विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, गरीब देशों पर बढ़ी कर्ज की मार: 2020 में 12 फीसदी की वृद्धि के साथ ही रिकॉर्ड 65 लाख करोड़ रुपए पहुंचा कर्ज.
भारत के भी हर नागरिक पर है करीब 30,776 रुपए का विदेशी कर्ज
रिपोर्ट में जारी आंकड़ों को देखें तो भारत पर कुल 42.5 लाख करोड़ रुपए का विदेशी कर्ज है. इस हिसाब से हर भारतीय करीब 30,776 रुपए के कर्ज के नीचे दबा हुआ है. गौरतलब है कि कर्ज का यह बोझ 2010 में करीब 21.9 लाख करोड़ रुपए का था, जो पिछले 10 वर्षों में 96 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 2020 में 42.5 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है. इसमें से 84,254 करोड़ रुपए का तो केवल ब्याज है जिसे लम्बी अवधि के दौरान चुकाया जाना है.
इस बारे में विश्व बैंक समूह के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मुख्य अर्थशास्त्री कारमेन रेनहार्ट ने बताया, "दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से बढ़ते कर्ज और उससे उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना कर रही हैं. ऐसे में नीति निर्माताओं को इस कर्ज के कारण पैदा होने वाले संकट के लिए तैयार रहने की जरूरत है." यही नहीं रिपोर्ट का कहना है कि विकासशील देशों में बढ़ते कर्ज और उससे पैदा होने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए कर्ज में पहले से कहीं अधिक पारदर्शिता लाना महत्वपूर्ण है.
रिपोर्ट का कहना है कि इन देशों को कर्ज से जुड़े जोखिम का आंकलन कर उसे कम करने के लिए उचित तरीके से प्रबंधित करने की जरूरत है, जिसके लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है. इस बारे में विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष डेविड माल्पस ने बताया, "हमें बढ़ते कर्ज की इस समस्या के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है, जिसमें कर्ज में कमी लाना, तेजी से पुनर्गठन और बेहतर पारदर्शिता शामिल है." उनके अनुसार गरीबी को कम करने और आर्थिक सुधारों के लिए इस कर्ज का शाश्वत स्तर पर पहुंचना जरूरी है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)