अक्टूबर के अंत में ग्लासगो में शुरू हो रहे कॉप-26 का एजेंडा क्या होना चाहिए, विस्तार से समझिए.
तीसरा एजेंडा, चीन पर फोकस करना होना चाहिए. लंबे समय से चीन, 77 के समूह यानी विकासशील देशों की आड़ में छिपता रहा है और उसने अपने इरादे का खुलासा नहीं किया है. आने वाले दशक में चीन कार्बन बजट के 30 प्रतिशत पर कब्जा कर लेगा; इसके पास कार्बन उत्सर्जन पूरी तरह कम करने का लक्ष्य नहीं है. इस लंबे खेल में चीन की इच्छा है कि साल 2030 तक वह बाकी बड़े प्रदूषक देशों के बराबर फायदा हासिल कर ले. इसका अर्थ है कि दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए आगे बढ़ने की कोई जगह नहीं बची है.
यह अस्वीकार्य है. चीन आज पूर्व का अमरीका है और ये देखना मुश्किल है कि दुनिया कैसे इसकी आलोचना करेगी.
चौथा एजेंडा है, एक असल, स्पष्ट और जिस स्तर पर बदलाव की जरूरत है उसके लिए वित्त की व्यवस्था. लंबे समय से ये वादा छवियों में गुम हो गया है. इसने देशों के बीच भरोसा तोड़ने का काम किया है. यह एजेंडा बाजार आधारित तंत्र पर विमर्श से जुड़ा हुआ है, जो कॉप-26 के विमर्श में शामिल है. फिलहाल विकासशील दुनिया से उत्सर्जन कम करने के लिए ‘सस्ती’ खरीद के रचनात्मक तरीकों की तलाश करने की कोशिश हो रही है. ये विध्वंसकारी क्लीन डेवलपमेंट मकेनिज्म को दोबारा शुरू करना है, लेकिन इरादा वैसा ही है. इससे जलवायु परिवर्तन के संकट में इजाफा ही होगा.
आज की सच्चाई यही है कि भारत व अफ्रीकी मुल्क समेत दुनिया को उत्सर्जन कम करने पर काम करना चाहिए.
इन देशों में सस्ता कार्बन उत्सर्जन मुआवजे के विकल्पों की जगह बाजार तंत्र को परिवर्तनकारी और महंगे विकल्पों को फंड करने का रास्ता तैयार करना चाहिए. इसका मतलब है कि जो तंत्र फंड करेगा, उसे नुकसान की भरपाई के खर्च को बाजार निर्धारित मूल्य के आधार पर डिजाइन किया जाना चाहिए. यानी कि सिर्फ बातें ही नहीं, बल्कि उस पर तेजी से अमल भी.
कॉप-26 के लिए पांचवा एजेंडा, लगभग ठप पड़ चुका ‘नुकसान और क्षति’ पर विमर्श है. हम अजीबोगरीब मौसमी गतिविधियों के चलते बड़ा नुकसान देख रहे हैं. हर आपदा के दोहराव के बाद लोग इससे मुकाबला करते हुए उसी आपदाग्रस्त और बारंबार आपदा झेल रहे क्षेत्रों में रहने की क्षमता खो देते हैं; दरिद्र और निराश हो जाते हैं. ये उनकी असुरक्षा बढ़ाती है और साथ ही दुनिया की भी. जलवायु परिवर्तन न्याय के लिए संघर्ष करने वाला है.
अतएव, ये नुकसान और क्षति की जिम्मेदारी लेने के लिए एक प्रभावी समझौता करने और प्रदूषकों को जिम्मेदार ठहराने का वक्त है. ये प्रदूषकों के भुगतान करने का वक्त है.
कॉप-26 को अहसास होना चाहिए कि यह साहस, कल्पना, सहयोग का वक्त है. सुविधा सम्पन्न ही नहीं, बे आवाज और शेष दुनिया के लोग और खासकर युवा देख रहे हैं. ये समय बर्बाद करने का नहीं, कार्रवाई करने का वक्त है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)