मानव और प्रकृति के बीच का रिश्ता एक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है

यह भारी मानवीय पीड़ा का दौर रहा है. हम सभी ऐसे लोगों को जानते हैं, जिन्होंने अपने किसी करीबी और प्रिय को महामारी में हमेशा के लिए खो दिया है या फिर वह मृत्यु के द्वार को छूकर वापस लौटे हैं.

WrittenBy:सुनीता नारायण
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इसका मतलब यह होगा कि विकास योजनाओं की सामान्य गति और पैमाने को जारी रखने के अलावा और भी कुछ करना होगा. इसका मतलब होगा प्रकृति और पारिस्थितिकी सुरक्षा में भारी निवेश करना जो कि नौकरियों का निर्माण करेगी और जिससे आर्थिक सुरक्षा भी होगी. हमें दुनिया के सबसे गरीब लोगों पर महामारी के असमान प्रभाव को नहीं भूलना चाहिए.

इस बीमारी से उनकी जान चली गई है और उनकी आजीविका चली गई है. इस विषाणु वर्ष ने देशों को कई बरस पीछे ढकेल दिया है. इसने जीवन को बेहतर बनाने के लिए किए गए वर्षों के विकास कार्यों को मिटा दिया है. इसने हमारी दुनिया में गरीबी को इस कदर बढ़ाया है जैसा पहले कभी नहीं हुआ था.

हमें एक बंद अर्थव्यवस्था में प्रदूषण कम होने के कारण मसहूस की गई स्वच्छ हवा की गंध और साफ नीले आसमान के नजारे को नहीं भूलना चाहिए. उसी दौरान ट्रैफिक का शोर कम होने पर पक्षियों की चहचहाहट को भी नहीं नजरअंदाज करना चाहिए. प्रकृति ने हमारी दुनिया में अपने स्थान को दोबारा हासिल करने और खुद को नवीन करने के लिए मौन का एक क्षण लिया. इसने हमें संकट के क्षणों में भी खुशी दी.

हमें उस मानव वैज्ञानिक उद्यम को नहीं भूलना चाहिए जिसने हमें एक वर्ष के भीतर टीके उपलब्ध कराए. लेकिन जब हम इस उपलब्धि का जश्न मनाते हैं, तब भी हमें त्रासदियों की निरंतर उस प्रहसन को नहीं भूलना चाहिए जहां विषाणु और उसके स्वरूप दुनिया में टीकाकरण की दर से आगे निकल रहे हैं, जो हमें एक असुरक्षा के ख्याल में छोड़ते हैं.

“कोई भी सुरक्षित नहीं है जब तक कि सभी सुरक्षित न हों.” यह कोविड-19 की घात लगाए हुए दुनिया में एक सिर्फ नारा भर नहीं है. सभी को सुरक्षित बनाने के नारे में हमारा स्पष्ट स्वार्थ निहित है कि टीके जितनी जल्दी हो सके दुनिया के सबसे गरीब और दूरदराज हिस्सों में पहुंच जाएं. इसके बावजूद हम ऐसा नहीं कर रहे हैं. इससे हमें अपनी मूलभूत और घातक कमजोरी के बारे में कुछ सबक सीखना चाहिए कि हमारी आर्थिक व्यवस्था अमीरों द्वारा संचालित है और अमीरों के लिए है. कोविड-19 विकास के हमारे दोषपूर्ण मॉडल से बदला ले रहा है.

अंत में, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोविड-19 ने हमारी दुनिया को आईना दिखाया है. इसने हमें दुख, आशा और प्रार्थना में भी साथ खड़ा किया है. हमें वापस बेहतर, हरित और अधिक समावेशी विश्व के निर्माण के लिए इसका उपयोग करना चाहिए. हम पहले कभी न देखे गए व्यवधान के इस समय में जी रहे हैं. यह नवीनीकरण और नव-अभियांत्रिकी के लिए वह समय है जैसा पहले कभी नहीं था, हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए.

(साभार- डाउन टू अर्थ)

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