स का उपयोग करने वालों को एक साथ मिलाकर देखता है," रे ने कहा.

कानून को ईमानदारी से लागू करने के सवाल पर भी सिन्हा अधिक भरोसा नहीं दिला सके. "कोई भी सरकार शक्ति के दुरुपयोग की संभावना से इंकार नहीं कर सकती है," उन्होंने स्वीकार किया.

उन्होंने कहा कि इस संशोधन के ज़रिये सरकार उस व्यवस्था को सुधरने का प्रयास कर रही है जहां अभियोगाधीन कैदी न्यायिक देरी के कारण वर्षों जेल में रहते हैं. "मुझे नहीं लगता कि यह कोई ऐसा विषय है जिस पर किसी भी लोकतंत्र को वास्तव में गर्व हो सकता है, कि हमारे पास एक ऐसी प्रणाली है जहां न्यायिक देरी होती है; जहां अदालतें विभिन्न कारणों से मामलों का निपटारा करने में सक्षम नहीं हैं, जिसके लिए हम भी कुछ हद तक जिम्मेदार हो सकते हैं," उन्होंने कहा.

इस अधिनियम को 2001 में संशोधित किया गया और किसी नशीली दवा की छोटी मात्रा रखने के दोषी व्यक्ति को व्यावसायिक मात्रा रखने के दोषी व्यक्ति से अलग दंड का प्रावधान किया गया.

2014 में अधिनियम में तीसरी बार संशोधन किया गया. सरकार ने पूर्व दोषियों को मृत्युदंड देने पर अपना रुख नरम किया और मौत की सजा को वैकल्पिक बना दिया.

सरकार द्वारा अधिनियम में किए जाने वाले नवीनतम परिवर्तनों में व्यक्तिगत उपभोग के लिए कम मात्रा में नशीली दवाएं रखने को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जा सकता है.

एनडीपीएस अधिनियम के तहत यह सिद्ध करने का दायित्व प्रतिवादी पर होता है कि उसके पास उपलब्ध ड्रग्स की छोटी मात्रा उसके व्यक्तिगत उपभोग के लिए है. इस महीने सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने सिफारिश की कि धारा 27 के तहत नशीली दवाओं के सेवन की सजा को एक साल के कारावास या 20 हजार रुपए के जुर्माने या दोनों और 30 दिनों के अनिवार्य पुनर्वास और परामर्श में बदला जाए.

पिछले एक साल के दो हाई-प्रोफाइल मामलों में एनसीबी ने अभिनेता रिया चक्रवर्ती और अभिनेता शाहरुख खान के 23 वर्षीय बेटे आर्यन खान पर धारा 27 के तहत मामला दर्ज किया था जबकि उनके पास कोई ड्रग्स नहीं मिले थे. भले ही मंत्रालय की सिफारिशें कानून बन जाएं, लेकिन यह बदलाव पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किए जा सकते.

***

दिवाली के शुभ अवसर पर न्यूज़लॉन्ड्री अपने सब्सक्राइबर्स के लिए लेकर आया है विशेष गिफ्ट हैंपर. इस दिवाली गिफ्ट हैंपर्स के साथ न्यूज़लॉन्ड्री को अपने जश्न में शामिल करें.

दिवाली के इस स्पेशल ऑफर में तीन अलग-अलग गिफ्ट हैंपर्स शामिल हैं. जिन्हें आप यहां क्लिक कर खरीद सकते है.

Also see
article imageअफीम की खेती और मुंद्रा पोर्ट पर अफगानिस्तान की ड्रग्स
article imageतस्करी के जाल से निकल के घर लौटी गरीब परिवार की लड़की मुड़की की आपबीती
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like