गुरुवार-शुक्रवार की रात सिंघु बॉर्डर पर हुई अमानवीय घटना के चश्मदीदों से बातचीत कर न्यूज़लॉन्ड्री ने कड़ियों को जोड़ने की कोशिश की.
‘लखबीर ने हमसे मदद मांगी थी’
सिंघु बॉर्डर पर ही हमें एक और चश्मदीद मिला. वह भी अपना नाम उजागर नहीं करना चाहता था. उसने हमें बताया कि देर रात जब कथित बेअदबी के आरोप में निहंगों ने लखबीर सिंह को फोर्ड के शो रूम के पास से पकड़ा और मारने लगे तब वह भागकर रोहन (बदला हुआ नामा) और उनके कुछ साथियों के पास मदद के लिए गया था.
निहंगों का उग्र, हिंसक रूप देख कर रोहन और उनके साथियों की मदद करने की हिम्मत नहीं हुई. उसके बाद निहंग उन्हें पकड़कर अपने टेंट की तरफ ले गए. रोहन मदद नहीं कर पाने का अफसोस जताते हैं. वे कहते हैं, ‘‘जब वह मुझसे मदद मांगने आया तो दो निहंग और एक कोई आदमी उसके साथ थे. लखबीर ने भी निहंगे वाले कपड़े पहने हुए थे, लेकिन उसकी दाढ़ी और बाल नहीं थे. उसने मुझसे कहा, मुझे बचा लो. इससे पहले नौ लोगों को मैं निहंग सिखों से बचा चुका हूं. लेकिन कल रात मामला बेअदबी का था. मेरे सामने उसके पास से सर्व लोक ग्रंथ मिला. निहंग बेहद गुस्से में थे. ऐसे में अगर मैं बचाने की कोशिश करता तो वे मुझे भी मार देते.’’
जब निहंग, लखबीर सिंह को पकड़ कर ले गए तो रोहन को लगा कि एकाध थप्पड़ मारकर छोड़ देंगे. उसके हाथ-पैर काटकर हत्या कर देंगे इसका अंदाजा नहीं था.
वो कहते हैं, ‘’जब वे उसे लेकर चले गए तो मैं अपने टेंट में आ गया. सुबह के 5 बजकर 38 मिनट का समय था जब बहुत तेज़ शोर हुआ. मैं बाहर निकलकर आया तो सात-आठ लोग लखबीर सिंह को घसीटते हुए ले जा रहे थे. वो खून से लथपथ था. उसका हाथ और पैर काटा जा चुका था. वो कुछ बोल नहीं पा रहा था.’’
‘हाथ पैर काटकर एक संदेश देना चाहते थे’
सिंघु बॉर्डर पर प्रवेश करते ही निहंगों का डेरा है. यहां बड़ी संख्या में घोड़े बंधे हुए हैं. नीले रंग का कपड़ा पहने और कमर में तलवार लटकाये निहंग यहीं रहते हैं और खुद को आंदोलन का रक्षक बताते हैं.
पूरे घटना के चमश्दीद रहे गौरव (बदला हुआ नाम) न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं कि यहां निहंगों का कई पंथ बैठता है. इसमें चम्पा साहब, चमकाण साहब, बाबा बुढ़ा दल छियानवे करोड़ी, बाबा राम सिंहजी और बाबा नारायण सिंह हैं. हत्या करने का आरोप अपने माथे पर लेने वाले सरबजीत सिंह, बाबा बुढ़ा दल छियानवे करोड़ी से जुड़े हुए हैं.
गौरव बताते हैं, ‘‘हाथ तो इधर ही लाकर काटा गया. पैर स्टेज के सामने काटा गया. दरअसल उनका इरादा हत्या करने का नहीं था. जब वे मार-काट रहे थे तब मैं वहीं था. वे कह रहे थे कि इसको ऐसी सजा दो कि ये जिंदगी भर याद रखे और इसे देखकर कोई दूसरा बेअदबी का ना सोचे. उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि मौत हो जाएगी. हालांकि जब सुबह मौत हुई तब वहां मौजूद सरबजीत ने कहा कि यह मैं अपने सर पर लूंगा.’’
क्या हाथ-पैर सरबजीत ने ही काटे थे. इस सवाल पर गौरव कहते हैं, ‘‘जी, उन्होंने ने ही काटा था.’’
शव को जहां लटकाया गया था वहां से कुंडली पुलिस स्टेशन पास ही है. वहां करीब आठ बजे तक लखबीर का शव टंगा रहा किसी ने पुलिस को सूचना दी तब पुलिस उसे ले गई. इसके बाद दिन भर पुलिस टीम घटनास्थल और निहंगों के टैंट के आसपास का दौरा करती रही.
दोपहर में पुलिस ने इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 34 (जब एक आपराधिक कृत्य सभी व्यक्तियों ने सामान्य इरादे से किया हो) के तहत मामला दर्ज किया है. पूरे दिन कुंडली थाने में सीनियर अधिकारियों की बैठक चलती रही. लेकिन वहां कोई भी अधिकारी इस मामले पर बोलने के लिए तैयार नहीं था.
शाम साढ़े छह बजे के करीब कई सीनियर अधिकारी निहंगों के टेंट के पास पहुंचे और वहां सरबजीत सिंह ने खुद को पुलिस को सौंप दिया. इस दौरान वहां सैकड़ों के संख्या में निहंग मौजूद थे. किसी को भी इस हत्या पर कोई दुःख नहीं था.
कौन है लखबीर सिंह?
लखबीर सिंह पंजाब के तरन तारन जिले के चीमा कलां के रहने वाले दलित थे. इस गांव में सौ के करीब दलित परिवार रहते हैं. लखबीर की पत्नी और तीन बेटियां हैं. ग्रामीणों के मुताबिक पत्नी कुछ सालों से बेटियों को लेकर अलग हो गई है. सिंह अपनी बहन के साथ चीमा कलां गांव में रहते हैं. बहन के पति का भी निधन हो चुका है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने उनके परिवार से बात करने की कोशिश की लेकिन इस हादसे के सदमे के कारण उनकी बहन बात करने की स्थिति में नहीं थी.
चीमा कलां लखबीर सिंह का गांव नहीं है. इस गांव के रहने वाले हंसपाल सिंह ने फोन पर बातचीत में न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘इनकी बुआ महेंद्र कौर और फूफा हरनाम सिंह का कोई बच्चा नहीं था. जिसके कारण उन्होंने इन्हें करीब पांच साल की उम्र में गोद लिया था. तब से वे यहीं रह रहे थे. इनके फूफा आर्मी में हुआ करते थे. उनकी मौत करीब 26 साल पहले हो गई थी और बुआ की मौत तीन-चार साल पहले हो गई.’’
हंसपाल सिंह बताते हैं, ‘‘15 साल पहले इनकी शादी हुई थी. तीन बेटियां हैं, लेकिन बीते चार-पांच साल से इनकी पत्नी बेटियों को लेकर अलग रहती है. शादी के बाद लखबीर मुंबई गया. वहां उसे नशे की लत लग गई. वहां से पिंड आया. यहां भी नशा करता था. आगे चलकर ज़्यादा ही नशा करने लगा. जिस कारण पत्नी अलग हो गई और मायके में जाकर रहने लगी.’’
आमदनी को लेकर हंसपाल कहते हैं, ‘‘किसी के यहां चारा काट कर तो किसी के भैंस को पानी डालकर पैसे कमाता था. जिसके यहां काम करता था उसी के यहां रोटी खा लेता था.’’
बीबीसी हिंदी से बात करते हुए लखबीर के फूफा बलकार सिंह ने कहा, ‘‘अब घटना यहां पर तो हुई नहीं है. घटना बहुत दूर हुई है. हम आपको क्या बताएं कि क्या हुआ होगा. मैं तो समझता हूं कि वो वहां पहुंच ही नहीं सकता. ज़रूर किसी ने उसको नशा दिया होगा, वहां लोग लेकर गए होंगे और बरगलाया होगा. वो ये काम नहीं कर सकता. दोषियों को पकड़ा जाना चाहिए और परिवार का ध्यान रखा जाना चाहिए.’’
लखबीर सिंह के गांव वालों के जेहन में भी यहीं सवाल है कि आखिर वो दिल्ली पहुंचा कैसे.
हंसपाल न्यूज़लॉन्ड्री से बताते हैं, ‘‘मैंने 11 अक्टूबर को उसे गांव में देखा था. उसके बाद ही गया होगा. गांव के लोग कह रहे हैं कि चोरी कर सकता है, लेकिन बेअदबी वाला काम नहीं करेगा. सिख धर्म को छोड़ो और किसी भी धर्म का भी बेअदबी नहीं कर सकता. ये अपनी मौज में रहने वाला इंसान था. ये भी कह रहे हैं कि दिल्ली जाने के लिए इसके पास पैसा कहां से आया. इनकी बहन को भी नहीं मालूम की ये दिल्ली कब गया.’’
गांव के रहने वाले सतनाम सिंह बाजवा भी न्यूज़लॉन्ड्री से फोन पर बात करते हुए कहते है, ‘‘यह गांव में बड़ा रहस्य बना हुआ है कि ये सिंधु कैसे चला गया. हमारे गांव से कोई किसान वहां गया भी नहीं है. इनको या तो किसी ने लालच देकर भेजा है या लेकर गया है. यह समझ नहीं आ रहा है.’’
किसान संगठनों ने हत्या की निंदा करते हुए खुद को निहंगों से अलग किया
आंदोलन का संचालन कर रहे किसान संगठनों ने इस हत्या की निंदा करते हुए खुद को इससे अलग कर लिया है. संयुक्त किसान मोर्चा ने इस पूरे मामले पर एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा, ‘‘इस नृशंस हत्या की निंदा करते हुए एसकेएम यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि इस घटना के दोनों पक्षों, निहंग समूह/ग्रुप या मृतक व्यक्ति, का संयुक्त किसान मोर्चा से कोई संबंध नहीं है.’’
प्रेस रिलीज में आगे कहा गया, ‘‘हम किसी भी धार्मिक ग्रंथ या प्रतीक की बेअदबी के खिलाफ हैं, लेकिन इस आधार पर किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं है. हम यह मांग करते हैं कि इस हत्या और बेअदबी के षड़यंत्र के आरोप की जांच कर दोषियों को कानून के मुताबिक सजा दी जाए. संयुक्त किसान मोर्चा किसी भी कानून सम्मत कार्यवाही में पुलिस और प्रशासन का सहयोग करेगा.’’
इस घटना ने पंजाब में राजनीति और धर्म के घालमेल का बदसूरत चेहरा दिखाया है. किसान मोर्चे ने इस घटना की निंदा करके एक सही क़दम उठाया है लेकिन उसे इस बाबत और कड़ा रवैया अपनाना होगा. एक तरफ नौ महीने का सत्याग्रह चले और दूसरी तरफ कंगारू कोर्ट जहां विधि व्यवस्था और कानून को पैरों तले रौंदा जाय, दोनों बाते साथ-साथ नहीं चल सकती.